इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला---सुनिए गुलज़ार का रचा मेरा पसंदीदा ग़ैरफ़िल्मी गीत ।

प्रिय मित्रो
कुछ दिन पहले मैंने गुलज़ार की वो कॉमेन्ट्री आपको सुनवाई थी जो उनके सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब की शुरूआत में आती है । और मैंने आपसे अर्ज़ किया था कि मेरी नज़र में गुलज़ार का ये सबसे अच्छा एलबम है ।
आज मैं उस एलबम के शीर्षक गीत को लेकर आया हूं ।
आने वाले दिनों में इस अलबम के सारे गीतों की एक एक करके चर्चा की जायेगी ।
जहां तक मुझे लगता है कि गुलज़ार ने कश्मीर के आतंकवाद को अपनी नज़र से देखा है और इस ललित रचना के ज़रिए वहां को हालात का रूपक गढ़ा है ।
वो कहते हैं कि ‘इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला’ या आखिरी पंक्ति है---‘नानी की अगर मानें तो भेड़िया जिंदा है, जायेंगी अभी जानें, इन बूढ़े पहाड़ों पर ।‘
यानी गुलज़ार कहते हैं कि ये आतंकवाद का भेड़िया है जिसने चिनारों पर आग लगा रखी है और जो सब कुछ तबाह कर रहा है ।
इस गाने को सुनवाने से पहले आपको ये भी बताना चाहता हूं कि इस गीत को सुरेश वाडकर ने गाया और स्वरबद्ध किया विशाल भारद्वाज ने । हैरत की बात ये है कि सन 1997 में यानी आज से दस साल पहले निकले इस कैसेट की कोई पब्लिसिटी नहीं हुई । ना ही कंपनी ने आगे चलकर इसे दोबारा लॉन्च करने की ज़हमत उठाई । मैंने कहीं किसी को भी इसका जिक्र करते नहीं सुना है ।
अब इसके संगीत की बात ।
विशाल ने इस गाने को बिल्कुल एक बैले की तरह बनाया है ।
दिलचस्प बात आपको बता दूं कि मेरे छोटे भाई ने इस गाने को लेकर अपने कॉलेज के दिनों में वाक़ई एक बैले किया था और उसका वो बैले अच्छा जमा था ।
इस गीत में तीन आवाज़ें आती हैं । कोरस की आवाज़, गायक सुरेश वाडकर की आवाज़ और गुलज़ार की कॉमेंट्री एक सूत्रधार की तरह ।
आप पायेंगे कि हर अंतरे की पहली पंक्ति कोरस गाता है और उसे अधूरा छोड़ देता है, फिर उसे सुरेश वाडकर उठाते हैं ।
इस गीत के संगीत में एक ख़ास तरह की रवानी है । बेहद नाज़ुक रिदम का इस्तेमाल किया गया है । और कोरस इतना गाढ़ा और नरम है कि सीधे दिल में उतर जाता है । मेरा दिल ख़ामोश ख़ामोश और ख़ाली ख़ाली सा हो जाता है इस गाने को सुनकर ।
योग के गुरू कहते हैं कि ऐसा बहुत देर योग करने के बाद होता है ।
इस गीत में विशाल ने रबाब का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया है । कहानी की तरह बुने इस गीत का संगीत वो धीरे धीरे चरम पर ले जाते हैं । और सुरेश वाडकर की आवाज़ यू लगती है मानो एक सफेद बर्फ़ जैसी दाढ़ी वाला सूफ़ी फ़क़ीर अपने चिमटे को बजाता हुआ बस्ती से गुज़र रहा हो । मानो सदियों से ये सूफ़ी बूढ़े पहाड़ों पर फिर रहा है । और उसने देखा है कि पहाड़ों पर सदियां बर्फ़ हुई पड़ी हैं ।
आप भी सुनिए और लुत्फ उठाईये ।
बस इतना निवेदन है कि जल्दीबाज़ी में इस गीत को मत सुनिएगा जब वक्त हो तो तसल्ली से सुनिए और इसमें डूब कर देखिए ।
इस गाने को सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए
बांसुरी की एक गहन तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला ।।
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला ।
सदियों से गिरी बर्फ़ें
और उनपे बरसती हैं हर साल नई बर्फ़ें
घर लगते हैं क़ब्रों से, घर लगते हैं क़ब्रों से,
ख़ामोश सफेदी में
कुतबे से दरख्तों के,
ना आब था, ना दाने
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गई जानें ।
शानदार पहाड़ी बांसुरी की तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
कुछ वक्त नहीं गुज़रा नानी ने बताया था
सरसब्ज़ ढलानों पे बस्ती थी गड़रियों की
और भेड़ों के रेवड़ थे ।
