Sunday, August 19, 2007

‘अपने आप रातों में’ और ‘आप यूं फासलों से गुज़रते रहे’—शंकर हुसैन फिल्म के दो बेमिसाल गीत, श्रृंखला की आखिरी कड़ी

‘शंकर हुसैन’ फिल्‍म के गानों पर मैंने एक श्रृंखला शुरू की थी । पिछले हफ्ते कोशिश की थी कि लंबे समय से टलती आ रही इस श्रृंखला को पूरा कर लिया जाये । लेकिन कुछ दिनों से म्‍यूजिक इंडिया ऑनलाईन का प्‍लेयर काम नहीं कर रहा था । इसलिए कोई फ़ायदा ही नहीं था । दरअसल ये गाने म्‍यूजिक इंडिया ऑनलाईन के सिवा कहीं दिख नहीं रहे हैं । बहरहाल आगे पढ़ने से पहले अगर आप इस श्रृंखला का पहला भाग पढ़ना चाहते हैं तो ये रहा लिंक--


कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ।

हां तो मैं कह रहा था कि कई दिनों से ‘शंकर हुसैन’ फिल्‍म के गाने सुनवाकर इस श्रृंखला को खत्‍म करना चाह रहा था । पर सुनाने का एक तरीक़ा भी तो होता है ना । ये क्‍या कि बस उठे और गाना बजा दिया, लो सुनो । जी नहीं । गाना सुनाने का अपना अंदाज़ होता है । एक माहौल चाहिये, जिसमें व्‍यक्ति जिंदगी के भभ्‍भड़ से बाहर‍ निकलकर गीत की रचना और धुन में प्रवेश कर सके और फिर उसे सुकून का विंध्‍याचल नसीब हो पाए ।

तो आज बहुत दिनों बाद ऐसा रविवार मिला है, जब फ़ुरसत की बयार चल रही है, मुंबई के ‘लीकिंग स्‍काई’ से डरावनी बारिश नहीं हो रही बल्कि मद्धम फुहारें चल रही हैं । विविध भारती की उद्घोषिका मेरी पत्‍नी (गृहस्‍थी के किसी सामान की) फ़रमाईश नहीं कर रही है, सुबह के अख़बार पढ़कर एक तरफ रख दिये गये हैं । ब्रॉडबैंड, जिसने पिछले दिनों हमें चिट्ठाकारी से जुदा कर दिया था आज मेहरबान है, यानी पूरा समां है । आईये सुनें—शंकर हुसैन फिल्‍म के नग्मे ।

पहले
ज्ञान जी का मनपसंद गाना, जिसके बोल ‘कैफ़ भोपाली’ ने लिखे हैं, आपको बता दूं कि कैफ़ भोपाली पर आप जल्‍दी ही मेरी एक लंबी पोस्‍ट पढ़ेंगे, जिसमें उनकी शायरी से परिचित कराया जायेगा आपको । ख़ैयाम की तर्ज़ है जो अपनी धुनों की नाज़ुकी के लिए जाने जाते हैं । प्रदीप कुमार कंवलजीत सिंह और मधु चंदा इस फिल्‍म के सितारे थे और निर्देशक थे यूसुफ़ नकवी । पता नहीं इस फिल्‍म का क्‍या हश्र हुआ पर गाने इतने बेमिसाल थे कि आज भी दुनिया भर में पसंद किये जाते हैं ।

मैं जिस गीत की बात कर रहा हूं वो है—‘अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं’
इस गाने को सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए ।

गाना बहुत मीठी धुन के साथ शुरू होता है, जिसमें सितार की लहराहट है । इसके बाद लता जी का सघन स्‍वर, जज़्बात से धड़कती एक शीरीं आवाज़ । यूं लगता है जैसे लता जी अपने आप में ही मगन हैं, कहीं किसी और ही दुनिया से आ रही है उनकी आवाज़, इस गाने का इंटल्‍यूड सुनिए तो हैरत होती है कि ऐसा मद्धम और ख़ामोश इंटरल्‍यूड भी हो सकता है, जबकि आज ढक चिक ढक चिक करते हुए संगीत का सत्‍यानाश-सा हो रहा है ।

