Tuesday, July 3, 2007

फिल्‍म-संगीत-जगत की कुछ मशहूर हस्तियों के ऑटोग्राफ़ और कुछ पुरानी यादें ।

प्रिय मित्रो
आज अपने पुराने दस्‍तावेज़ खंगाल रहा था कि अचानक एक पुरानी ऑटोग्राफ-बुक कहीं से बाहर निकल आई । मज़ा आ गया । पुराने दिन याद आ गये । ये उन दिनों की बात है जब मैं विविध भारती में नया नया आया था । और हमेशा अभिभूत-सा रहता था, क्‍योंकि लगातार बड़ी-बड़ी फिल्‍मी हस्तियों का आना जाना लगा रहता था । ये वो हस्तियां थीं, जिनके बारे में मैं पत्रिकाओं में पढ़ता था, जिनके गीतों का आनंद लेता था, पर कभी ये नहीं सोचता था कि उनसे मुलाक़ात भी कर पाऊंगा ।

लेकिन विविध भारती में आने से कई तमन्‍नाएं पूरी हो गयीं । उन्‍हीं दिनों मैंने एक सुंदर सी आटोग्राफ बुक खरीदी थी । और जब भी फिल्‍मी कलाकारों से मुलाक़ात का या बातचीत का मौक़ा मिलता था तो उनके ऑटोग्राफ ले लिया करता था । ये शौक़ ज्‍यादा दिन चल नहीं सका । पता नहीं क्‍यों । हालांकि मैंने ताज़ा ऑटोग्राफ लता दीदी का लिया है जो मेरे चिट्ठे पर स्‍थाई रूप से प्रदर्शित किया गया है ।

ये रहा पहला ऑटोग्राफ, जो गीतकार योगेश का है । वही योगेश जिन्‍होंने आनंद, छोटी-सी बात, रजनीगंधा, मंज़ि‍ल जैसी फिल्‍मों में गीत लिखे । ये मेरे प्रिय गीतकार हैं । आजकल योगेश गोरेगांव में रहते हैं । पिछले दिनों लंबी बीमारी के बाद वे फिर से सक्रिय हुए हैं ।
ये रहे निदा फ़ाज़ली के ऑटोग्राफ़ । निदा फ़ाज़ली जाने माने शायर और गीतकार हैं । दोहों को लेकर उन्‍होंने बड़े उम्‍दा प्रयोग किये हैं । कुछ दोहेनुमा शेर पेश हैं--
मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्‍यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ।।

सातों दिन भगवान के क्‍या मंगल क्‍या पीर
जो इक दिन सोए देर तक, भूखा रहे फ़क़ीर ।।

निदा के फिल्‍मी गीत भी कमाल के हैं और ग़ज़लें भी । जैसे उन्‍होंने जगजीत-लता मंगेशकर वाला अलबम सज्‍दा लिखा था । ‘जो भी भला बुरा है अल्‍लाह जानता है, बंदे के मन में क्‍या है अल्‍लाह जानता’ है । या फिर ‘ग़म का फ़साना तेरा भी है मेरा भी, ये अफ़साना तेरा भी है मेरा भी’ । निदा का फिल्‍मी गीत, जो इस वक्‍त याद आ रहा है, तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है , फिल्‍म-‘आप तो ऐसे ना थे’ ।
ये नक्‍श लायलपुरी के ऑटोग्राफ हैं जिनका असली नाम है ‘जसवंत राय’ । नक्‍श साहब वर्सोवा में रहते हैं । और आजकल काम नहीं कर रहे । मेरी पिछले साल टेलीफोन पर उनसे बात हुई थी । तब उन्‍होंने फिल्‍मी दुनिया की कई खट्टी मीठी बातों को ‘शेयर’ किया था । वैसे जब वो विविध भारती में आए थे तो उन्‍होंने अपने कई गानों के बारे में बताया था । ज्‍यादातर उन्‍होंने खैयाम के साथ काम किया है । उनका वो गीत तो आपको याद होगा ‘माना तेरी नज़र में तेरा प्‍यार हम नहीं, कैसे कहें कि तेरे तलबग़ार हम नहीं’ । कभी नक्‍श साहब के बारे में विस्‍तार से लिखूंगा । भूल गया तो आप याद दिला दीजियेगा ।


