आईये ईर बीर फत्ते सुनें । साथ में कुछ और गीत । मौक़ा अमिताभ के जन्मदिन का ।
आज अमिताभ बच्चन का पैंसठवां जन्मदिन है । रेडियोवाणी का ताल्लुक चूंकि संगीत की दुनिया से है इसलिए हम आज अमिताभ के गाये कुछ गीत आप तक पहुंचायेंगे ।
तो चलिए पहले आपको 'ईर बीर फत्ते' सुनवाया जाये ।
दरअसल ये गीत हमारी पत्नी को बहुत पसंद है ।
लेकिन उस ज़माने में जब ये अलबम आया था, हम ख़रीद नहीं पाए ।
अब ये मिलता नहीं ।
तो इंटरनेट पर ही सुनना पड़ता है ।
आईये ईर बीर फत्ते की कहानी सुनें ।
बस एक ही शिकायत रहती है इस एलबम से ।
अगर इसमें म्यूजिक थोड़ा धीमा और आवाज़ थोड़ी बुलंद होती तो कितना अच्छा रहता ।
चलिए अमिताभ के जन्मदिन पर 'ईर बीर फत्ते' सुना जाये ।
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ये है अमिताभ का गाया फिल्म 'सिलसिला' का गीत । नीला आसमां सो गया । कई लोग मानते हैं कि इसमें अमिताभ की आवाज़ सुरीली नहीं है । पर मुझे ये गीत बहुत पसंद है, ये गीत अपने संगीत, बोलों और अदायगी की वजह से बहुत ख़ास है । आपका क्या कहना है ।
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और ये मिस्टर नटवरलाल फिल्म का गीत । राजेश रोशन की तर्ज़ है ।
कमाल का गीत है ये । उन दिनों से प्रिय है जब विविध भारती पर कभी कभी सुनाई देता था और हम कान लगाकर सुनते
थे ।
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अमिताभ बच्चन को जन्मदिन मुबारक ।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: ईर-बीर-फत्ते, नीला-आसमां-खो-गया, मिस्टर-नटरवलाल, eir-beer-fatte, neela-aasman, aao-bachchon, aby-baby,
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14 टिप्पणियां:
वाह ! ईर बीर फत्ते बड़े दिनों से सुनने की इच्छा थी । शुक्रिया ।
बहुत अच्छे हैं
लगे रहो
दीपक श्रीवास्तव
प्रत्यक्षाजी की तरह "ईर बीर फत्ते और हम" मेरी भी प्रिय रचना है। इसलिये मैने तो यह पोस्ट ही बुकमार्क कर ली है।
और हां, अमिताभ बच्चन के लिए शुभकामनाएं
वाह!! शुक्रिया।
ईर बीर फ़त्ते की एम पी थ्री मै इंटरनेट पर काफ़ी समय से ढूंढ रहा हूं मिली ही नही। अगर कहीं उपलब्ध हो तो कृपया बताएं।
आपने ठीक कहा सिलसिला के गीत में अगर आवाज़ पर ध्यान न दें तो गीत बहुत खास है।
नटवरलाल का गीत तो मुझे के एल सहगल के गीत की नकल ही लगता है। भूले बिसरे गीत में पहले बहुत बार सुना पर अब कम ही सुनाई देता है के एल सहगल का ये गीत -
एक राजा का बेटा लेके उड़ने वाला घोड़ा
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दोनों ने मिल कर भर पेट खाए सेब अंगूर और केले
सिलसिला का ये गीत मुझे भी बेहद पसंद है और उसे गुनगुनाने में भी काफी मजा आता है।
युनूस भाई..अर्सा बाद रेडियोवाणी हरी-भरी हुई..मज़ा आ गया. अमिताभ हमारे सिल्वर स्क्रीन के संपूर्ण महानायक हैं.उनकी शख्सियत से एक बात सीखने को मिलती है कि कलाकार को अपने को हर रंग में ढालना चाहिये. अमिताभ बच्चन पूर्णता को पाने की तलाश वाले बैचेन पथिक हैं ; उनकी बैचेनी ही उन्हें भीड़ में अलग पहचान देती है.
अपनी टिप्पणी लिख लेने के बाद अन्नपूर्णाजी की टिप्पणी पढ़ी.उनसे अपना विनम्र एतराज़ जताने की ख़ातिर फ़िर से कमेंट बॉक्स खोल बैठा. अन्नपूर्णाजी से सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूँ कि एक राजे का बेटा लेकर (सहगल) और मेरे पास आओ मेरे दोस्तो एक क़िस्सा सुनो(अमिताभ) गीतों में एक साएलेंट समानता ये है कि कथोपकथन की शैली में दोनो गीतों की भाव भूमि बनी है लेकिन जहाँ तक अमिताभ और सहगल साहब की गायकी क प्रश्न है ..अमिताभ सहगल साहब के पासंग भी नहीं बैठते हैं ...हाँ अभिनय कला में अमिताभ सहगल साहब से इक्कीसे नापे जाएंगे.
यूनुस भाई, आप हमेशा कमाल करते हैं. 'ईर बीर फत्ते' ने तो धूम मचा दी. क्या किन्ही को "नीला आसमां सो गया...." भी पसंद नहीं आ सकता है... मैं मान नहीं सकता. इतने कर्णप्रिय संगीत को और उस गूंजती आवाज़ को... जिसके सुनने से हम उसी dimension मे चले जाते हैं. सारे गाने मुझे बहुत-बहुत पसन्द हैं.धन्यवाद.
मेरे ब्राउजर मे वो गाना नहीं बज पा रहा था -- " मेरे पास आओ मेरे दोस्तो,एक किस्सा सुनो " लेकिन मुझे ये गाना इतना पसंद है की दूसरे इन्टरनेट की site से इसे download किया, सुना , सुनते ही अपने उन्हीं बचपन के दिनों मे खो गया जब " बाल मंजूषा" कार्यक्रम में ये गाना बजता था और मैं मजे लेकर इसे सुना करता था...
इस गीत के साथ अमिताभ बच्चन को जन्म दिन की बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.
यूनुस भाई
सबसे पहले तो अमिताभ बच्चन को जन्म दिन की शुभकामनायें।
मेरे पास आओ .. ही अमिताभ का पहला गाया हुआ गाना है जिसका जिक्र लेख में रह गया। दूसरी बात यह कि ईर बीर .. में गीत,संगीत या अमिताभ की गायकी में ऐसी कोई खास बात मुझे तो नहीं लगी। हाँ अमिताभ के बाकी ज्यादातर गाने मुझे पसन्द है परन्तु ईर बीर नहीं।
विनम्र ऐतेराज़ तो मुझे भी है संजय जी।
जब दूसरा गीत पहले गीत के 25-30 साल बाद आता है तब उसे नकल ही कहा जाता है और नकल में समानता ही तो होती है।
रही बात अभिनय की… वैसे तो अमिताभ की अभिनय क्षमता मैं भी मानती हूं लेकिन इस एंग्रीयंग मैन ने कितने स्टंट सीन खुद किए ? जबकि सहगल साहब के दौर में डुप्लीकेट का चलन नहीं था।
अन्नपूर्णा
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