वक्त ने किया क्या हसीं सितम-आईये गीता दत्त की पुण्यतिथि पर उन्हें शिद्दत से याद करें
आज गीता रॉय की पुण्यतिथि है । आज ही दिन सन 1972 में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया था ।
गीता रॉय एक सोंधी, मिट्टी से सनी ख़ालिस आवाज़ । मुझे तो गीता रॉय एकाकी लोगों का स्वर लगती हैं । उनकी आवाज़ के दो शिद्दत भरे छोर हैं, एक तरफ उमंग और उत्साह की लहरें छलक-छलक आती हैं । दूसरी तरफ उनकी आवाज़ में इतना गहरा दुख झलकता है कि मन डूब-डूब जाता है । गीता रॉय की जिंदगी में भी ये दोनों छोर पूरे उफान के साथ आये थे । और जिन हालात में वो दुनिया से गयीं, वो बहुत बुरे, बहुत अभिशप्त थे, वो जानबूझकर दुनिया से गईं, शायद उन्हें मंज़ूर नहीं था कि इन हालात में वो संसार में बनी रहें ।
फरीदपुर पूर्वी बंगाल में पैदा हुई गीता रॉय का परिवार जल्दी ही मुंबई आ गया, गीता रॉय बहुत छोटी उम्र से गाने लगी थीं । दादर में अपने घर में वो कुछ गा रही थीं तभी संगीतकार हनुमान प्रसाद ने उनकी आवाज़ सुनी और सन 1946 में फिल्म भक्त प्रहलाद में दो पंक्तियां गाने का मौक़ा दिया । पर सन 1947 में उन्होंने जिन गानों से तहलका मचा दिया वो थी ‘दो भाई’ । जहां तक मुझे याद आता है इस फिल्म के संगीतकार एस.डी.बर्मन थे । ये है वो गाना जिसको सुनकर आपको शायद यक़ीन भी ना हो कि फिल्म-संसार में ये उनका पहला गीत था ।
सन 1949 में तीन नामी फिल्में रिलीज़ हुई थीं—बरसात, अंदाज़ और महल । इन तीनों में नायिकाओं को एक नई गायिका ने आवाज़ दी थी, इस नई गायिका का नाम था लता मंगेशकर । यहां से शुरू होकर लता जी की सफलता इतनी बड़ी हो गयी कि हम सब जानते हैं । पचास के दशक में लता जी की कामयाबी की आंधी में दो ही गायिकाएं टिक सकी थीं—गीता रॉय और शमशाद बेगम । बहरहाल 1951 में गीता रॉय ने पहली बार खुशी की तरंग वाले रंगारंग गाने गाये, सचिन देव बर्मन के निर्देशन में । उनमें से एक है ये— Get this widget | Share | Track details Get this widget | Share | Track details
बहरहाल गीता रॉय का करियर बेहद तूफानी रहा । कमाल के गीत उन्होंने गाये हैं । लेकिन मैं यहां उनके कुछ ऐसे गीतों का जिक्र करना चाहता हूं जिन्हें पेशेवर कामयाबी भले उतनी ना मिली हो, पर मेरी नज़र में ये गीता रॉय के प्रतिनिधि गीत हैं । और जब मैं ये बात कहता हूं तो मुझे याद आता है फिल्म ‘अनुभव’ का गीत । पता नहीं क्यूं ये भी मेरे मन को बहुत बहुत भाता है । शायद अपनी विकलता के लिए, उफ़ क्या बोल लिखे हैं गुलज़ार ने । पढिये और सुनिए ।
इससे पहले मैं ये कहना चाहता हूं कि इस गाने में गीता राय ने जो लहराहट लाई है, वो कमाल की है । आखिरी पंक्ति में जिस तरह गीता राय हल्की सी हंसी शामिल की है, वो भी अद्भुत है । फिर गुलज़ार जाने कैसे कैसे गीत लिख लाते हैं, भला हो कनु राय का जो इस गद्य नुमा गीत को उन्होंने इतने प्यार से धुन में पिरोया--- Get this widget | Share | Track details
मेरी जां, मुझे जां ना कहो, मेरी जां
जां ना कहो अनजान मुझे, जान कहां रहती है सदा
अनजाने क्या जानें, जान के जाए कौन भला
मेरी जां, मुझे जां ना कहो, मेरी जां ।।
सूखे सावन बरस गये कितनी बार इन आंखों से
दो बूंदें ना बरसें इन भीगी पलकों से
मेरी जां, मुझे जां न कहो, मेरी जां ।।
होंठ झुके जब होठों पर, सांस उलझी हो सांसों में
दो जुड़वां होठों की बात कहो आंखों से
मेरी जां, मुझे जां ना कहो मेरी जां ।।
इसी फिल्म का एक और गाना मुझे याद आता है । कपिल कुमार के बोल । कनु राय की तर्ज़ । इस गाने को पढियेगा भी ज़रूर, लेखनी में भी ज़रा अलग ही तरह का गीत है ये । Get this widget | Share | Track details
कोई चुपके से आके, सपने सजा के, मुझको जगाके बोले मैं आ रहा हूं
कौन आये ये मैं कैसे जानूं ।
दूर कहीं बोले पपीहा, पिया आ, मौसम सुहाना,
तरसे है कोई यहां, आ भी जा, करके बहाना,
कौन सा बहाना, कैसा बहाना, कितना मुश्किल है ये बताना
देखो फिर भी कोई भा रहा है
कौन भाए ये मैं केसे जानूं ।। कोई चुपके से आके ।।
प्यासा है दिल का गगन, प्यार की अग्नि जलाए,
पलकों में क़ैद है सावन, होठों तक बात ना आए,
बात आते आते रात हो गई, छांव की बारात छोड़ गयी साथ
बात आते आते हो गयी रात, इतनी रात गये कैसे गाऊं
देखो फिर भी कोई गा रहा है, कौन गाए ये मैं कैसे जानूं,
कोई चुपके से आके ।।
गीता रॉय की गुरूदत्त से मुलाकात सन 1951 में फिल्म जाल के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी । आखिरकार छब्बीस मई 1953 को गीत रॉय और गुरूदत्त ने ब्याह रचा लिया । लेकिन 1957 आते-आते गुरूदत्त का नाम वहीदा रहमान से जुड़ने लगा और गीता रॉय का दिल छलनी होता चला गया । दिक्कतें इतनी बढ़ीं कि गीता अपने बच्चों को लेकर अलग रहने लगीं । इस बीच पारिवारिक जिंदगी की परेशानियों ने उनके गाने पर असर डाला और वो संगीतकारों से मुंह चुराने लगीं । रिहर्सलों में नहीं जाती थीं । फोन नहीं उठाती थीं । सोचिए कि यही वो दौर है जब उन्होंने बड़े दर्द भरे गीत गाये हैं । ऊपर के दोनों गीत इसी तरह के हैं । शायद मौक़ा मिले तो आगे चलकर मैं इस दौर के गानों की फेहरिस्त तैयार करके आपके सामने रखूंगा ।
आखिरकार सात साल बाद 10 अक्टूबर 1964 को गुरूदत्त नहीं रहे ( उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म कर दी ) गीता राय का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया । आर्थिक मुसीबतें बढ़ गयीं, स्टेज शो और गानों के ज़रिए उन्होंने खुद को संभालना शुरू किया । शराब की लत बढ़ती चली गयी । और बीस जुलाई 1972 को उन्होंने इतनी शराब पी ली कि वो संसार और संगीत के परे चली गयीं । छोड़ गयीं अपने दर्दीले नग्मे हम सबके लिए । Get this widget | Share | Track details
वक्त ने किया क्या हंसी सितम, तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम
बेक़रार दिल इस तरह मिले, जिस तरह कभी हम जुदा ना थे
तुम भी खो गये, हम भी खो गये, एक राह पे चल के दो क़दम
वक्त ने किया ।।
जायेंगे कहां कुछ पता नहीं, चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है कुछ पता नहीं, बुन रहे हैं दिल ख्वाब दम-ब-दम
वक्त ने किया ।।
ये गीत कैफ़ी आज़मी ने लिखा है और सचिन देव बर्मन की तर्ज़ ।
गीता राय और गुरूदत्त की जिंदगी पर ये गाना कितना फिट बैठता है ।
गीता राय को हमारी श्रद्धांजली ।
उनके गीत हमारे अकेलेपन का सहारा बने रहेंगे ।
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15 टिप्पणियां:
युनूस भाई...गीताजी अवसाद का सबसे सुरीली आवाज़ हैं..इसमें कोई शक नहीं कि गुरूदत्त की ज़िन्दगी में एक और नाम आने से वे व्यथित थीं लेकिन इसके साथ ही ज़माने ने भी उनके साथ न्याय नहीं किया.ये समय की रीत है कि चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं .गीताजी-गुरूदत्त जी के अलगाव के समय में एक और गड़बड़ ये हुई कि संगीतकारों ने इस शहद सी मीठी आवाज़ वाली गायिका को काम देना बंद कर दिया. इन संगीतकारों की सूची में दिवंगत ओ.पी.नैयर भी हैं और उन्होने ऐसा क्यों किया ये ज़माना जानता है.गीता दत्त भारतीय चित्रपट संगीत का वह दमकता हीरा हैं जिसकी आब कभी मध्दिम नहीं पडे़गी.मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है(शायद मित्र सहमत न हों)कि अधिकांश गायिकाओं को सुनते वक़्त नायिकाएं ध्यान में आती हैं (ये भी किसी कमाल से कम नहीं)लेकिन गीता दत्त जैसी गुलूकारा को सुनें तो दृष्य,नायिका और गायिका तीनो ज़हन में उभरते हैं ....जिन जोडि़यों के अलगाव को याद कर मन दु:ख से भर जाता है उनमें से एक है..गीता दत्त - गुरूदत्त...मेरे कमेंट को इस नोट को एक प्रश्न पर ख़त्म करना चाहूंगा कि क्या क्रिएटिविटी इतनी ख़तरनाक चीज़ है कि वह मनुष्यता को भी लील जाती है ? गीता दत्त की याद और ये गीत वक्त ने किया क्या हँसी सितम...हम रहे न हम तुम रहे न तुम...क्या गीतकार के पूर्वाभास की तर्जुमानी नहीं
Aaj geeton ke jis culture ke liye Asha Bhonsle ko jana jatha hai oski shuruvaat GeetaDatt ne film Havadaa Bridge ke is geet se ki thi shaayad -
Mera naam chin chin choo
kya meri yeh jaankari sahi hai ?
Annapurna
बहुत ख़ूब ! !
साधुवाद ! !
भई वाह वाह युनूस भाई
भौत खजाना बांध रक्खा है
लूटना पड़ेगा मुंबई आके
जी डीवी पलुस्करजी की कुछ धन-दौलत हो, तो उसे भी पब्लिकार्थ रखा जाये, सविनय निवेदन है।
पलुस्करजी का एमपी थ्री फार्मेट में कहीं कुछ मिल सकता है क्या।
सादर
आलोक पुराणिक
सारथी जी की सहायता से मे हिन्दी मे लिखने की कोशिश कर रही हू
अन्नपूर्णा
संजय भाई आपकी टिप्पणियां काफी झंकार भरी और मार्मिक होती हैं । मैं सहमत हूं कि ज़माना चढ़ते सूरज को सलाम करता है, पर गीता दत्त भी शराब की लत के बात काफी बहक गयी थीं । ये भी एक कारण था । निस्संदेह गीता दत्त की गायकी हमें दृश्य, नायिका, और गायिका तीनों याद आते हैं । वाक़ई रचनात्मक ख़ब्त जानलेवा हो सकती है । जैसी गुरूदत्त और गीता दत्त के मामले में हुई ।
अन्नपूर्णा जी आपने एक विचारणीय मुद्दा उठाया है, मेरा अंदाज़ा है कि आपकी जानकारी सही है । फिर भी पड़ताल करता हूं । आशा जी इससे पहले चुलबुला नहीं गाती थीं । ये शुरूआत संभवत: गीता जी ने की होगी ।
आलोक भाई अच्छा याद दिलाया । जल्दी ही पलुस्कर जी की रचनाएं खोजकर लाऊंगा ।
अनुराग आपका भी धन्यवाद
अच्छा लगा भाई । आप को काम एक दम अलहदा है। अलग है
युनूसभाई,
आज आपने गीता दत्तजी की याद दिला के बडा अच्छा काम किया है. उनका नाम सुनते ही मुझे याद आने लगता है साहब बीवी और गुलाम का उनका वो गीत "कोई दूरसे आवाज दे चलो आओ..." इस गीतके अंतरेके बोल है, "रात रात भर इंतजार हैं...दिल दर्दसे बेकरार है.." सुनकर लगता है जैसे वो अपनीही कहानी गुनगुना रही हो.
उनकी आवाजकी एक और खासियत ये थी की जितनी वो नटखट बन जाती थी उतनी ही भावुक और भक्तीभाव पूर्ण. याद किजिये आशाजी के साथ उन्होने गाया हुवा यह गीत " जानु जानु री काहे खनके है तोरा कंगना.." और ये भजन " ना मै धन चाहूं ना रतन चाहूं"
ओ.पी. साबने अपने इंटरव्यूमें इसका जिक्र किया था के उनके हाथों गीताजी पर अन्याय हुवा है. आखिरी दिनोंमें गीताजी ने उन्हे फोन करके कहा था, " नैयर साब, आप तो हमें बिलकुलही भूल गये.." तब कही जा के उनको अपनी गलतीका अह्सास हुवा. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी.
ऐसा कहा जाता है की आशा जी की आवाजमें गीताजी और शमशाद बेगम की आवाज का संगम है. गीताजी तो चली गयी. शमशाद बेगम शायद है. मगर हम उन्हे भी भुला चुके है. शायद उन्हे ढूंढकर लानेका काम आपको या विविध भारतीको ही करना पडेगा.
यूनुस भाई, आपको क्या कहूं! मेरे बहुत पसंददीदा गीतों में से हैं "कोई चुपके से आके" और "मेरी जां". बहुत दिनों से इन्हें सुनना चाहता था पर सुन नहीं पाया.
बहुत बहुत बहुत शुक्रिया
गीता दत्त की आवाज का जादू कभी भी कम नही होगा चाहे कोई भी समय हो।
aur han aaj bade dino baad dhurvirodhi ji aap ke blog par dikh rahe hai.
कोई चुपके से आके.....वो ही हाल आपकी हर पोस्ट का है. जगा देती हैं भाई बिल्कुल. बहुत बहुत आभार.
गुलजार का मेरी जां..मेरा प्रिय गीत रहा है। मेरी बड़ी दीदी अक्सर इसे और बाबूजी धीरे चलना को कॉलेज के जमाने में सुनाया करती थी जब भी उनसे गाने को कहा जाता था।
गुरुदत्त के जीवन पर आधारित 'आमेन ' में वहीदा जी के चलते आए तनाव का विस्तार से चित्रण हुआ है। एक जगह गीता , वहीदा के बारे में अब्रार अलवी से कहती हैं
......खैर छोड़िए भी। अपनी इंडस्ट्री में रातों रात आदमी बड़ा हो जाता है...मिनटों में सब कुछ भूल जाता है. दत्त साहब बड़े हो गए, उन्हो्ने मुझे भुला दिया। अब वह बड़ी बन गई है और.....! चलता ही है। उलझनों ओर गुत्थियों का दौर खत्म हो रहा है।.......
एक बेशकीमती पोस्ट के लिए बधाई !
युनूस भाई,
श्रध्धा के फूल रुपी गीत गीता जी के लिये,
आपने यहाँ रखे -- उसका शुक्रिया --
मेलन्कली= मतलब विषाद, जीवन का घना रँग है
"वक्त ने किया क्या हसीँ सितम "
' वक्त करता जो वफा, आप हमारे होते '
वक्त से कल और आज, ...
ये वक्त कहीँ भी ठहरता ही नहीँ ..किसी के लिये नहीँ ..
मुझे याद है, गीता दत्त जी के निधन के दिन आधे दिन की छुट्टी थी --
और लता दीदी बेहद दुखी हो रहीँ थीँ -- कहा, 'बडी जल्दी गीता हमेँ छोड गई..
ये भी क्या उम्र है जाने की? "
गीता जी के दोनोँ बेटे, अरुण व तरुण ना जाने आज कहाँ होँगे? :-(
एक और बात, कल्पना लाजमी , गुरु दत्त जी की बहन की बेटी हैँ -
-- शेष फिर कभी,
स स्नेह,
--लावण्या
प्रिय यूनुस भाई,
अभी तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा तथा फोटो भी देखा। क्या तुम वही यूनुस हो जो जबलपुर थे और उस समय पार्ट/फुल टाइम काम की तलाश कर रहे थे। यदि तुम वही हो, तो मैं तुम्हारे उस दौर का साथी हूँ मुझे इस ईमेल पर संपर्क करो:
anand_vijay_dubey@yahoo.com - आनंद
बहुत
बहुत
बहुत
आभार भाई।
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