शायरी के पैमाने पर ये गीत बहुत ऊंचा है । इतने नाज़ुक जज़्बात इस गाने में पिरोये गये हैं कि कहने ही क्‍या, चूडियों के खनकने, पायलों के छनकने, दरवाज़ों के चौंकने, गागरों के छलकने को कैफ़ साहब ने सीधे शायरी में उतार दिया है । इसकी जोड़ का दूसरा गीत आपको खोजे नहीं मिलेगा । कैफ़ साहब शायरी में काफी ऊंचाई पर पहुंचे पर संगदिल फिल्‍मी दुनिया में उन्‍हें कामयाबी ज्‍यादा नहीं मिली ।

मुझे याद है कि मुशायरों में कैफ़ साहब बेहद बुज़ुर्ग कांपते हाथ पैरों के साथ आते थे और फिर अपने पोपले मुंह से सुनाते थे अपनी ग़ज़लें—वो भी तरन्‍नुम में । और यक़ीन मानिए लोग फिर फिर सुनाने की गुज़ारिश करते थे । ये मेरे किशोरावस्‍था कि दिनों की अनमोल याद है । कैफ़ की वो ग़ज़ल सुनी है आपने--

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चांद पुराना लगता है
तिरछे तिरछे तीर नज़र के चलते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है
पांव ना बांधा पंछी का पर बांधा है
आज का बच्‍चा कितना सयाना लगता है ।।

ख़ैर कैफ़ के बारे में ज्‍यादा जानना चाहते हैं तो मैं जल्‍द ही ला रहा हूं अपनी एक विस्‍तृत पोस्‍ट । इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार ।


फिलहाल ये गाना सुनिए—और पढिये ।

इसके बोल ये रहे—
अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं
चौंकते हैं दरवाज़े, सीढियां धड़कती हैं
अपने आप ।।

एक अजनबी आहट आ रही है कम-कम-सी
जैसे दिल के परदों पर गिर रही हो शबनम-सी
बिन किसी की याद आए, दिल के तार हिलते हैं
बिन किसी के खनखनाए चूडियां खनकती हैं
अपने आप ।।

कोई पहले दिन जैसे घर किसी-के जाता है
जैसे खुद मुसाफिर को रास्‍ता बुलाता है
पांव जाने किस जानिब, बे-उठाए उठते हैं
और छम-छम-छम पायलें झनकती हैं
अपने आप ।।

जाने कौन बालों में उंगलियां पिरोता है
खेलता है पानी से, तन बदन भिगोता है
जाने किसके हाथों से गागरें छलकती हैं
जाने किसके दाग़ों से बिजलियां लपकती हैं
अपने आप ।।

अब आज का दूसरा गीत—शंकर हुसैन फिल्‍म का ।

इसके बोल हैं—आप यूं फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे ।।
इसे जांनिसार अख्‍तर ने लिखा है । तर्ज़ ख़ैयाम की ।

ये गाना लता जी की गूंजती आवाज़ के साथ शुरू होता है, बेहतरीन आलाप है ये, एकदम मद्धम । इस गाने की धुन में कुछ तो जादू है, एक लहराहट, एक कशिश, एक तिलस्‍म, मुखड़े के बाद जब आप ग्रुप वायलिन और उसमें घुली बांसुरी को सुनते हैं तो दिल अश-अश कर उठता है । इस सबके साथ इस गाने की शायरी, मुझे तो ये ख्‍याल ही लुभा जाता है कि आप फ़ासलों से गुज़रते रहे और दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही । इंतेहा है ये मुहब्‍बत की । फिर वो पंक्ति जिसे पहले लता जी अधूरा छोड़ देती हैं, फिर दोहरा के पूरा करती हैं—क़तरा क़तरा पिघलता रहा आसमां, रूह की वादियों में जाने कहां, एक नदी दिलरूबा गीत गाती रही’ ।