ऊंचे कोहसारों के
ऊंचे कोहसारों के गिरते हुए दामन में
जंगल हैं चनारों के
जंगल हैं चनारों के
जंगल हैं चनारों के
सब लाल से रहते हैं
सब लाल से रहते हैं,
जब धूप चमकती है
कुछ और दहकते हैं ।
हर साल चनारों में
हर साल चनारों में
एक आग के लगने से
मरते हैं हज़ारों में
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इसके बाद ग्रुप वायलिन की हल्की तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
चुपचाप अंधेरे में अकसर उस जंगल से
एक भेडिया आता था एक भेड़ उठाकर वो ले जाता था रेवड़ से
और सुबह को जंगल में बस खाल पड़ी मिलती
( यहां आने वाली रबाब और रिदम का अनोखा संयोजन ज़रूर सुनिए)
हर साल उमड़ता है
हर साल उमड़ता है,
दरियाओं पे बारिश में
एक दौरा सा पड़ता है
सबको तोड़ गिराता है जाता है
संदलाख चट्टानों से
वो सर टकराता है
तारीख़ का कहना है
रहना है चट्टानों को
दरियाओं को बहना है
अब के तुग़यानी में कुछ डूब गये गांव
कुछ गल गये पानी में
चढ़ती रही कुर्बानी
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गयी जानें
हल्के रबाब के पीछे गुलज़ार की आवाज़
फिर सारे गड़रियों ने उस भेड़िये को ढूंढा और मार के लौट आए
उस रात एक जश्न हुआ और सुबह को जंगल में
दो और मिली खालें
बांसुरी और बेहतरीन रिदम के बीच कोरस उठाता है अगला अंतरा ।
नानी की अगर मानें
नानी की अगर मानें
तो भेड़िया जिंदा है
जायेंगी अभी जानें
जायेंगी अभी जानें
इन बूढ़े पहाड़ों पर
कुछ भी तो नहीं बदला ।।
इन बूढ़े पहाड़ों पर ।।
कुछ दिन पहले मैंने गुलज़ार की वो कॉमेन्ट्री आपको सुनवाई थी जो उनके सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब की शुरूआत में आती है । और मैंने आपसे अर्ज़ किया था कि मेरी नज़र में गुलज़ार का ये सबसे अच्छा एलबम है ।
आज मैं उस एलबम के शीर्षक गीत को लेकर आया हूं ।
आने वाले दिनों में इस अलबम के सारे गीतों की एक एक करके चर्चा की जायेगी ।
जहां तक मुझे लगता है कि गुलज़ार ने कश्मीर के आतंकवाद को अपनी नज़र से देखा है और इस ललित रचना के ज़रिए वहां को हालात का रूपक गढ़ा है ।
वो कहते हैं कि ‘इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला’ या आखिरी पंक्ति है---‘नानी की अगर मानें तो भेड़िया जिंदा है, जायेंगी अभी जानें, इन बूढ़े पहाड़ों पर ।‘
यानी गुलज़ार कहते हैं कि ये आतंकवाद का भेड़िया है जिसने चिनारों पर आग लगा रखी है और जो सब कुछ तबाह कर रहा है ।
इस गाने को सुनवाने से पहले आपको ये भी बताना चाहता हूं कि इस गीत को सुरेश वाडकर ने गाया और स्वरबद्ध किया विशाल भारद्वाज ने । हैरत की बात ये है कि सन 1997 में यानी आज से दस साल पहले निकले इस कैसेट की कोई पब्लिसिटी नहीं हुई । ना ही कंपनी ने आगे चलकर इसे दोबारा लॉन्च करने की ज़हमत उठाई । मैंने कहीं किसी को भी इसका जिक्र करते नहीं सुना है ।

अब इसके संगीत की बात ।
विशाल ने इस गाने को बिल्कुल एक बैले की तरह बनाया है ।
दिलचस्प बात आपको बता दूं कि मेरे छोटे भाई ने इस गाने को लेकर अपने कॉलेज के दिनों में वाक़ई एक बैले किया था और उसका वो बैले अच्छा जमा था ।
इस गीत में तीन आवाज़ें आती हैं । कोरस की आवाज़, गायक सुरेश वाडकर की आवाज़ और गुलज़ार की कॉमेंट्री एक सूत्रधार की तरह ।
आप पायेंगे कि हर अंतरे की पहली पंक्ति कोरस गाता है और उसे अधूरा छोड़ देता है, फिर उसे सुरेश वाडकर उठाते हैं ।
इस गीत के संगीत में एक ख़ास तरह की रवानी है । बेहद नाज़ुक रिदम का इस्तेमाल किया गया है । और कोरस इतना गाढ़ा और नरम है कि सीधे दिल में उतर जाता है । मेरा दिल ख़ामोश ख़ामोश और ख़ाली ख़ाली सा हो जाता है इस गाने को सुनकर ।
योग के गुरू कहते हैं कि ऐसा बहुत देर योग करने के बाद होता है ।
