देखिए नेहरू जी का भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’, साथ में सुभाषचंद्र बोस का वीडियो, पंद्रह अगस्त 47 का वीडियो और रामधारी सिंह दिनकर की कविता
कल पंद्रह अगस्त है, भारत की आज़ादी की साठवीं सालगिरह ।
मुझे हमेशा से लगता रहा है कि क्या कभी हम देख सकते हैं कैसा रहा होगा पंद्रह अगस्त 1947 का भारत ।
आकाशवाणी से मैंने कई बार मैंने पं. जवाहर लाल नेहरू का भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ सुना है । आज अचानक इसका वीडियो मिल गया, तो सोचा चलो सबको दिखाएं--
ये रहा वो वीडियो--
इस भाषण का आलेख विकीपीडिया पर उपलब्ध है । इसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।
ये नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आवाज़ और उनका एक दुर्लभ वीडियो है--
और ये किसी डॉक्यूमेन्ट्री का हिस्सा—जिसमें भारत की आज़ादी की ख़बर दी गई है ।
और अंत में रामधारी सिंह दिनकर की ये कविता—जो कविता कोश में मिली, इसे मैंने बचपन में अपने कोर्स में पढ़ा था--
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल
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6 टिप्पणियां:
बडी ही अनमोल धरोहर चुन कर लाये हैँ ..इस मौके पर....नायाब खजानो से भरा है आपका चिट्ठा..मन करता है सारा का सारा लूट लिया जाये..
हम सभी तक पहुँचाने के लिये
धन्यवाद.
"दिनकर" िज िक एक और रचना मुझे यद आ रिह है
जरा गौर फ़रमाएँ
सच् है , विपत्ति जब आती है ,
कायर को ही दहलाती है ,
सूरमा नहीं विचलित होते ,
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,
विघ्नों को गले लगते हैं ,
कांटों में राह बनाते हैं ।
मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं ,
संकट का चरण न गहते हैं ,
जो आ पड़ता सब सहते हैं ,
उद्योग - निरत नित रहते हैं ,
शुलों का मूळ नसाते हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं ।
है कौन विघ्न ऐसा जग में ,
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है ,
पत्थर पानी बन जाता है ।
गुन बड़े एक से एक प्रखर ,
हैं छिपे मानवों के भितर ,
मेंहदी में जैसी लाली हो ,
वर्तिका - बीच उजियाली हो ,
बत्ती जो नहीं जलाता है ,
रोशनी नहीं वह पाता है ।
अरे वाह, स्वतंत्रता दिवस की वर्षगाँठ पर यह अनमोल तोहफा. बहुत ही नायाब. बहुत बहुत आभार इस प्रस्तुति का.
समीर जी से सहमत हूँ। सचमुच यह किसी अनमोल उपहार से कम नही है। बधाई एवम शुभकामनाए।
नेहरू जी का भाषण कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसकी भाषा कितनी सरल है, कितनी आसान - यही किसी भी भाषण या लेख को यादगार बनाते हैं।
नेहरू जी का भाषण कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसकी भाषा कितनी सरल है, कितनी आसान - यही किसी भी भाषण या लेख को यादगार बनाते हैं।
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