Tuesday, June 19, 2007

कितने अजीब रिश्‍ते हैं यहां पर--क्‍या आप संदीप नाथ को जानते हैं ।


क्‍या आप संदीप नाथ को जानते हैं ।

अगर आप संगीत प्रेमी हैं और ताज़ा गीतों पर भी पैनी नज़र रखते हैं तो शायद आप संदीप नाथ को ज़रूर जानते होंगे ।

हो सकता है उनके लिखे गीतों को आप पहचानते हों पर ये ना जानते हों कि इन्‍हें संदीप नाथ ने लिखा है ।

ये भी मुमकिन है कि कई लोग ना तो संदीप नाथ को जानते हों और ना ही उनके लिखे गीतों को । मुझे उम्‍मीद है कि ऐसे लोगों की तादाद कम होगी

जाने दीजिये ज़्यादा पहेलियां बुझाने से क्‍या फ़ायदा, बता दूं कि संदीप नाथ युवा गीतकार हैं । बरसों पहले इलाहाबाद से मुंबई आए थे । और अब मुंबई में अपना नाम बना पाए हैं ।

उन्‍हें फ़िल्‍म पेज 3 के इस गाने ने सबसे ज्‍यादा ख्‍याति दी थी । गाना सुनाने से पहले आपसे अपने मन की कुछ बातें कह दूं । मुझे लगता है कि इधर के कुछ सालों में आए लता जी के बेमिसाल गानों में इस गाने का शुमार होता है । अद्भुत है ये गाना । जहां तक संगीत की बात है, बहुत आधुनिक बीट्स का प्रयोग किया गया है । मुझे लता जी की आवाज़ के ठीक पहले आने वाला वो आधुनिक पॉप किस्‍म का आलाप बहुत अच्‍छा लगता है, जो कुछ इस तरह का है ‘वो हू ओ हो, वो हो हो’ । और हां, ये गीत मैं दोनों आवाज़ों में आपको सुनवा रहा हूं । शायद आपको पता ना हो, सी.डी. पर ये गीत सुरेश वाडकर की आवाज़ में भी है । क्‍या आप मुझे बतायेंगे कि किसकी आवाज़ में ये गीत आपको ज्‍यादा अच्‍छा लगा ।
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ये सुरेश वाडकर की आवाज़ वाला संस्‍करण
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ये रहे इस गीत के बोल




कितने अजीब रिश्‍ते हैं यहां पे
दो पल मिलते हैं साथ साथ चलते हैं
जब मोड़ आये तो बच के निकलते हैं ।।
कितने अजीब रिश्‍ते हैं यहां पे ।।

यहां सभी अपनी ही धुन में दीवाने हैं
करें वही जो अपना दिल ठीक माने है
कौन किसको पूछे कौन किसको बोले
सबके लबों पर अपने तराने हैं
ले जायेगा नसीब किसको कहां पे
कितने अजीब रिश्‍ते हैं यहां पे ।।

ख्‍वाबों की ये दुनिया है, ख्‍वाबों में ही रहना है
राहें ले जायें जहां संग संग चलना है
वक्‍त ने हमेशा यहां नये खेल खेले
कुछ भी हो जाये यहां बस खुश रहना है
मंज़िल लगे करीब सबको यहां पे ।
कितने अजीब रिश्‍ते हैं यहां पे ।।


ये गीत मुंबई के जीवन के लिए रचा गया था । फिल्‍म पेज 3 के लिए । यूं तो मुंबई की कठिन ज़िंदगी के लिए कई गीत रचे गये हैं लेकिन ये आधुनिक गीतों में सरताज माना जाएगा । किस क़दर खोखले और बनावटी होते हैं महानगरों के रिश्‍ते, लेन-देन से नियंत्रित होते हैं महानगरों के रिश्‍ते, काग़ज़ के फूल होते हैं महानगरों के रिश्‍ते---इस बात को बड़ी शिद्दत से कह पाए हैं संदीप नाथ ।

आपको बता दें कि बंगाली बाबू संदीप नाथ ने अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्‍सा इलाहाबाद में बिताया है । वे किसी मित्र के पास मुंबई आए थे और संयोग से उन्‍हें विज्ञापन की दुनिया में काम मिल गया । फिर एक दिन सड़क पार करते हुए उनकी मुलाक़ात शमीर टंडन से हो गयी, जो एक रिकॉर्ड कंपनी में थे और संगीतकार बनने के तमन्‍ना दिल में दबाए हुए थे । दोनों की मित्रता हो गयी और इन दोनों की जोड़ी ने आगे चलकर मधुर भंडारकर की फिल्‍मों में शानदार काम किया । यहां हम इनके दो गीतों की चर्चा कर रहे हैं । पेज 3 के बाद आईये आपको सुनवायें संदीप नाथ का लिखा फिल्‍म ‘कॉरपोरेट’ का ये गीत ।



क्‍यों तरसता है तू बंदे, जल्‍दी ही बदलेगा मंज़र
झांक ले तू एक दफ़ा बस दिल से अपने दिल के अंदर
तुझमें भी वो बात है, तेरी भी औक़ात है तू भी बन सकता है सिकंदर,
ओ सिकंदर ओ सिकंदर, ओ सिकंदर ।।

