Friday, November 9, 2007

रेडियोवाणी पर शुभा मुदगल के दीपावली-गीतों की रसवर्षा

रेडियोवाणी की ओर से सभी को दीपावली की असंख्‍य शुभकामनाएं ।

दीपावली को हम प्रकाश का पर्व कहते हैं । आध्‍यात्मिक-जन इस प्रकाश को अपने अंतस में जगाते हैं । और रेडियोवाणी पर हम मानते हैं कि अंतस के इस प्रकाश को जगाने में संगीत का अपरिमित योगदान होता है । दीपावली के इस पावन पर्व पर आपको फिल्‍मी गीत सुनाना मुझे ठीक नहीं लगा । इसलिए खोजबीन के आज मैं आपके लिए लाया हूं शुभा मुदगल के कुछ दीवाली-गीत । ये हमारी विराट सांस्‍कृतिक-परंपरा के प्रतीक भी हैं । इन गीतों को सुनकर ज़रा ये महसूस कीजिएगा कि हमारा मीडिया अपनी सोच के स्‍तर पर कितना दरिद्र हो गया है कि दीपावली के नाम पर वही दो चार प्राचीन फिल्‍मी गीतों को प्रस्‍तुत करता रहता है । ज्‍यादा से ज्‍यादा कुछ चीज़ों को जोड़-जाड़कर मोन्‍टाज बना लिया और हो गयी इतिश्री । ख़ैर छोडि़ये । रेडियोवाणी के इस मंच की पहली दीपावली शुभा जी के पावन स्‍वर से और भी प्रकाश्‍ामान हो गयी है ।

सबसे पहले सुनिए ब्रज की दीवाली का गीत ।
जिसमें ब्रज में दीपावली के उल्‍लास और तैयारियों का सुंदर वर्णन है ।
इस गीत की इबारत भी प्रस्‍तुत है ।

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आज दीवाली मंगलचार
ब्रज जुवती मिल मंगल गावत
चौक पुरावत नंदकुमार ।
आज दीवाली मंगलचार ।।

मधु, मेवा, पकवान, मिठाई
भरि भरि लीन्‍हें कंचन थार
परमानंद दास को ठाकुर
पहिरे आभषण सिंगार ।
आज दीवाली मंगलचार ।।


और अब ब्रज की दीपावली का एक और चित्र ।
ये सूरदास की रचना है । मैंने तो पहली बार पढ़ी और सुनी ।
और पढ़-सुनकर बस यूं लगा कि पहले क्‍यों नहीं सुना । दिव्‍य दीपावली हो गयी हमारी


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आज दीपत दिव्‍य दीप मालिका
मानो कोटि रवि कोटि चंद्र छबि
विमल भई लेश्‍ा कालिका
गज-मोतिन के चौक पुराए
बीच बच ब्रज प्रवालिका
गोकुल सकल चित्र मणि-मंडित
शोभित झाल झमा‍लिका ।।
आज दीपत ।।

पहर सिंगार, बनी राधा जू
सगरी ये ब्रज बालिका
झलमल दीप समीप सोंझ भर
करई ये कंचन थालिका ।।
आज दीपत ।।

पाए निकट मदन मोहन पिय
मानो कमल अलि-मालिका
बाबुल हंसत, हंसवात ग्‍वालन
पटक पटक दय तालिका
आज दीपत ।।

नंद भवन आनंद बढ़ावती
देखत परम रसालिका
सूरदास कुसुमन सुर बरसत
कर अंजुली पुट मालिका
आज दीपत ।।


ये है दीपावली पर श्रीराम के राज्‍याभिषेक का गीत ।
घर घर आंगन होत बधाई । एक अदभुत रचना ।

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घर घर आंगन होत बधाई
श्रीरामचंद्र सिंहासन बैठे
छत्र चमर ढुराई
घर घर आंगन होत बधाई ।।

मंगल साज लिये सब सुंदरी
नवसत सजके आई
तिलक लियो जब अंकुर शिरधर
आरती लोल कराई
जय जयकार भयो त्रिभुवन में
देवन दुंदुभी बजाई
घर घर आंगन होते बधाई ।।

सुर नर मुनिजन कोटि कैं तीसों
कौतुक अंबर छाई
चिर जियो अविचल राजधानी
भक्‍तन के सुखदाई
श्रीरघुनाथ चरण कमल रज
रामदास निधि पाई
घर घर आंगन होत बधाई ।।


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7 टिप्‍पणियां:

mahashakti November 9, 2007 at 9:09 PM  

सुभामुदगल की आवाज में तो जादू है।

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey November 9, 2007 at 11:27 PM  

दीपावली पर बहुत-बहुत मंगल कामनायें आपको और आपके परिवार को यूनुस!

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey November 9, 2007 at 11:29 PM  

और कहीं कभी यह मिलेगा - 'गाइये गणपति जगबन्दन। संकर सुबन भवानी नन्दन।'

राज यादव November 10, 2007 at 1:22 AM  

उनुस भाई दिवाली कि ढेरों सारी बधाई और शुभ कामना !

Sanjeet Tripathi November 10, 2007 at 5:37 AM  

मस्त!!

आपको दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें.

नितिन बागला November 10, 2007 at 5:51 PM  

इतने सुन्दर कीर्तन उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद यूनुस भाई।
दिवाली पर घर पे गाते हैं ये कीर्तन..इस बार घर नही जा पाये..तो यहां सुन लिये :)

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