नक्‍श साहब ने ऑटोग्राफ़ में लिखा है--

मैं वो दिया हूं जिसे आंधियों ने पाला है,
बुझा ना पाओगी, ऐ वक्‍त की हवाओं मुझे ।।

ये रहे मन्‍ना दा के ऑटोग्राफ, उनके बारे में क्‍या कहूं, इसी चिट्ठे पर बहुत कुछ लिख चुका हूं । उनके कितने ऐसे गीत हैं जो दिल में सुकून पैदा करते हैं । जैसे फिल्‍म ‘फिर भी’ का गीत ‘क्‍यूं प्‍याला छलकता है, क्‍यूं जीवन ढलता है, दोनों के मन में कहीं, अनकही विवशता है’ । अभी तक मैं यही जानता था कि ये गीत डॉ. बच्‍चन ने लिखा है पर लावण्‍या जी की टिप्‍पणी आई है और उन्‍होंने बताया है कि ये गीत उनके पिता, जाने माने गीतकार और कवि पं. नरेंद्र शर्मा ने लिखा है । ये महाश्‍वेता देवी के ऑटोग्राफ हैं, जिन्‍हें आप सभी जानते हैं । ये ऑटोग्राफ मैंने मुंबई अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह के दौरान तब लिये थे जब उनकी कृति पर गोविंद निहलानी की बनाई फिल्‍म ‘हज़ार चौरासी की मां’ दिखाई गई थी । उसके बाद महाश्‍वेता देवी को विविध भारती में आमंत्रित किया गया था । अब एक साथ दो हस्तियों के ऑटोग्राफ़ । बांई ओर हैं गीतकार इंदीवर के ऑटोग्राफ़ और दांईं ओर हैं संगीतकार ख़ैयाम के ऑटोग्राफ़ । इंदीवर- जिन्‍होंने ‘चंदन सा बदन’ और ‘कोई जब तुम्‍हारा हृदय तोड़ दे’ जैसे अनमोल नग्‍मे लिखे । और ख़ैयाम साहब से तो कई बार मुलाक़ात हुई है । ‘फिर सुबह होगी’, ‘कभी-कभी’, ‘रजिया-सुलतान’ जैसी फिल्‍मों में संगीत दिया है ख़ैयाम साहब ने । उर्दू ज़बान के माहिर, जब बोलते हैं तो यूं लगता है चाश्‍नी टपक रही है । इनकी पत्‍नी जगजीत कौर ने मेरा पसंदीदा गीत गाया है, ‘तुम अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो’ फिल्‍म शगुन । अब संगीतकार इक़बाल क़ुरैशी के ऑटोग्राफ देखिए और याद कीजिए उनका सबसे अनमोल गीत ‘मयक़दे से ज़रा दूर एक मोड़ पर दो बदन प्‍यार की आग में जल गये’ फिल्‍म चा चा चा । एक घटना आपको बताऊं । इक़बाल कुरैशी साहब गुमनाम मौत मर गये । एक दिन अचानक हमें उनकी याद आई और जब हमने उनके घर फ़ोन लगाया तो उनके घर वालों ने बताया कि वो तो डेढ़ साल पहले चल बसे । हमें बेहद अफ़सोस हुआ । समझ नहीं आया कि ये ख़बर मीडिया के ज़रिये क्‍यों पता नहीं चल सकी । इक़बाल क़ुरैशी ने ऑटोग्राफ के साथ लिखा है—

कामयाबी कोशिशों का नाम है,
आरज़ू ख़ाली-ख़यालो-ख़ाम है ।।


और आखिर में ऑटोग्राफ़, संगीतकार आनंद जी के । ये संगीतकार जोड़ी कल्‍याणजी-आनंदजी का हिस्‍सा हैं । मुझे इस जोड़ी के दोनों संगीतकारों से बार बार मिलने का सौभाग्‍य मिला है । टेक्निकली बहुत ही ज़बर्दस्‍त हैं ये लोग । आज कल्‍याण जी नहीं हैं पर आनंद जी हैं और सहज उपलब्‍ध हैं । उनसे बात करके बहुत आनंद मिलता है ।
उपकार, हिमालय की गोद में, सरस्‍वती चंद्र, कुर्बानी जैसी ना जाने कितनी फिल्‍में हैं इस जोड़ी की । हिंदी फिल्‍म संगीत की एक तूफानी जोड़ी रही है ये ।


मुझे इन आटोग्राफ्स को प्रस्‍तुत करते हुए बहुत आनंद मिल रहा है । बहुत सारी पुरानी बातें और इन कलाकारों से मुलाकातें याद आ गयी हैं । आप बताईये इन्‍हें देखकर आपको कैसा लगा ।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

12 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 3, 2007 at 10:33 AM  

Yunus bhai,
pehle hee maafi maang leti hoon ki ye post Angrezi mei likha rahee hoon ---
Aapka BLOG humesha dekhti hoon.
Ganon ka zikra jo bhee hota hai, bahot pasand aata hai. Iske iiye aapka "shukriya"
Aur haan, " Fir bhee " Film ka jo Geet aapne likha hai, " Kyun pyala chalakta hai,
Kyun Deepak jalta hai,
Dono ke man mei kaheen,
Anhonee , vishamta hai "
Ye Geet Shree Hariwansh Rai " Bachchan ji " ne nahee likha --- Parantu, Papaji ( Pt. Narendra Sharma ) ne likha hai ;-)
Abhee itna hee.....
Sa ~ sneh,
Lavanya

Hindi Blogger July 3, 2007 at 4:08 PM  

बढ़िया संग्रह है आपका. बधाई.

Neeraj Rohilla July 3, 2007 at 4:09 PM  

युनुसभाई,

आप तो कृतार्थ हो गये उस जमाने के महान लोगों से मिलकर और उनके हस्ताक्षर लेकर ।

कभी हिमेश रेशमिया जी से मिलने का मौका मिले तो उनसे भी हस्ताक्षर लेंगे क्या? :-)

साभार,
नीरज

Vikas Shukla July 3, 2007 at 6:26 PM  

नीरजभाई,
आप हिमेश रेशमिया को इतना त्याज्य क्यूं समझते है ? हो सकता है उनका गानेका ढंग विवादास्पद हो, मगर वो धुनें अच्छी कंपोज करते है. अगर उनमें कुछभी गुण ना होते तो उन्हे आज इतनी जबरदस्त लोकप्रियता ना मिली होती.

yunus July 3, 2007 at 7:03 PM  

लावण्‍या जी
अच्‍छा हुआ आपने सुधार दिया । जहां तक मुझे याद आ रहा है, फिल्‍म के टेप पर बच्‍चन जी का नाम है । मैं अपने चिट्ठे पर संशोधन कर रहा हूं । धन्‍यवाद ।
नीरज भाई हिमेश रेशमिया से मेरी मुलाक़ात हो चुकी है । तब वो संगीतकार बनने के लिए संघर्षरत थे और टी.वी. सीरियल प्रोड्यूस करते थे । तब मैंने उनका ऑटोग्राफ नहीं लिया था ।
अब लूंगा ।

Anonymous,  July 3, 2007 at 7:13 PM  

jee chaahata hai aapka khazaanaa loot lun.

Annapurna

संजय बेंगाणी,  July 4, 2007 at 12:48 AM  

आपका यह संग्रह देख अच्छा लगा.

sanjay patel July 4, 2007 at 6:03 AM  

युनूस भाई;
इन शख़्सियतों के दस्तख़त जैसे काल के भाल पर एक प्यार भरा टीका है.आपकी निजी आँटोग्राफ़ बुक के सफ़ों पर महकी ख़शबू अमेरिका में बैठी लावण्या बेन से लेकर मालवा में बसे ख़ाकसार तक पहुँची.साधुवाद

विकास कुमार July 4, 2007 at 11:33 AM  

achha to aap ye sab kiyaa karte hain. mujhe bhi radio me kaam karne kaa enthu ho raha hai ab to. :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 4, 2007 at 12:36 PM  

युनूस भाई ,
आदाब .
"क्यूँ प्याला छलकता है " इन शब्दोँ को सुनकर
बडे चाचाजी श्री हरिवँश राय बच्चन जी की प्रख्यात पुस्तक
"मधुशाला " की याद आती हओ इसलिये, शायद उनका नाम याद आया हो -
अब ये भी बता देँ कि ये टेप किसने बनाया है? टीप्स या या और कोयी?
उन्हेँ भी गलती सुधारने के बारे मेँ बतलाना चाहीये.
मालवा के सँजय भाई,
आपको ये बहन की याद आयी -- धन्यवाद !
अमेरीका मेँ रहूँ या भारत मेँ ~` मेरी माटी तो मेरे भारत की ही रहेगी ना !
"जिस विधि चाहे ,राम गुम्साई, उस विधि ही रह लैइये रे मनवा,
राम, भजन ..सुख लैइये...( ये एक पँक्ति, मेरे लिखे भजन से आप सब को सादर, अर्पित है )
स ~ स्नेह,
- लावण्या

Raviratlami July 4, 2007 at 8:47 PM  

अब आप अपने पुराने शौक को फिर से अपना लीजिए - ऑटोग्राफ़ लेने का.

देखिए, इस विधि से सारे संसार को इन विभूतियों के ऑटोग्राफ़ के दर्शन हो गए.

Manish Kumar July 5, 2007 at 6:07 PM  

वाह! अच्छा लगा ये सकलन देख कर

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