आंख भला तेरी ग़म से क्‍यों नम होती है
पल में हवाएं पूरब से पश्चिम होती हैं
सावन में फिर रूत बदलेगी, होगी हरी धरती-बंजर
ओ सिकंदर ।।

कोशिश करने से मुश्किल आसां होती है
मिलने से क्‍या बोल तमन्‍ना कम होती है
जो भी मिला वो भी है मुक़द्दर, जो ना मिला वो भी है मुक़द्दर
ओ सिकंदर ।।

फिल्‍म कॉरपोरेट का ये गीत अच्‍छा है । शमीर टंडन ने इसे क़व्‍वाली की शक्‍ल दी है । आवाज़ें कैलाश खेर और सपना मुखर्जी की हैं । ना जाने कितने ही नौजवानों ने इसे अपने मोबाईलों की रिंग-टोन बना रखा है । ना जाने कितने संघर्ष करते लोग इस गाने से प्रेरणा लेते हैं । आप तो जानते हैं कि मुंबई ‘स्‍ट्रग्‍लर्स’ का शहर है । फिल्‍म इंडस्ट्री के जिन कामयाब लोगों को आप जानते और पहचानते हैं, उनके पीछे लाखों ऐसे गुमनाम लोग हैं जो जीवन भर केवल संघर्ष ही करते रह गये और आज भी किये जा रहे हैं । मुझे ये गाना उन लोगों का गाना लगता है । ये बात केवल महानगरों पर नहीं बल्कि हर शहर पर लागू होती है ।

संदीप नाथ और अच्‍छे गीत लिखें, शोर शराबे के शिकार और अर्थहीन बनते जा रहे फिल्‍मी गीतों में सार्थकता की नई बयार लाएं, शुभकामनाएं ।


संदीप नाथ की एक भी तस्‍वीर मुझे इंटरनेट पर प्राप्‍त नहीं हुई । इसलिए ये आलेख बिना तस्‍वीर के प्रस्‍तुत किया जा रहा है ।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

10 टिप्‍पणियां:

काकेश June 19, 2007 at 5:30 PM  

अच्छी जानकारी है.. मैं तो संदीपनाथ जी को नहीं जानता था.. अब जान गया...

Sanjeet Tripathi June 19, 2007 at 5:47 PM  

पेज 3 का यह गाना बहुत ही शानदार बन पड़ा है!
यह नही मालूम था कि यह संदीपनाथ का है!
शुक्रिया!

Anonymous,  June 19, 2007 at 6:51 PM  

Do kalakaron ke jaankaron ka daayara badane ke liye shukriya.

Sandeep Nath aur Shameer Tandon ke agar Albums ho tho oski jaankari deejeeye.

Annapurna

Raviratlami June 19, 2007 at 7:32 PM  

य़े धिनगाना प्लेयर तो मजेदार है. और आपकी टॉप 10 सूची भी.

एक निवेदन है, अपनी टॉप 10 सूची हर रोज नया बनाएँ, ताकि हम हर रोज अपने दिन की शुरूआत इन नायाब गीतों से करें :)

Sagar Chand Nahar June 19, 2007 at 9:36 PM  

यूनूस भाइ
पहली बार कहना पड़ रहा है कि दोनों की आवाज में गाना पसन्द नहीं आया, दरअसल संगीत एकदम सामान्य है और उस पर इतने वाद्य यंत्र इस सुन्दर (लिखे) गाने को सुनने लायक नहीं छोड़ते।
पहली बार ऐसा हुआ है कि आधा गाना सुनने के बाद बंद कर देना पड़ा।
संदीपनाथ के बोल खूबसूरत है, पर संगीत पता नहीं किसका है पर हए एकदम बेकार।

sanjay patel June 20, 2007 at 5:25 AM  

गुमनाम शब्द-साधकों का मान बढा़ दिया आपने...
क्या वह दौर आएगा जब हम गीतकार को भी सेलिब्रिटी का दर्ज़ा दे सकेंगे..ऐसा तो सका तो भरत व्यास,प्रदीप,मजरूह,राजेन्द्रकृष्ण,साहिर,शैलेन्द्र,शकील और राजा मेहन्दी अली खां की रूह को बडी़ शान्ति मिलेगी.

Vikas Shukla June 20, 2007 at 4:58 PM  

yunusbhai,
Lataji se jyada Suresh Wadkar ki awaj me ye geet accha lagata hain.
Kya Page 3 ke sabhi geet Sandeep Nathji ne likhe hain? Usme Ashaji ka ek Item Song bhi accha hain. Maar Dala ya aise hi kuchh bol hain.

ganand June 22, 2007 at 11:55 PM  

thodi aur vistrirt jankari Sandeep Nath ji ke bare mein unhi ki Jubani
http://www.screenindia.com/fullstory.php?content_id=13566

yunus June 23, 2007 at 5:05 AM  

जी. आनंद जी संदीप नाथ के बारे में स्‍क्रीन का लिंक देने का शुक्रिया ।

PD March 15, 2009 at 3:58 AM  

कोई भी गीत नहीं बजा.. :(

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