Friday, July 27, 2007

संगीतकार दानसिंह के अनमोल नग्‍मे—वो तेरे प्‍यार का ग़म



दो दिन पहले मैंने रेडियोवाणी पर छाया गांगुली के बारे में लिखा था और उनके गीत सुनवाये थे । इस पोस्‍ट पर हमारे नियमित पाठक और मित्र विकास शुक्‍ला ने फ़रमाईश की कि दान सिंग जी की चर्चा की जाए । तो आईये आज से एक एक करके रोज़ सुने जाएं दानसिंह के तीन अनमोल नग्‍मे । इनमें से दो गाने एक ही फिल्‍म के हैं और इस फिल्‍म का नाम है ‘भूल ना जाना’ । जबकि एक गाना है फिल्‍म ‘माई लव’ का ।

आज आपके लिए फिल्‍म ‘माई लव’ का गीत । मुकेश के बहुत प्‍यारे गानों में इसकी गिनती होती है ।

गिटार और पियानो की बेहतरीन तरंगों और कुछ अलग तरह की बीट्स के साथ शुरू होता है ये गीत । मुकेश मुखड़ा गाते हैं और उसके बाद पियानो की स्‍वरधारा.......इसके कुछ ही पलों बाद आती है मेरे प्रिय वाद्य सेक्‍सोफ़ोन की तरंगें । जैसे किसी की विव्‍हल पुकार । और ये पुकार एकदम से ठहर जाये तब आता है अंतरा मुकेश की आवाज़ में ।
मुकेश की आवाज़ की ख़ासियत ये है कि वो बिल्‍कुल सहज गायक हैं । उनके हर गीत को सुनकर यही लगता है कि वो चेहरा बिगाड़ कर गाने वाले गायक नहीं थे । वो एक जेन्‍टलमैन की तरह गाते थे । इस गाने में उनकी संयत आवाज़ वाक़ई समां बांध देती है ।

ये गीत ठेठ आनंद बख्‍शी शैली का गीत है ।
बख्‍शी साहब को बेवफाई बर्दाश्‍त नहीं । उनकी संगीत-यात्रा में दर्जनों ऐसे गीत हैं जिनमें टूटा हुआ दिल आंसू नहीं शोले उगलता है ।

अफ़सोस कि दान सिंह के बारे में मैं ज्‍यादा कुछ नहीं खोज सका । मुझे उनकी तीन ही फिल्‍मों की जानकारी है । ‘माई लव’, ‘भूल ना जाना’ और ‘बवंडर’ ।

कुछ बरस पहले जाने-माने फिल्‍मकार जगमोहन मूंदड़ा ( फिल्‍म कमला, मॉनसून ) विविध भारती में आए थे, मौक़ा था उनकी फिल्‍म ‘बवंडर’ की शूटिंग का । मैंने उनसे लंबी बातचीत की थी और उन्‍होंने बताया था कि राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि पर होने की वजह से उन्‍होंने इसके लिए संगीतकार के रूप में दान सिंह का चयन किया है । मैंने पूछा कि दानसिंह की क्‍यूं । उन्‍होंने कहा कि वो फिल्‍म संसार के विरले संगीतकारों में से एक हैं, इसलिये । जगमोहन मूंदड़ा ने ही मुझे बताया कि दानसिंह शायद जयपुर में रह रहे हैं । फिल्‍मी दुनिया की चमक दमक से उन्‍होंने नाता तोड़ लिया है । बवंडर का संगीत शानदार था । इस फिल्‍म के गीत भी मेरे पास हैं । और किसी दिन रेडियोवाणी पर ज़रूर चढ़ाए जायेंगे ।

बहरहाल फिलहाल सुनिए फिल्‍म ‘माई लव’ का ये गीत ।
ये दुर्लभ भी है और अनमोल भी ।


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वो तेरे प्‍यार का ग़म, इक बहाना था सनम
अपनी किस्‍मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया ।।

ये ना होता तो कोई दूसरा ग़म होना था
मैं तो वो हूं जिसे हर हाल में बस रोना था
मुस्‍कुराता भी अगर तो छलक जाती नज़र
अपनी किस्‍मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया ।।

वरना क्‍या बात है तू कोई सितमगर तो नहीं
तेरे सीने में भी दिल है कोई पत्‍थर तो नहीं
तूने ढाया है सितम, तो यही समझेंगे हम
अपनी किस्‍मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया ।।

वो तेरे प्‍यार का ग़म ।।

रेडियोवाणी पर दानसिंह के गानों पर आधारित ये श्रृंखला जारी रहेगी ।

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11 टिप्‍पणियां:

अजय यादव July 27, 2007 at 8:23 PM  

युनुस भाई!
आप लगातार इतने खूबसूरत गीत सुनवाकर हमारी आदतें खराब कर रहे हैं. ये गाना मुझे बहुत पसंद है, पर आज तक इसके संगीतकार के बारे में अनजान ही था. आज दानसिंह जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.
बहुत बहुत शुक्रिया!

Poonam July 27, 2007 at 9:15 PM  

देर से ही सही ..."एक नाज़ुक सी लडकी ..." सुनकर बचपन याद आ गया.यह गीत मैंने अपने पापा के मुँह से सुना था मम्मी को सुनाते हुए .क्या कहूँ ...आपकी हर पोस्ट आपके पेश किये हुए गीतों की तरह अनमोल है.और अब आफिस में मैं आपका चिट्ठा खोलकर गीत सुनते हुए काम करती हूँ.एक गुज़ारिश है...खैय्याम साहब की पत्नी की गायी गज़ल "तुम अपना रंजो-ग़म ,अपनी परेशानी मुझे दे दो..."कहीं से सुनवाएं.

Hindi Blogger July 28, 2007 at 12:32 AM  

एक और बेहतरीन प्रस्तुति. नियमित रूप से आपके पोस्ट पढ़े जा रहे हैं. धन्यवाद!

Vikas Shukla July 28, 2007 at 2:49 AM  

युनूस भाई,
नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी
मेरी फर्माइश पूरी करने के लिये धन्यवाद !
अब इंतजार है दान सिंगजी के अगले गीत का !

Udan Tashtari July 28, 2007 at 3:54 AM  

बेहतरीन, युनुस भाई.

Tarun July 28, 2007 at 3:04 PM  

युनुसजी, धन्यवाद गीत सुनाने के लिये, बहुत दिनों बाद ये गीत सुनने को मिला।

Anonymous,  July 28, 2007 at 6:53 PM  

ये गीत भूले बिसरे गीत में बहुत बार सुना लेकिन दानसिंह से परिचय आपने ही कराया।

आजकल अपने कैमरे से खिंचे फोटो आप नही रख रहे ?

तकनीकी कमियों के बावजूद भी अपने कैमरे से खिंचे फोटो अच्छे लगते है।

अन्नपूर्णा

Pramod Singh July 28, 2007 at 10:53 PM  

रिश्‍तेदारी की किसी शादी में बहुत छोटा रहा होऊंगा जब पटना गया था. अजनबीयत में घबराया घर से भागकर जाने किस जगह किस सिनेमा हॉल में 'माई लव' देखी थी. शाम की सुनहली रोशनी और सड़क पर लीची बेचते दुकानदारों की.. और शशी कपूर और इस गाने की याद अब तक बची हुई है. मज़ा आया. चार मर्तबे सुन चुका.

अनामदास July 28, 2007 at 11:37 PM  

जनाब आपका रेडियोवाणी मेरे लिए अब एडिक्शन बन गया है, कमाल की चीज़ें सुना रहे हैं आप. जारी रखिए, बहुत लोगों की दुआएँ बटोर रहे हैं आप.

Sanjeet Tripathi July 30, 2007 at 4:18 AM  

गाना तो कई बार सुना है यह पर यह नही मालूम था कि संगीतकार कौन है, शुक्रिया भाई यह जानकारी देने के लिए!!
एक से एक जानकारी देते रहतें है आप।
आभार!!

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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