Thursday, August 2, 2007

चांद तन्‍हा है आसमां तन्‍हा--मीनाकुमारी के जन्‍मदिन पर उन्‍हीं की आवाज़ में उनके अशआर


आज मीनाकुमारी का जन्‍मदिन है ।

और ये बात मुझे इरफ़ान ने याद दिलाई ।

मीना कुमारी के लिए मैं ज्‍यादा क़सीदे नहीं काढ़ूंगा, बस इतना कहूंगा कि हिंदी फिल्‍मों में अगर कोई अभिनेत्री पीड़ा और संत्रास का प्रतीक बन सकी है तो वो मीना कुमारी हैं ।

उनकी अपनी जिंदगी शायद दर्द का एक मुसलसल अहसास बनके रह गयी थी ।


एक ख़ूबसूरत चेहरा, एक निहायत ख़ूबसूरत शख्सियत, जैसे जन्‍नत से भटक के आयी हो कोई फ़रिश्‍ता रूह । और शायद ये ये भटकन ख़ुदा को भी पसंद ना आई हो, इसलिये इस भटकी हुई रूह पर ज़ुल्‍मतों का पहाड़ बरपा दिया गया ।

बहरहाल मीना कुमारी ने अपना दर्द अपनी शायरी में उड़ेला था ।

इससे पहले भी चिट्ठाजगत पर मीना कुमारी की शायरी का जिक्र हो चुका है ।
बस आपको इतना बताना है कि एक ज़माने में एक अलबम निकला था नाम था—‘I write I recite’ । इस अलबम में संगीतकार ख़ैयाम ने मीना कुमारी से उन्‍हीं के अशआर गवाए थे । इसका कैसेट मेरे पास है । विविध भारती की लाईब्रेरी में इसका रिकॉर्ड है । और मुंबई की म्‍यूजिक शॉप्‍स में एकाध बार मैंने इसकी सी.डी. भी बिकते देखी है ।

सही मायनों में ये एक अनमोल पेशक़श रही । आप खुद ही अहसास कीजिए ।


चांद तन्‍हा है आसमां तन्‍हा
दिल मिला है कहां कहां तन्‍हा

बुझ गयी आस छुप गया तारा
थरथराता रहा धुंआ तन्‍हा

जिंदगी क्‍या इसी को कहते हैं
जिस्‍म तन्‍हा है और हां तन्‍हां

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्‍हा तन्‍हा

जलती बुझती सी रोशनी के परे
सिमटा सिमटा सा इक मकां तन्‍हां

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्‍हा








इस ग़ज़ल को मीनाकुमारी की आवाज़ में सुनने के लिए
यहां क्लिक कीजिए


आग़ाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में वह नाम नहीं होता ।।

जब ज़ुल्फ़ की कालिख में गुम जाए कोई राही,
बदनाम सही, लेकिन, गुमनाम नहीं होता ।।

हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों ने चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता ।।

दिन डूबे है या डूबी बारात लिए किश्‍ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता ।।

मीनाकुमारी की एक और ग़ज़ल उन्‍हीं की आवाज़ में--
इसे सुनने के लिए
यहां क्लिक कीजिए ।

आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा..........आबला पा:जलते हुए पैरों के साथ
वरना आँधी में दिया किसने जलाया होगा ।।

ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँआरे सिज़दे
इक-इक बुत खुदा उसने बनाया होगा ।।

प्यास जलते हुये काँटों की बुझायी होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा ।।

मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा ।।


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15 टिप्‍पणियां:

Anonymous,  August 2, 2007 at 2:01 AM  

यूनुस भाई,


मैं तुम्‍हारे ब्‍लॉग का पक्‍का पाठक बन गया हूँ। एक-एक दिन नई-नई बातें पता चलती हैं। ताज्‍जुब है तुम इतना सब लिखने, खोजने का समय कैसे निकाल लेते हो? और कविताओं, गीतों के प्रति तुम्‍हारी टिप्‍पणियाँ तो लाजवाब होती हैं। मैं तुम्‍हारे अंदाज़े-बयाँ से काफी प्रभावित हूँ। मुझे भी अपनी फैन लिस्‍ट में शामिल कर लो। - आनंद

Udan Tashtari August 2, 2007 at 2:38 AM  

पुनः बहुत बढ़िया प्रस्तुति. आनन्द भाई किसी फैन लिस्ट की बात कर रहे हैं. हमें भी रख लेना भाई उसमें. :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` August 2, 2007 at 7:06 AM  

युनूस भाई,
हम भी आपकी "फेन -लिस्ट " मेँ शामिल हैँ ना ? :)
अगर ना होँ तो, कृपया कर लिजियेगा -
बेहतरीन प्रस्तुति हमारी मीना जी जे स्वरोँ का जादु आहा !
क्या कहना ! मज़ा आ गया ..
स्नेह , लावण्या

Manish Kumar August 2, 2007 at 9:15 AM  

meena kumari ji nazmon ke bare mein to kehne ko bahut kuch hai ..par wo kabhie fursat mein likhoonga shukriya sunwaane ke liye

sanjay patel August 2, 2007 at 10:18 AM  

युनूस भाई..सत्तर का दशक ढल रहा था और कैसेट नाम की चीज़ नमूदार हो रही थी. घर में नया नया आया था बुश टेप रेकाँर्डर..और आई थी एक कैसेट मीनाजी की आवाज़ में रेकाँर्ड हो कर. संतूर के मध्दम स्वरों के बीच फ़टती फ़टती सी मीनाजी की आवाज़ ...जैसे पूरी क़ायनात का दु:ख अपने में समेट लाई थी.हमेशा इस बात का मलाल रहा कि मीनाजी ने अपनी शायरा को बहुत देर से लोगों तक पहुँचने दिया ..मानो वो अपने दर्द से हम सब को बाबस्ता नहीं होने देना चाहतीं हों .जब उनका ज़िक्र चल ही पड़ा है तो युनूस भाई मै यह भी कहना चाहता हूँ कि उनके पर्दे पर अवतरित होते ही आपके-हमारे घर की भाभी,माँ,दीदी,दादी,बाजी,मौसी,बुआ,बा,ताई,
अक्का,आत्या,ख़ाला,चेची जैसे कई रिश्ते जीवित हो जाते थे.बैजूबावरा की मासूम मीना जी से लेकर मेरे अपने तक की बुज़ुर्ग मीनाजी जैसे इंसानी रिश्तों की तस्वीर बन मन में आ समातीं थीं.जब वे किसी रोल में होतीं तो पूरी होतीं.आज जबकि आपकी इस मन को छूने वाली पोस्ट में लावण्या बेन मौजूद हैं (जैश्रीकृष्ण लावण्याबेन..केम छो..मजा मा ) तब याद आ रहा है पं.नरेन्द्र शर्मा रचित,बाबूजी (पं.सुधीर फ़ड़के)द्वारा संगीतबध्द और लताजी की आवाज़ में हरसिंगार सा झरता गीत ..ज्योति कलश छलके...भारतीय नारी की अस्मिता का शुभंकर गीत.छोटे मुँह बड़ी बात कहने की मुआफ़ी चाहता हूँ युनूस भाई लेकिन सच कहूँ इस गीत में बहे लताजी के अमृत स्वर की पाक़ीज़गी तभी अनुभूत होती है जब मीना जी पर्दे पर हों ..और हाँ नायिकाओं को सुरीली बनाने वाली लता दीदी भी इतनी क़ाबिल गुलूकारा हैं कि वे अपने कंठ में शब्द और सुर को समोते वक़्त ध्यान रखतीं थीं कि वे किसके लिये गा रहीं हैं..मीना कुमारी के लिये...या काजोल के लिये..अब अब नज़र नहीं आते मीनाजी जैसे पवित्र चेहरे,लता दी जैसे केसर कंठ,पं नरेन्द्र शर्मा जैसे सुकवि,बाबूजी जैसे गुणी संगीत नियोजक और हाँ ज़माना भी तो कुछ कम बेरहम नहीं रहा..अच्छा ही हुआ युनूस भाई ये महान लोग परिदृष्य से ग़ायब हो गए हैं वरना हम इन सब को इनकी कालातीत कला के लिये क्या नज़राना पेश करते ?..कंगाल वर्तमान ..लानत है तुझ पर !सुनहरे माज़ी से कुछ तो सीख.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` August 2, 2007 at 12:41 PM  

सँजय भाई,
युनूस भाई व अन्य ब्लोग जग के साथीयोँ को मेरे नमस्कार !
सँजय जी आपने कितना बडा सच लिखा है --
("छोटे मुँह बड़ी बात कहने की मुआफ़ी चाहता हूँ युनूस भाई लेकिन सच कहूँ इस गीत में बहे लताजी के अमृत स्वर की पाक़ीज़गी तभी अनुभूत होती है जब मीना जी पर्दे पर हों ..और हाँ नायिकाओं को सुरीली बनाने वाली लता दीदी भी इतनी क़ाबिल गुलूकारा हैं कि वे अपने कंठ में शब्द और सुर को समोते वक़्त ध्यान रखतीं थीं कि वे किसके लिये गा रहीं हैं..मीना कुमारी के लिये...या काजोल के लिये.."
सँजय जी आपने कितना बडा सच लिखा है --
क्या आज की तारिकाओँ पर, "इन्ही लोगोँ ने ले लिना डुपट्टा मेरा " फबता?
(जो पहले ही कम कपडे पहन कर पर्दे पर आना पसँद करतीँ हैँ ?)
मीना जी, तो अपनी छोटी ऊँगली को भी छिपा कर रखतीँ थीँ !
"भाभी की चूडीयाँ " के निर्माण के समय दादर के स्टुडियो मेँ हम बच्चे वहीँ सेट पर उनसे मिलने गये थे.बलराज साहनी जी भी थे
वे मेरी अम्मा से मिलकर बहुत प्रभावित हुईँ थीँ उनका सौम्य और बडा, लँबा चेहरा आज तक मुझे याद है
खैर ! वर्तमान इतना बुरा भी नहीँ --
"तुम आशा , विश्वास हमारे, रामा !"
स्नेह, , लावण्या

mamta August 2, 2007 at 4:46 PM  

वाह यूनुस भाई आपने तो मेरी पसंद की गजल चांद तनहा सुनवा दी। बहुत-बहुत शुक्रिया।

tejas August 2, 2007 at 5:48 PM  

Thank you Yunus Bhai, I wait for your posts....gunge ke gud khate hain aur kuch bol nahi pate.

अजय यादव August 2, 2007 at 6:15 PM  

युनुस भाई!
इतनी टिप्पणियों के बाद मेरे पास कहने को कुछ रह नहीं गया है. सिर्फ मीना जी की गज़लें और वो भी उन्हीं की आवज में सुनवाने के लिये शुक्रिया अदा करना चाहूँगा.

Anonymous,  August 2, 2007 at 6:48 PM  

मीनाकुमारी की रूहानी आवाज़ ने ग़ज़लों में दर्द के साथ एक खास रिश्ता बनाया है।

अन्न्पूर्णा

Poonam August 2, 2007 at 7:45 PM  

मीनाकुमारी की शायरी से रूबरू कराने का शुक्रिया.उनकी अदाकारी और खूबसूरती की मैं ज़बरद्स्त प्रशंसिका हूँ .आप जब भी किसी के बारे में लिखते हैं तो बहुत अच्छा लिखते हैं .शुक्रगुज़ार हूँ कि आप नारद की दुनिया में आए .

yunus August 3, 2007 at 3:59 AM  

आप सभी को धन्‍यवाद । मीना कुमारी के बारे में मैंने काफी जल्‍दीबाज़ी में लिखा । दरअसल उन पर फिल्‍माए गये गीतों पर लिखने की तमन्‍ना दिल में हिलोर ले रही है, उफ़ क्‍या गीत हैं, अजीब दास्‍तान है, हम तेरे प्‍यार में सारा आलम खो बैठे, चलते चलते मुझे कोई मिल गया था, और संजय भाई का सुझाया गीत—ज्‍योति कलश छलके । ज़रूर लिखूंगा ।

इरफ़ान August 3, 2007 at 4:55 PM  

हैरत है कि ठुमरी वाले विमलभाई ने इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी नहीं भेजी. वो ख़ुद इन ग़ज़लों को बहुत मन से गाते हैं. आप दोनों बंबई में हैं कभी मौक़ा लगे तो उनकी आवाज़ में इस ग़ज़ल को पोस्ट करें.

इरफ़ान August 3, 2007 at 5:13 PM  

एक बार फिर ख़ुद को रोक नहीं पाया कि मीना कुमारी की इन ग़ज़लों को पढूं.
सरसरी याद के हवाले से इन लाइनों में कुछ तरमीम की ज़रूरत है शायद. ज़रूरी लगे तो जांच लें.
"जिस्म तन्हा है और जां तन्हा"
"छोड जायेंगे हम जहां तन्हा"
"जब मेरी कहानी में तेरा नाम नहीं होता"
"दिन डूबें हों या डूबी बारात लिये किश्ती"
"एक-एक बुत को खुदा उसने बनाया होगा"
....
एक गुज़ारिश है कि इसे पब्लिश न करें.

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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