Saturday, August 11, 2007

सुनिए--एकला चोलो रे और किशोर कुमार का एक बांगला गीत


पता नहीं क्‍यूं मुझे बांगला भाषा से बड़ा प्रेम है । इसी प्रेम के तहत कॉलेज के ज़माने में भारतीय क्षेत्रीय भाषा संस्‍थान से मैंने बांगला का पत्राचार कोर्स भी किया था । लिखना पढ़ना सीख ही लिया था किसी तरह । हांलांकि आज ज्‍यादातर भूल गया है, पर बांगला सीखकर बांगला साहित्‍य पढ़ने की तमन्‍ना अधूरी रह गयी है । शायद कभी पूरी कर सकूं ।

इसी बांगला प्रेम के तहत मैं ना केवल बांगला फिल्‍में खोज खोजकर देखता हूं बल्कि बांगला गीत भी सुनता हूं । मेरे पास किशोर कुमार के गाये बांगला गीतों का छोटा-मोटा संग्रह भी है । और पंकज मलिक के स्‍वर में महिषासुर मर्दिनी भी । शायद आप जानते हों कि पंकज मलिक ‘दुर्गापूजा’ के दिनों में कलकत्‍ता रेडियो से ‘महिषासुरमर्दि‍नी’ प्रस्‍तुत करते थे जिसे एच एम वी ने रिकॉर्ड और सी डी की शक्‍ल में बाज़ार में उतारा है ।

ख़ैर आज अचानक मुझे ‘एकला चलो रे’ मिल गया । तो आईये इसे सुनें और अकेले चलने, चलते रहने की ऊर्जा से भर-भर जाएं ।

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इस गाने के बाद अब इच्‍छा ये भी हो रही है कि किशोर कुमार की आवाज़ में आपको एक बांगला फिल्‍मी गीत सुनवा दिया जाये । ये हिंदी के एक मशहूर गाने का बांगला संस्‍करण है और जानबूझकर सुनवा रहा हूं ताकि भाषाई सीमाओं के बावजूद आपको इसका आनंद आ पाये । आप इसे सुनेंगे बांगला में लेकिन मन में आयेंगे हिंदी बोल ।
यही तो है इस धुन का जादू---सुनिए

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5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari August 12, 2007 at 4:01 AM  

चला जाता हूँ अपनी धुन में...का बांग्ला संस्करण लगता है. धुन तो वही है. पहली बार यह सुना. आभार.

Sagar Chand Nahar August 12, 2007 at 4:13 AM  

हाँ समीरलालजी का अनुमान सही है।
मुझे भी बंगाली समझ में नहीं आती पर हेमंतदा के गाने अक्सर सुनता रहता हूँ।
संयोग से आपका लेख पढ़ना शुरु करने से पहले मैं काकनदेवी का गाया शेषउत्तरा फिल्म (1942) का गाना तूफान मेल सुन रहा था। जिसका संगीत शायद कमलदासगुप्ता ने दिया था।
बंगाल के संगीत का मजा ही कुछ और है। बंगाल ही क्यों भारत के हरेक प्रांतके लोक संगीत का कहना चाहिये!

Sagar Chand Nahar August 12, 2007 at 4:23 AM  

और हाँ लावण्याजी इससे पहले बहुत से अच्छे बंगाली गाने जिनकी धुनें हिन्दी के कई अच्छे गानों से मिलती है हमें यहाँ सुना चुकी हैं।

sanjay patel August 12, 2007 at 7:28 AM  

युनूस भाई...अच्छा किया आपने जो हिन्दी ब्लाँगर बिरादरी से हिन्दी में लोकप्रिय रह चुके हमारे लाड़ले किशोर दा का गीत सुनवा दिया..मालूम क्यों ...इसलिये ऐसे प्रयोगों और प्रयासों से ही तो हम साबित करेंगे कि जुदा जुदा तहज़ीब वाला हमारा देश रूह के स्तर पर एक है...और इस एकता नाम की माला को पिरोता है संगीत नाम का धागा.ब्लाँग्स की दुनिया मेरी नज़र में आज की तारीख़ मे सबसे ज़्यादा धर्म-निरपेक्ष और सह्रदय है(भगवान इसे ऐसा ही बनाए रखे ; इंशाअल्लाह !)
और वह तहज़ीब,संस्कार,संगीत,साहित्य के स्तर पर हमेशा इस तरह की अगुआई करती रहे बस ऐसी ही तमन्ना है मन की.कभी संयोग बना तो आपको मालवी गीत भी सुनवाऊंगा.

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey August 12, 2007 at 2:59 PM  

आज सवेरे इस पोस्ट के बांगला गीत सुन रहा हूं. पत्नी जी भी पीछे से सुन रही हैं - यूनुस, रविवार का सवेरा तुमने बड़ा मोहक बना दिया है!

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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