फिर लता की हल्‍की-सी हंसी, जो बहुत कम गानों में सुनाई देती है ।

फिर वो अंतरा आता है जो बेहद सेन्‍सुअल हो सकता था, लेकिन शायर की कुशलता से नाज़ुक मुहब्बत का उरूज/शिखर बन गया है ये । जहां लता जी गाती हैं---आपकी गर्म बांहों में खो जाएंगे...........आपके नर्म ज़ानों पे सो जायेंगे.........इसके बाद एक हल्‍का-सा पॉज़ और फिर लता जी अपने सुर को थोड़ा सा ऊपर उठाकर गाती हैं---‘मुद्दतों रात नींदें चुराती रही’ । सच मानिए तो मैं इस एक पंक्ति पर ही कुरबान हूं । आपको पता है मुझे इस पंक्ति के बाद झट से गाना खत्‍म होने पर अफ़सोस होता है । इसलिए मैं अपने मीडिया प्‍लेयर पर इसे रिपीट फॉर-एवर लगाकर बजाता हूं । एक बार सुनने से संतुष्टि नहीं होती । लता जी ने इसे वाक़ई अलग ही अंदाज़ में गाया है ।

अब ये भी बता दूं कि मेरी पत्‍नी को भी ये गीत बहुत बहुत पसंद है और अकसर वे विविध भारती पर अपने छायागीत में बजाती हैं । घर पर जब ममता ये गीत गुनगुनाती हैं तो भला-भला सा लगता है । दिन संवर जाता है । आप लता जी की आवाज़ में सुनिए ये गीत---


Get this widget Share Track details


यहां पढ़ि‍ए--

आप यूं फासलों से गुज़रते रहे

दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

आहटों से अंधेरे चमकते रहे

रात आती रही रात जाती रही

गुनगुनाती रहीं मेरी तन्‍हाईयां

दूर बजती रहीं कितनी शहनाईयां

जिंदगी जिंदगी को बुलाती रही

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा आसमां

रूह की वादियों में जाने कहां

इक नदी दिलरूबा गीत गाती रही

आप की गर्म बांहों में खो जाएंगे

आप के नर्म ज़ानों पे सो जायेंगे

मुद्दतों रात नींदें चुराती रही

आप यूं फ़ासलों से गुज़रते रहे ।।

शंकर हुसैन में एक क़व्‍वाली भी है । कैफी आज़मी ने लिखी है और गाई है—अज़ीज़ नाज़ां, बब्‍बन ख़ान और साथियों ने । बेहतरीन बोलों वाली क्‍लासिक कव्‍वाली है । इसे आप यहां सुन सकते हैं ।



Technorati tags:
shankar hussain ,
शंकर हुसैन ,
apne aap raaton me ,
aap yuni ,
kaif bhoplai
कैफ भोपाली
जांनिसार अख्तर

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

11 टिप्‍पणियां:

अभय तिवारी August 19, 2007 at 9:33 PM  

भाई वाह.. आनन्द आ गया.. प्रमोद भाई भी आपको बड़ी दुआएं देंगे.. वे इन गानों को कब से खोज रहे हैं..

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey August 20, 2007 at 1:34 AM  

चलो, एक और मुद्दा समान निकला, जिसमें मैं और अभय दोनो साथ-साथ गदगद हैं. भैया यूनुस, तहे दिल से दुआयें. सपत्नीक कह रहे हैं यह.

Udan Tashtari August 20, 2007 at 10:21 AM  

बेहतरीन, बेहतरीन और बेहतरीन!!!

Raviratlami August 20, 2007 at 6:21 PM  

ईमेल आधारित आपका यूथ एक्सप्रेस सुना. बढ़िया प्रस्तुति रही. क्या आप गूगल कैलेण्डर का इस्तेमाल कर अपने द्वारा भविष्य में प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों तथा कुछ अच्छे कार्यक्रमों के समय को इस चिट्ठे पर टांग सकते हैं?

अंजन की सीटी वाला गाना तो ग़जब का है. मेरी इल्तिजा है कि ई-स्निप या कहीं इसे डालकर हमें सुनवाएँ. ज्ञानदत्त जी को भी मजा आएगा. उनके ब्लॉग का तो ये टाइटिल सांग होना चाहिए. पता नहीं उन्होंने ये सुना है या नहीं. इस गायिका के और भी गाने सुनवाएँ. ग़जब की आवाज है.

Anonymous,  August 20, 2007 at 6:36 PM  

अच्छे लगे दोनों गीत।

कुछ-कुछ ऐसी ही एक ग़ज़ल है चन्द्राणी मुखर्जी की आवाज़ में फिल्म का नाम है - कितने पास कितने दूर

ग़ज़ल के बोलों में शायद फिल्म का नाम भी है। बहुत धुंधला सा याद आ रहा है।

हो सके तो प्रस्तुत कीजिए।

अन्नपूर्णा

आदित्य प्रताप वन्देमातरम August 21, 2007 at 1:04 AM  

वाह, मज़ा आ गया। यूनुस भाई, बस इतना ही कहेंगे - "लगे रहो ....."

Parul August 21, 2007 at 1:10 AM  

beautiful...beautiful...and beautiful....awsome song......APNEY AAP.......
shukriya yunus ji in behtreen nagmon key liye.

parul

tejas August 21, 2007 at 7:41 AM  

bas shabd hi nahi hai....so dhanyvaaad sweiikare.n

Vikas Shukla August 21, 2007 at 7:19 PM  

युनूसभाई,
हमारे मराठी लोगोमें एक रस्म है, 'नाव घेणे'. ज्यादातर शादीब्याह के समय पत्नी अपने पती का नाम 'उखाणा' लेकर बताती है. कभी कभी पती भी पत्नी का नाम उसी तरह बताता है. अगर आपने कोई मराठी शादी अटेंड की होगी तो आपको ये रस्म पता होगी और तब कितना आनंद उत्पन्न होता है ये भी पता होगा.
मुद्दा ये है की आज आपने पहली बार अपने ब्लॉग पर अपनी पत्नी का नाम बताया है. अगर आपभी 'उखाणा' लेकर बताते तो कितना मजा आता था ! खैर ममता जी आपकी पत्नी है ये बात तो हमे पता ही नही थी. आपका बहुत बहुत अभिनंदन. अब एखाद बार फुरसतसे अपनी लव स्टोरी भी ब्लॉग पे लिख डालिये.
शंकर हुसेन के गीत तो अद्भुतसे लगते है. मै विविध भारती पर जबभी ये गीत सुनता हूं (अपने आप ) तो एक नशा सा छा जाता है.
ये बात हमेशा देखने को मिली है. उच्च कोटीका संगीत भूल जाने योग्य फिल्मोंपे वेस्ट हो जाता है. बेचारे मदन मोहन भी इसी व्यथाके शिकार थे.

Manish Kumar August 21, 2007 at 7:22 PM  

बहुत सुंदर गीत हैं दोनों और उनके बारे में बड़े सलीके से लिखा भी है आपने! पहला गीत मैंने नहीं सुना था। बहुत बहुत शुक्तिया इसे यहाँ पेश करने के लिए !

Shastri August 24, 2007 at 2:48 AM  

रेडियोवाणी पर आकर मन बहुत खुश हो गया. आते रहूंगा -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Post a Comment

परिचय

संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

Blog Archive

ब्‍लॉगवाणी

www.blogvani.com

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP