Saturday, August 18, 2007

ज्ञान जी की फ़रमाईश पर फिल्म रूदाली के गीतों पर आधारित श्रृंखला: पहला भाग--दिल हूम हूम करे

भूपेन हज़ारिका के गीत—ओ गंगा बहती हो क्‍यों‘ के बारे में मेरी पिछली पोस्‍ट पर बहुत प्रतिक्रियाएं आईं । अज़दक ने इशारा भी किया कि ये गीत थोड़ा सा भगवा है । बाक़ी सभी को ये गीत बहुत दिनों बाद सुनकर अच्‍छा ही लगा । लेकिन ज्ञानदत्‍त जी ने कल-परसों कहा कि क्‍या मैं ( उनकी पत्‍नी की फरमाईश पर )फिल्‍म ‘रूदाली’ के गीत सुनवा सकता हूं । हालांकि ‘रूदाली’ के गीत सुनवाने का मन उसी दिन किया था जब मैंने ‘गंगा’ वाला गीत पेश किया था । लेकिन लगा कि फिर कभी सुनवाये जायेंगे । रेडियो वालों को फ़रमाईशों पूरी करने का बड़ा शग़ल होता है । सच कहें तो हमें भी है, लीजिये भूपेन हज़ारिका के गानों पर पूरी लेकिन अनियमित श्रृंखला शुरू हो रही है । ख़ासकर रूदाली पर । अनियमित इसलिए कि बीच-बीच में हम ग़ायब भी होते रहेंगे और कुछ दूसरी बातें भी करते रहेंगे ।


भूपेन हज़ारिका के संगीत के बारे में लिखने का मतलब है लोक संस्‍कृति के गहरे रंग से सराबोर हो जाना । भूपेन का के बारे में बात करने से पहले आपको ये बताना चाहता हूं कि मेरा ताल्‍लुक बुंदेलखंड से है । बचपन भोपाल में बीता, उन दिनों मैं बुंदेलखंडी बोली से पूर्णत: अनभिज्ञ था बल्कि अपने तथाकथित शहरी दंभ में बुंदेलखंडी को गांव वालों की बेकार बोली समझता था । बचपना था ना । शहरी परवरिश ने अपना असर दिखाया था । लेकिन समय का फेर देखिए, कि बचपन बीता किशोरवस्‍था के अंतिम दिन थे और पापा का ट्रांस्‍फर हो गया म.प्र. के सागर शहर में ।

समय के प्रवाह ने हमें बुंदेलखंड लाकर पटक दिया । शुरू में थोड़ा बुरा लगा लेकिन बाद में मन इतना रम गया कि पूछिये मत । बुंदेलखंड ने मुझे अपने सबसे प्‍यारे दोस्‍त दिये हैं । वो तमाम दोस्‍त, जो ज़िंदगी के हर मोड़ पर एक आवाज़ पर चले आएं । बड़े प्‍यारे और यादगार लम्‍हे हैं वो जो सागर में बीते । यहां आकर मेरी बुंदेलखंडी जड़ों ने अपना असर दिखाया । मैंने बुंदेली बोली बोलना सीखा । बुंदेली लोकगीतों से मेरा परिचय बढ़ा । आज हालत ये है कि मैं बुंदेलखंड के ठस्‍स और बिल्‍कुल लट्ठ लोगों को बहुत ‘मिस’ करता हूं ।

किसी ने एक बार कहा था कि बुंदेलखंड के किसी व्‍यक्ति से नाम पूछो---
काय भैया का नांव आय तुमाओ
जवाब मिलेगा—काय, तुमें का कन्‍ने ।

समझ तो गये ही होंगे आप । पूछने वाला पूछ रहा है, नाम क्‍या है तुम्‍हारा । जवाब देने वाला कह रहा है क्‍यों तुम्‍हें क्‍या करना मेरे नाम से ।

ऐसा है बुंदेलखंड, किसी दिन विस्‍तार से बुंदेली मिज़ाज और लोकगीतों की चर्चा की जाएगी । समीर भाई---काय बड्डे, चीन नईं रए का ।

दरअसल ये जिक्र इसलिये क्‍योंकि भूपेन की आवाज़ में मिट्टी की सोंधी खुश्‍बू है, उनके गीत‍ किसी बांग्‍ला फ़कीर के गीतों की तरह हैं, जो चिमटा बजाते हुए गांव के बीचोंबीच से गुज़र रहा है । आज से मैं जो श्रृंखला आरंभ कर रहा हूं उसमें हम भूपेन हज़ारिका के फिल्‍म रूदाली के गीत सुनेंगे । लेकिन सिर्फ सुनेंगे ही नहीं बल्कि उनका विश्‍लेषण भी करेंगे । उनकी पड़ताल भी करेंगे । और कुछ गीत तो ऐसे हैं जिनके मूल बांगला गीत भी आपको सुनवाए जाएंगे ।

