Sunday, September 16, 2007

पहने कुरता पर पतलून, आधा फागुन आधा जून—आईये सुना जाए उत्तरप्रदेश का ये लोकगीत


बहुत दिनों से बहुत सारे लोकगीत सुनवाने की तमन्ना दिल में हिलोरें ले रही थी । और लग रहा था कि अपने ख़ज़ाने के उन अनमोल लोकगीतों को आप तक पहुंचवाया जाये, जो हैं तो कमाल के, लेकिन आजकल कहीं मिलते नहीं । कोशिश है कि आगे भी ये सिलसिला जारी रहे । पर आज मैं आपको उत्तरप्रदेश का वो लोकगीत सुनवा रहा हूं जो काफी लोकप्रिय रहा है । इसकी पंक्तियां जुमले के तौर पर इस्तेमाल की जाती रही हैं । जहां तक मुझे याद आता है ये नियामत अली की आवाज़ है । लेकिन पक्की तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है । अगर आप इस गायक को पहचानते हैं तो कृपया बताएं । तो सुनिए उत्तरप्रदेश का लोकगीत--







पहने कुरता पर पतलून आधा फागुन आधा जून
लुंगी आई अपने देस, कितनऊ धरे फकीरी भेस
धोती पहुंच गई रंगून, आधा फागुन आधा जून ।।
बाहर फैशन खूब बनावें, हरदम फिल्मी राग सुनावें
मन में बजे गिरामोफून, आधा फागुन आधा जून ।।
घर में चादर है ना लोई, बाबा ना देखे हरदोई
बेटवा चले हैं देहरादून, आधा फागुन आधा जून ।।
बाबा सूखी रोटी खावें, बेटवा अंडा खूब उड़ायें
अम्मां खायें आलू भून,आधा फागुन आधा जून ।।
पहने कुरता पर पतलून आधा फागुन आधा जून ।।



पहने-कुरता-पर-पतलून, नियामत-अली, उत्तरप्रदेश-का-लोकगीत,
Technorati tags:
“niamat ali” ,
”pehne kurta pe patloon” ,
” folk songs of uttar pradesh” ,
”उत्तरप्रदेश के लोकगीत”,
”पहने कुरता पे पतलून ” ,
”नियामत अली”,

इस श्रृंखला के अन्‍य लेख--
अंजन की सीटी में म्‍हारे मन डोले

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

13 टिप्‍पणियां:

इरफ़ान September 16, 2007 at 6:45 PM  

यह बहुत ही अच्छा काम किया आपने. इस गीत में बदलते फ़ैशन और अटपटे रहन सहन के प्रति रोचक ढंग से चिंताएं ज़ाहिर की गयी हैं.यही वो संगीत है जो मेरे बचपन की लगभग आधी स्मृतियो का हिस्सा है. बधाई.

इरफ़ान September 16, 2007 at 6:45 PM  

यह बहुत ही अच्छा काम किया आपने. इस गीत में बदलते फ़ैशन और अटपटे रहन सहन के प्रति रोचक ढंग से चिंताएं ज़ाहिर की गयी हैं.यही वो संगीत है जो मेरे बचपन की लगभग आधी स्मृतियो का हिस्सा है. बधाई.

Vikas Shukla September 16, 2007 at 7:45 PM  

Mazaa aa gaya. Gayak ki awaaz bahut mithe hai.

अनामदास September 16, 2007 at 10:12 PM  

गजबै है भइया
जितना सुनवाइए उतना कम है, फिल्मी गानों के अलावा भी संगीत है, यह तो करोड़ों लोगों को पता तक नहीं है. सुनने को लोगों को मिलता ही नहीं, हम तो खोजते फिरते हैं, हो सकता है कि जिन्होंने न सुना हो, यही सुनकर इसकी सुंदरता और सहजता पर रीझ जाएँ.

संजय तिवारी September 17, 2007 at 1:04 AM  

लोकगीत से भोड़ापन हटा दिया जाए तो रस बरसरता है जैसे इस गीत में.
मन में बजै है गरामोफून....वाह

उहै,  September 17, 2007 at 1:58 AM  

जियो रजा।॥।॥।।

सुनिके तबियतवै मस्त होए गई ।

अवजवा चाहे जेकर होए,मुला है एकदम चकाचक और बहुतै सुनी भई(बचपनवा मां)!पता करै के कोसिस करित हई के केकर बा। जे बूझि परी त तुरतै बताउब । तब लग एक दुई ठे और सुनवाय देतै ।

यूनुस अइसेन रोज सुनावैं,फोकट मां जियरा बहरावैं
हरदी लगै न लागै चून , आधा फागुन आधा जून ।

- उहै
डक्टरवा गंगा किनारे वाला
इलाहाबाद

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey September 17, 2007 at 3:22 AM  

हम तो अपनी टिप्पणी झूम कर बनाने वाले थे पर यह देखा कि हमारा काम तो ऊपर "उहै,डक्टरवा गंगा किनारे वाला, इलाहाबाद" जी ने पूरा कर दिया है! और पंक्ति भी क्या बनाई है - हरदी लगै न लागै चून, आधा फागुन आधा जून ।
बहुत अच्छा रहा यह लोक गीत - शायद 40-50 के दशक का. रंगून का नाम तभी आता था!

annapurna September 18, 2007 at 6:32 PM  

पहली बार पढा ये गीत ।

वैसे मुझे सभी लोक गीत अच्छे लगते है ।

Manish Kumar September 19, 2007 at 4:30 AM  

मजेदार रहा ये लोक गीत सुनवाने का शुक्रिया.

अभय तिवारी September 19, 2007 at 7:04 PM  

मस्त है भाई.. कितने सालों बाद सुना..

Dr Prabhat Tandon September 19, 2007 at 9:02 PM  

शुक्रिया यूनूस भाई , शहर की भीड से कुछ देर के लिये शांत और निर्मल ग्रामीण परिवेश मे आपने पहुँचा दिया ।

manish joshi September 20, 2007 at 4:50 AM  

lok geet aur dada muni ki info gazab hai. me regular listner hun vividh bharti ka. i like your programmes

Anonymous,  November 27, 2007 at 12:23 AM  

bachpan me hamre dada gava kart rahai. Humka eeke rachaita kyar naam bhulai gava hai. koik yaad hoi tav batao bhaiyya

Post a Comment

परिचय

संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

Blog Archive

ब्‍लॉगवाणी

www.blogvani.com

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP