Saturday, July 28, 2007

श्रृंखला: संगीतकार दानसिंह के अनमोल नग्‍मे:दूसरा भाग —पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो


रेडियोवाणी पर मैं इन दिनों आपको कम चर्चित संगीतकार दानसिंह के गीत सुनवा रहा हूं । मित्र विकास शुक्‍ल ने मुझसे दानसिंह पर काम करने का अनुरोध किया था । और मुझे ये अनुरोध वाक़ई मौज़ूं लगा । कल मैंने आपको सुनवाया था मुकेश का गाया गीत ‘वो तेरे प्‍यार का ग़म, इक बहाना था सनम’ । फिल्‍म ‘माई लव’ का गीत था । आईये आज आपको सुनवायें ‘भूल ना जाना’ फिल्‍म का गीत ।

‘भूल ना जाना’ फिल्‍म कब आई और कब गई, ये हमारी चर्चा का विषय नहीं, बल्कि इसका संगीत है हमारी चर्चा का विषय । और वो भी इसलिये कि इनी-गिनी दो तीन फिल्‍मों में संगीत देने वाले संगीतकार दान सिंह ने इन गानों में कमाल का जादू रचा
है ।

मुझे वाक़ई ये सोचकर कष्‍ट होता है कि इन संगीतकारों को और काम क्‍यों नहीं मिला । कितनी बड़ी फेहरिस्‍त है कम चर्चित संगीतकारों की । जिन पर मैं आगे चलकर कभी चर्चा करूंगा । ज़रा इन नामों पर ग़ौर कीजिये—

इक़बाल कुरैशी (जिनका सबसे लोकप्रिय गीत है ‘इक चमेली के मंडवे तले—फिल्‍म चा चा चा),

दत्‍ताराम (जिनके बारे में मैं लिख चुका हूं)

एन.दत्‍ता( फिल्‍म-धर्मपुत्र के गीत याद कीजिये, ‘मैं जब भी अकेली होती हूं, ये किसका लहू ये कौन मरा, ये मस्जिद है वो बुतख़ाना)

लच्‍छीराम (रजिया सुल्‍ताना फिल्‍म का गीत—ढलती जाये रात कह दे दिल की बात)

लाला असर सत्‍तार ( फिल्‍म संग्राम का गाना—मैं तो तेरे हसीन ख्‍यालों में खो गया)

रामलाल ( पंख होते तो उड़ आती रे—फिल्‍म सेहरा)

बाबुल (जुल्‍फों की घटा लेकर सावन की परी आईं—फिल्‍म रेशमी रूमाल)

रॉबिन बैनर्जी( फिल्‍म सखी रॉबिन का गीत—तुम जो आओ तो प्‍यार आ जाए)

याददाश्‍त के आधार पर लिखी गयी इस फेहरिस्‍त को अगर मैं अपनी संगीत की पोथियां खोलकर बढ़ाऊं तो ये ल...म्‍...बी बनती चली जायेगी । लेकिन यहां ये बात रेखांकित करनी ज़रूरी है कि फिल्‍म-संसार में सब लोग कामयाब नहीं होते । हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि कामयाब लोगों की चमक-दमक के पीछे एक अंधेरा भी है, जहां कम कामयाब या नाकाम लोग हैं । वो जिन्‍हें हमने और आपने भुला दिया । उन्‍हें वन फिल्‍म वंडर कहा गया । पर शायद हालात ने या फिर जाने किस वजह ने उन्‍हें कामयाब नहीं होने दिया । ये निश्चित है कि इनमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी । ये बात तो इनका काम कहता ही है । शायद मैं इनके गीत कभी आप तक ला सकूं, नहीं लाया तो कृपया रेडियो सुनिए, खोजबीन करिए और इन गानों को सुनिए, गुनिए और बुनिए । अगर अब तक आप अनभिज्ञ हैं तो आपको अहसास होगा कि संगीत के इस ख़ज़ाने से कितना दूर थे आप, और अगर आप इनसे वाकिफ़ हैं तो दिल में दर्द का गहरा अहसास होगा, आपको लगेगा कि काश ये लोग कामयाब होते तो शायद संगीत की ये विरासत और संपन्‍न
होती ।

बहरहाल चलिये फिर से अपने आज के गाने पर आते हैं । आज मैं आपको सुनवा रहा हूं ‘पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो’ । फिर से मुकेश का गाया गीत, इसे गुलज़ार ने लिखा है, और इसमें गुलज़ार का मिज़ाज थोड़ा सा कम है, ये काफी पारंपरिक किस्‍म का खामोश सा गाना है । इस गाने के संगीत पर भी ग़ौर कीजिये और बताईये कि आपने इसकी कौन कौन सी बारीकियां नोट कीं ।

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पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो
मुझे तुमसे अपनी खबर मिल रही है ।।

कई बार यूं भी हुआ है सफ़र में,
अचानक से दो अजनबी मिल गये हों जिन्‍हें रूह पहचानती हो अज़ल से..........अज़ल--जन्‍म से पहले
भटकते भटकते वही मिल गये हों
कुंवारे लबों की क़सम तोड़ दो तुम
ज़रा मुस्‍कुराकर बहारें संवारो
पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो ।।

ख़्यालों में तुम ने भी देखी तो होंगी
कभी मेरे ख़्वाबों की धुंधली लकीरें
तुम्‍हारी हथेली से मिलती हैं जाकर
मेरे हाथ की ये अधूरी लकीरें
बड़ी सरचढ़ी हैं ये जुल्‍फें तुम्‍हारी
ये जुल्‍फें मेरे बाज़ुओं में उतारो
पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो ।।



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4 टिप्‍पणियां:

विकास कुमार July 28, 2007 at 6:46 PM  

पहली बार इसे सुना...और सुनते ही रह गया।
किस तरह आपको धन्यवाद दूं, समझ नही आता।

Pramod Singh July 28, 2007 at 10:27 PM  

मुझे लगता है रेडियोवाणी में एक सेक्‍शन सिर्फ़ ऐसे लोगों की रचनाओं को समर्पित होनी चाहिए जिन्‍हें सुन-सुनाके अब पूरी तरह भुला दिया गया है. कनु राय की याद आती है? 'अनुभव' का 'मुझे जां न कहो मेरी जां'? इन खूबसूरत कम वाद्यों वाले भले संगीतकार को शायद बासु भट्टाचार्य से अलग किसी ने कभी भाव ही न दिया! उन पर भी लौटिये!

raj August 4, 2007 at 7:22 AM  

आपका blog अच्छा है
मे भी ऐसा blog शुरू करना चाहता हू
आप कोंसी software उपयोग किया
मुजको www.quillpad.in/hindi अच्छा लगा
आप english मे type करेगा तो hindi मे लिपि आएगी

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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