फिल्‍म रूदाली महाश्‍वेता देवी की कथा पर आधारित थी । जहां तक मेरी जानकारी है बंगाल की जानी मानी रंगमंच कलाकार निर्देशिका उषा गांगुली के इसी नाम के नाटक को देखकर कल्‍पना लाजमी को रूदाली बनाने की प्रेरणा मिली थी । ये फिल्‍म सन 1993 में आई थी । गुलज़ार के गीत और भूपेन हज़ारिका का संगीत ।

इस फिल्‍म के गानों की ख़ासियत ये है कि ज्‍यादातर गीत भूपेन हज़ारिका के पुराने अलबमों से ली गयी धुनों पर आधारित हैं । ज़ाहिर है कि बांगला या असमिया भाषा में गीत उतने व्‍यापक लोकप्रिय नहीं हुए, जितने हिंदी में । तो आईये आज सुनें—दिल हूम हूम करे, घबराए ।

गाने का ओपनिंग म्‍यूजि़क ही जैसे दिल में उतर जाता है । ग्रुप वायलिन के साथ हल्‍के से नगाड़े और मेटल फ्लूट । और उसके बाद लता जी या भूपेन दा की आवाज़ । ऐसा तिलस्‍मी समां बंधता है कि क्‍या कहें । मुखड़े के बाद सारंगी की जो तान आती है, वो बड़ी ललित लगती है । ये तान पूरे गीत के इंटरल्‍यूड में बार बार आती है । मन थिरक उठता है । जिस तरह का संगीत-संयोजन रूदाली में भूपेन हजारिका ने किया है, वैसा हिंदी फिल्‍मों में बहुत कम देखा गया है । बरसों पहले भूपेन हज़ारिका ने कल्‍पना लाजमी की फिल्‍म ‘एक पल’ के लिए कुछ अद्भुत गीत दिये थे । शायद आपको याद होंगे । ‘ज़रा धीरे ज़रा धीरे लेके जैयो डोली, बड़ी नाज़ुक मेरी जाई मेरी बहना भोली’ । बहुत ही मार्मिक डोली गीत है ये । कभी मौक़ा लगा तो सुनवाऊंगा ।

फिलहाल ये गीत लता मंगेशकर और भूपेन हज़ारिका दोनों की आवाज़ में पेश है । हालांकि मुझे लगता है कि गायन की दृष्टि से ये लता मंगेशकर के श्रेष्‍ठतम गीतों में से एक है । लेकिन इस सबके बावजूद भूपेन दा की आवाज़ में गीत ज्‍यादा तरल और मार्मिक बन पड़ा है । एक अहम मुद्दा ये है कि जो गीत पुरूष और महिला स्‍वरों में अलग अलग बनाए गये हैं, यानी दोनों सोलो वर्जन । उनमें बहुधा पुरूष गायक वाला संस्‍करण ज्‍यादा लोकप्रिय हुआ है । शायद ज्‍यादा रचनात्‍मक भी । एक गाना इसका अपवाद है—‘हमें तुमसे प्‍यार कितना’ । कुदरत फिल्‍म का ये गीत परवीन सुल्‍ताना की आवाज़ में ज्‍यादा कलात्‍मक है । हां लोकप्रिय किशोर दा वाला संस्‍करण है ।

बहरहाल इस गाने की लेखनी को ही लीजिये । ठेठ गुलज़ारी गीत है ये । मुझे याद है जिन दिनों ये गीत आया था लोग अकसर मज़ाक़ में ही पूछते थे ये हूम हूम क्‍या होता है, क्‍या किसी का दिल हूम हूम करता है । लेकिन अगर ये गीत संवेदनाओं का सरल संप्रेषण ना कर रहा होता तो क्‍या आज चौदह साल बाद हम इसकी महफिल जमाए होते । ‘ओ मोरे चंद्रमा तेरी चांदनी अंग जलाए’ जैसी पंक्ति गुलज़ार की ही कलम से आ सकती है । संगीत-संसार के हम सब सुधी श्रोता आभारी हैं इन तमाम कलाकारों के, जिन्‍होंने इस गीत को रचा । ये रहे इस गाने के बोल ।


दिल हूम हूम करे, घबराए,
घन घम घम करे, गरजाए
एक बूंद कभी पानी की मोरी अंखियों से बरसाए
तेरी झोरी डारूं, सब सूखे पात जो आए
तेरा छूआ लागे, मेरी सूखी डाल हरियाए
दिल हूम हूम करे ।।

जिस तन को छूआ तूने
उस तन को छुपाऊं
जिस मन को लागे नैना,
वो किसको दिखाऊं
ओ मेरे चंद्रमा तेरी चांदनी अंग जलाए
दिल हूम हूम करे ।।

आपको बता दूं कि इस गीत के तीन संस्‍करण नीचे दिये जा रहे हैं । पहला है लता जी वाला संस्‍करण । फिर भूपेन हज़ारिका वाला । और उसके बाद भूपेन हज़ारिका का मूल बांगला संस्‍करण—मेघ घम घम करे । सुनिए और आनंद लीजिये । अगर आप इस गाने का फिल्‍मांकन भी देखना चाहते हैं तो सबसे नीचे यूट्यूब से लिया वीडियो भी लगा दिया गया है ।



dil hum hum kare- lata


Get this widget Share Track details



dil hum hum---bhupen


Get this widget Share Track details




megh gham gham kare-bangla version.


Get this widget Share Track details



दिल हूम हूम करे-वीडियो


भूपेन दा पर आधारित पिछली पोस्ट. पढ़ने के लिये नीचे शीर्षक पर क्लिक करें--
ओ गंगा बहती हो क्यूं

Technorati tags:
भूपेन हज़ारिका ,
रूदाली ,
bhupen hazarika ,
rudali ,
dil hum hum kare

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

8 टिप्‍पणियां:

Sanjeet Tripathi August 18, 2007 at 5:19 PM  

सुबह सुबह दिल खुश कर दिया आपने!!
शुक्रिया।
अरे हां बुंदेलखंडी लहज़े का आपने जिक्र किया तो याद आया, डॉ ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्य उपन्यास "बारामासी" में बुंदेलखंड के एक छोटे कस्बे में कथानक बुनते हुए बुंदेलखंडी लहज़े में जो लिखा है, कसम से मजा आ जाता है, अगर ना पढ़ा हो तो जरुर पढ़ें!!

राहुल,  August 18, 2007 at 5:42 PM  

अगर आप ऐसे ही गाने अपने ब्लॉग पर पोस्ट करते रहे तो एक दिन मुझे चोर बनना पड़ेगा ....सब चुरा ले जौँगा आपके ब्लॉग से .... :)

अजय यादव August 18, 2007 at 6:21 PM  

युनुस भाई!
रुदाली के गीतों के बारे में कुछ भी कहना कम ही होगा. भूपेन दा का संगीत और गुलज़ार साहब के गीतों के इस अनमोल संगम का हर गीत सुनने वाले के मन को बाँध लेता है. प्रस्तुत गीत मुझे भुपेन दा और लता जी दोनों की ही आवाज में बहुत पसंद है, मगर सचमुच भूपेन दा की आवाज इस गीत की मार्मिकता को और भी बढ़ा देती है.
आज इस गीत का बांग्ला-रूप सुनकर बहुत अच्छा लगा.
इस खूबसूरत गीत को सुनाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!

Rajendra,  August 18, 2007 at 7:33 PM  

Despite its sensitive and folksy music, the film 'Rudali' failed to do any wonder because it was complete mismatch as its maker superimposed Mahasweta Devi's Bengali melieu on Western Rajasthani culture. The film confused the audiences.

mamta August 18, 2007 at 8:05 PM  

हिंदी वाला तो हमने सुना है और अच्छा भी लगता है पर हमने पहली बार बांगला गीत सुना बहुत पसंद आया।

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey August 18, 2007 at 11:36 PM  

भैया फिल्म का तो मुझे नहीं पता (राजेन्द्र जी ऊपर सही टिप्पणी कर रहे होंगे - कई कालजयी गीतों की फिल्में साधारण होती हैं); पर ये गीत तो आज हमने बार बार सुने. और शायद एक दो राउण्ड और फिर सुनें.
बहुत-बहुत धन्यवाद यूनुस!

Udan Tashtari August 19, 2007 at 4:55 AM  

अब हम चीन रए जा चीन नईं रए, तुमें का कन्‍ने . काए बताऐं?? वैसे सच में तो नहीं रहे मगर बड़े भाई सा: वहीं हैं.
लाओ यार, बुन्देली लोकगीत, मजा आ जायेगा. वो तुमाए दमोह वाला लाओ पहले--
मोरे सईंया रिसाए के दमोह चले गये....याद है??

और एक याद आया-

मोरी बउ रिसानी है, जो भईया मिले बता देइयो.... :)

बहुत पुरानी याद दिला देते हो, भाई!!! फिर कहते हो कि सेन्टिया कर लिख रहे हैं आजकल-का करें, तुमई बताओ??

Shrish August 19, 2007 at 6:51 AM  

अपन को संगीत की समझ नहीं लेकिन 'दिल हूम-हूम करे' बहुत ही मधुर और मोहक गीत है। धन्यवाद इसे प्रस्तुत करने के लिए।

वैसे अब तक मैं सोचता था कि आपके चिट्ठे पर गीत-संगीत की समझ रखने वाले ही लोगों के मतलब की बात होती है लेकिन इधर तो हम आम पब्लिक के इंटरैस्ट की भी चीजें हैं।

आपके फरमाइशी प्रोग्राम में हमें भी शामिल होना चाहिए। :)

Post a Comment

परिचय

संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

Blog Archive

ब्‍लॉगवाणी

www.blogvani.com

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP