Sunday, May 6, 2007

या तो दीवाना हंसे या खुदा जिसे तौफीक़ दे




आज है छह मई । मई के महीने के पहले रविवार को दुनिया भर में विश्‍व हास्‍य दिवस या वर्ल्‍ड लाफ्टर डे के रूप में मनाया जाता है । आपको ये जानकर हैरत होगी कि इसका आग़ाज़ मुंबई से हुआ था । ग्‍यारह जनवरी सन 1999 को मुंबई के डॉक्‍टर मदन कटारिया ने इसकी शुरूआत की थी । उन्‍होंने मुंबई में पहला लाफ्टर क्‍लब बनाया था । आपने देखा होगा कि लगभग हर शहर, हर क़स्‍बे में आज लाफ्टर क्‍लब हैं । इनमें लोग किसी मैदान में बिल्‍कुल सबेरे और शाम को जमा होते हैं और गोला बनाकर हाथ उठा उठाकर जोर जोर से हंसते हैं । इनकी हंसी की ये स्‍वरलहरियां आसपास के घरों तक पहुंचती हैं और लोग मुस्‍कुराये या ठहाका लगाये बिना नहीं रहते ।

जैसा कि हमारे देश में होता है, पहले पहले इन लाफ्टर क्‍लबों को बहुत अचरज से देखा गया । लोगों को लगा कि ये कौन सनकी लोग हैं जो सबेरे सबेरे जमा होते हैं और आसमान की तरफ हाथ उठा उठाकर जोर जोर से ठहाका लगाते हैं । पागल हैं, दीवाने हैं, कौन हैं ये । क्‍यों ये सबेरे सबेरे ‘शोर’ करते हैं । पर धीरे धीरे सबको ना सिर्फ आदत पड़ गयी बल्कि लोग साथ आते गये और कारवां भी बनता गया । आपको बता दूं कि मेरे घर के बिल्‍कुल नज़दीक मौजूद है एक मैदान, जिसमें पिछले दस सालों से लाफ्टर क्‍लब चल रहा है । हम जब यहां रहने आये तो लगा कि ये क्‍या चक्‍कर है, सबेरे सबेरे ये अट्टाहास कैसा, कौन हैं ये लोग । पर फिर पता चला कि कुछ गृहिणियां, कुछ बुजुर्ग और कुछ नौजवान इसमें शामिल हैं और ये हंसी का कारवां है ।

आज मुंबई में 85 लाफ्टर क्‍लब हैं । देश भर में चार हज़ार से ज्‍यादा और दुनिया भर में इनकी तादाद पांच हज़ार से ज्‍यादा है । हैरत की बात ये है कि इनमें सबसे ज्‍यादा बुजुर्ग लोग शामिल हैं, रिटायरमेन्‍ट की दहलीज़ के उस पार जा चुके लोग । शुरूआत में लाफ्टर क्‍लब के सदस्‍य महज़ बारह हजार थे, आज इनकी तादाद करोड़ों में है ।

हंसी को लेकर कई शोध हुए हैं और सभी ने ये साबित किया है कि अस्‍सी प्रतिशत बीमारियों से आप हंसते हंसते निपट सकते हैं । फिर चाहे वो अस्‍थमा हो, रक्‍तचाप हो या फिर अनिद्रा, स्‍ट्रेस का तो सबसे अच्‍छा इलाज हंसी ही है । हंसने से ‘इंडोरफिन’ नामक एक हारमोन सक्रिय होता है जिससे मनुष्‍य शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताज़ा महसूस करता है ।

ये चिट्ठा आपको ये सोचने पर मजबूर करने के लिए है कि आपकी जिंदगी में हंसी की कितनी जगह बाकी है । क्‍या आप परिचितों या अपरिचितों को देखकर अनायास मुस्‍कुरा देते हैं । सच कहें तो आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में हर व्‍यक्ति के माथे पर परमानेन्‍ट शिकन पड़ चुकी है । हंसने की तो छोडिये मुस्‍कुराहट के भी टोटे पड़ गये हैं । टेलीविजन रोज हंसी के हजारों कार्यक्रम उगल रहा है, हंसाने का कारोबार फल फूल रहा है और जनता है कि बोसीदा चेहरा बनाकर तंगहाल बैठी है । हंसी आ ही हीं रही है, इन कार्यक्रमों को देखकर तो कई बार कई लोगों को गुस्‍सा आने लगता है । बहरहाल बौद्धिक बहसों को ताक पर रखें, चलिये हंसें, अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में हंसने के बहाने खोजें । कम से कम हंसने के लिये टी0वी0 के सामने तो ना बैठना पड़े ।

पुराना और घिसा पिटा शेर पर मौज़ूं है इसलिये अर्ज़ है—
या तो दीवाना हंसे या खुदा जिसे तौफीक़ दे
वरना इस दुनिया में हंस सकता है कौन ।






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5 टिप्‍पणियां:

Raviratlami May 6, 2007 at 8:03 PM  

या फिर ये -

इस सदी में तेरे होठों पे तबस्सुम की लकीर!
हंसने वाले तेरा पत्थर का कलेजा होगा !!

Divine India May 6, 2007 at 10:25 PM  

या तो खुद पर व्यंग या फिर अपनी दबी चेतना को सक्रिय करना…अच्छा लेख है…।
मैंने अभी एक फिल्म देखी "Fight Club"(hollywood)यह जो आंतरिक supression क्या कमाल का दिखाया गया है…।यह लेख पढ़कर के वह याद आ गया…।

बोधिसत्व May 7, 2007 at 1:05 AM  

यूनुस भाई
हम-आप पड़ोसी हैं। विविध भारती से मेरा घर सिर्फ दो किलोमीटर पड़ता है। देखते हैं कब बैठक जमती है। आप का लिखा हुआ कुछ भी पढ़ना अब और आसान हो गया है । कुछ कविताएं भी पढ़वाएं ।
हंसने-हंसाने का यह सिलसिला भी जारी रखें । ममता मय जीवन जिएं।

Anonymous,  May 7, 2007 at 6:43 PM  

Bahut purana aur ghisa-pita chutkula hai lekin yaha mauzoo hai isiliye arz hai - Ek baar kisi ko joke sunaya tho usne kahaa - abhi mujhe jaldi hai ghar jaa kar hasunga.

निखिल आनन्द गिरि May 31, 2007 at 3:04 AM  

tumne jisko mehfil-mehfil hansi lutaate dekha hai..
humne usko ik kone mein aansu bahaate dekha hai.
bheed mein bhi pehchaan hi loge, wo gumnaam nahi hoga,
usko akele kadmon se bhi dhool udaate dekha hai.....

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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