इस गीत में विशाल ने रबाब का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया है । कहानी की तरह बुने इस गीत का संगीत वो धीरे धीरे चरम पर ले जाते हैं । और सुरेश वाडकर की आवाज़ यू लगती है मानो एक सफेद बर्फ़ जैसी दाढ़ी वाला सूफ़ी फ़क़ीर अपने चिमटे को बजाता हुआ बस्ती से गुज़र रहा हो । मानो सदियों से ये सूफ़ी बूढ़े पहाड़ों पर फिर रहा है । और उसने देखा है कि पहाड़ों पर सदियां बर्फ़ हुई पड़ी हैं ।
आप भी सुनिए और लुत्फ उठाईये ।
बस इतना निवेदन है कि जल्दीबाज़ी में इस गीत को मत सुनिएगा जब वक्त हो तो तसल्ली से सुनिए और इसमें डूब कर देखिए ।
इस गाने को सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए
बांसुरी की एक गहन तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला ।।
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला ।
सदियों से गिरी बर्फ़ें
और उनपे बरसती हैं हर साल नई बर्फ़ें
घर लगते हैं क़ब्रों से, घर लगते हैं क़ब्रों से,
ख़ामोश सफेदी में
कुतबे से दरख्तों के,
ना आब था, ना दाने
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गई जानें ।
शानदार पहाड़ी बांसुरी की तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
कुछ वक्त नहीं गुज़रा नानी ने बताया था
सरसब्ज़ ढलानों पे बस्ती थी गड़रियों की
और भेड़ों के रेवड़ थे ।
ऊंचे कोहसारों के
ऊंचे कोहसारों के गिरते हुए दामन में
जंगल हैं चनारों के
जंगल हैं चनारों के
जंगल हैं चनारों के
सब लाल से रहते हैं
सब लाल से रहते हैं,
जब धूप चमकती है
कुछ और दहकते हैं ।
हर साल चनारों में
हर साल चनारों में
एक आग के लगने से
मरते हैं हज़ारों में
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला
इन बूढ़े पहाड़ों पर
इसके बाद ग्रुप वायलिन की हल्की तान और फिर गुलज़ार की आवाज़
चुपचाप अंधेरे में अकसर उस जंगल से
एक भेडिया आता था एक भेड़ उठाकर वो ले जाता था रेवड़ से
और सुबह को जंगल में बस खाल पड़ी मिलती
( यहां आने वाली रबाब और रिदम का अनोखा संयोजन ज़रूर सुनिए)
हर साल उमड़ता है
हर साल उमड़ता है,
दरियाओं पे बारिश में
एक दौरा सा पड़ता है
सबको तोड़ गिराता है जाता है
संदलाख चट्टानों से
वो सर टकराता है
तारीख़ का कहना है
रहना है चट्टानों को
दरियाओं को बहना है
अब के तुग़यानी में कुछ डूब गये गांव
कुछ गल गये पानी में
चढ़ती रही कुर्बानी
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गयी जानें
हल्के रबाब के पीछे गुलज़ार की आवाज़
फिर सारे गड़रियों ने उस भेड़िये को ढूंढा और मार के लौट आए
उस रात एक जश्न हुआ और सुबह को जंगल में
दो और मिली खालें
बांसुरी और बेहतरीन रिदम के बीच कोरस उठाता है अगला अंतरा ।
नानी की अगर मानें
नानी की अगर मानें
तो भेड़िया जिंदा है
जायेंगी अभी जानें
जायेंगी अभी जानें
इन बूढ़े पहाड़ों पर
कुछ भी तो नहीं बदला ।।
इन बूढ़े पहाड़ों पर ।।
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10 टिप्पणियां:
यूनुस साहब, क्या ही बेहतरीन चीज़ लेकर आए हैं. मज़ा आ गया. प्यारे-प्यारे बोल, दर्द भरी आवाज़, सुकूनदायी संगीत...और बीच-बीच में गुलज़ार की गंभीर आवाज़! शुक्रिया जनाब!
Aap vaakai manjhe huve kalakaar hai.
Jitna acchha geet hai utni hi acchhi tarah aapne yeh geet hame samjhaya.
Mujhe tho Gulzaar ka pahala geet hi bahut pasand hai -
Mora gora rang lai le
Mohe shyam rang dei de
ek request hai - aapne ek photograph upload kiya tha jisme aap, Udit Narayan aur Mamta singh the.
isi tarah kisi-n-kisi sandarbh main apne doosare sahkarmiyon ke photos bhi upload keejeeye taaki jinki awaaze hum roz sunte hai onhe dekh tho le.
Annapurna
बहुत अच्छा है भई। हिंदी फिल्मों के गानों से ही हमारी संवेदना संवरती हैं। अच्छा प्रयास
"मैंने कहीं किसी को भी इसका जिक्र करते नहीं सुना है।"
यूनुस भाई, आप ग़लत संगत में हैं :). मेरे कुछ टूटे फूटे विचार, जो मैंने 1997 में ही लिखे थे, ये देखिये.
यूनुस भाई,
बहुत अच्छा लगा आपकी ये पोस्ट पढ़ कर । मै गुलज़ार साहब का बहुत बड़ा फ़ैन हूँ लेकिन ये रचना कभी नही सुनी थी । संगीत भी एकदम अलग था । कृपया अपना ये प्रयास जारी रखेँ और ऐसी ही नायाब चीज़ें हमे सुनवाते रहें ।
ऐसे अभी अभी छायागीत और आप की फ़रमाइश सुन के उठा हूँ जो कि आज (२३ जून) बहुत दिनो बाद आपने प्रस्तुत किया था । छायागीत मे आपने आज क्या अनसुने और अनमोल गीत सुनवाये । मजा आ गया । आपसे अनुरोध है कि छायागीत और आप की फ़रमाइश, और ज़्यादा बार प्रस्तुत किया करें ।
धन्यवाद
अभिषेक पाण्डेय
It was wonderful to read your 2 page Memoir Yusuf bhai --
The obstacles in life does impat , tremendous impetus to forge ahead & break all that it stands to stagnate the flow of ENERGY .
That is the human instinct & behaviour.
I was smiling, understanding how inspired your TEAM of Friends must be to put up such an inspired HOME Production in front of your collegeaues & fellow students.
The memory of those days spent in creative endeavour still fresh in your minds has brought you here on your illustrious Elder brother's BLOG --
May I wish you a belated Happy Birth day & bid you, all the best in life ?
with warm regards to you & Yunus bhai & your Families,
sincerely,
Lavanya Shah
युनूस भाई,
आदाब!
सुँदर शब्द रचना के धनी गुलज़ार भाई उर ये गीत - कथा जो अपने भीतर बाल कहानी के साथ नानी की अनुभव जन्य सीख देती जाती है कि," चेत के रहना बच्चोँ ! "
भेडीया कभी मरता नहीँ --
सद्`गुण दुर्जन पर, मसीहा बनकर अपनी रोशनी बिखर ही देते हैँ--
ऐसे ही गीतोँ को सुनवाते रहियेगा -- हमेँ बडी प्रसन्नता होती है -
- ये "चिठ्ठा जगत" का कितना बढिया उपयोग कर रहे हैँ आप!
बधाई !
स्नेह सहित
-- लावण्या
विनय जी टिप्पणी के लिए शुक्रिया । आपकी दी लिंक पढ़ी । अच्छा लगा । आशय यही है कि बहुत लोग इस अलबम से परिचित नहीं हैं । हां आपने अपनी समीक्षा में लिखा है कि ‘दिल पड़ोसी है’ आपको ज्यादा अच्छा लगता है । और ‘बूढ़े पहाड़ों पर’ कम । सबकी अपनी अपनी पसंद होती है । मेरे मुताबिक़ ‘बूढ़े पहाडों पर’ पहले और ‘दिल पड़ोसी’ दूसरे नंबर पर है । जल्दी ही दिल पड़ोसी के बारे में भी लिखूंगा ।
बाक़ी मित्रों को धन्यवाद
बबलू(यूसुफ़) ब्लॉग पर पहली बार तुमने टिप्पणी दी । पुराने दिन याद आ गये । सोचो भाई, गानों के ज़रिए हम जिंदगी की कितनी कितनी बातें याद कर लेते हैं ।
तुमको पता है ‘बूढ़े पहाड़ों पर’ मैं काफी दिन से खोज रहा था । अब जाकर मिला । तो लगा कि तुमको सबसे अच्छा लगेगा इसे सुनकर । अभी इसे बुकमार्क कर लो ।
Yunusbhai and Yusufbhai,
Aap do bhaiyon ne milkar mera Din Bana Diya ( you made my day ). Yusufbhai, aapka hardik swagat hain. Aap ka kissa-e-ballet sunkar mujhe mere college ke din yaad aa gaye. Jaha college gathering me humne jo drama kiya tha, mike fail hone ki vajah wo hume adhe me chhod ke andar aana pada tha. Magar phir bhi bada maja aaya tha. Oh ! Kaha gaye wo din ?
Yunus bhai, aap jis tarah se kisi geet aur sangeet ka Ras Grahan karke hamare samne uski barikiyan aur najakate pesh karte hain, wo bemisal hain. Aap isi tarah ek se badhkar ek nayab tohphe dundh dundh ke pesh karte rahiyega. Isi shubh kamana aur tamanna ke sath,
Vikas
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