Sunday, November 25, 2007

कोई गाता मैं सो जाता--डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन के बोल और येसुदास की आवाज़


आज सुबह सुबह मुंबई के नवभारत टाईम्‍स से पता चला कि इस साल
डॉ.हरिवंश राय बच्‍चन की जन्‍मशती है । इसलिए रेडियोवाणी पर हमने तय किया है कि इस साल के बचे हुए इन गिने चुने दिनों में आपको बच्‍चन जी की कुछ अनमोल रचनाएं सुनवाई जायेंगी । मधुशाला तो आपको मनीष सुनवा ही चुके हैं । अगर आप मधुशाला पढ़ना चाहते हैं तो यहां पढि़ये ।

डॉ. बच्‍चन की कुछ रचनाओं का इस्‍तेमाल फिल्‍मों में भी हुआ है ।
पर यहां आपको 'मेरे अंगने में' जैसा कुछ नहीं बल्कि आज फिल्‍म 'आलाप' का एक गीत सुनवाया जा रहा है । ऋषिकेश मुखर्जी ने ये फिल्‍म सन 1977 में बनाई थी । संगीतकार थे जयदेव । ये गीत येसुदास ने गाया है । और मेरी राय के मुताबिक़ येसुदास के सर्वश्रेष्‍ठ गीतों में इसे शामिल किया जा सकता है । आपको ये भी बतलाना चाहता हूं कि ये गीत राग बिहाग पर आधारित है ।

ज़रा इस गीत को सुनिए और महसूस कीजिए कि कितना लालित्‍य है इस रचना में, गायकी में और संगीत में ।

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कोई गाता मैं सो जाता कोई गाता ।

संसृति के विस्‍तृत सागर पर
सपनों की नौका के अंदर।।
सुख दुख की लहरों पे उठ गिर
बहता जाता मैं सो जाता ।।
कोई गाता ।।

आंखों में भरकर प्‍यार अमर
आशीष हथेली में भरकर
कोई मेरा सिर गोदी में रख
सहलाता, मैं सो जाता ।।
कोई गाता ।।

मेरे जीवन का खारा जल
मेरे जीवन का हालाहल
कोई अपने स्‍वर में मधुमय कर
बरसाता, मैं सो जाता ।।
कोई गाता ।।

ऊपर जो चित्र दिया गया है शायद अपने पहचान लिया हो कि इसमें डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन के साथ मौजूद हैं सुमित्रानंदन पंत और पं.नरेंद्र शर्मा

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7 टिप्‍पणियां:

डॉ. अजीत कुमार November 25, 2007 at 4:59 PM  

यूनुस भाई, "येसुदास" और "सुरेश वाडेकर" - ये नाम सुनते ही मेरे मन में एक संगीत सा बजने लगता है. आप समझें कि येसुदास जी के अनेकों गीत मेरे मन में कुछ इस तरह पिरोये हुए हैं कि मैं चाह कर भी उनसे मुक्त नहीं हो सकता. इस गीत को भी मैं बार बार सुनता था और इसकी भावनाओं में डूबता उतराता था, पर पता नहीं क्यों अभी तक ये नहीं पता था कि बच्चन साहब की ये रचना है. सच में कितनी काव्यात्मकता है इस रचना में.
इतनी अच्छी रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.

अफ़लातून November 25, 2007 at 6:14 PM  

युनुस भाई , आलाप के अन्य गीत भी जुटाइए ।
डॉ. अजित, सुरेश वाडकर,वाडेकर नहीं ।

Vikas Shukla November 25, 2007 at 7:05 PM  

युनूसभाई,
येसुदासजी का गाया हुवा ये गीत वाकईमें बहुतही सुंदर है और बच्चनसाबके बोल भी. शायद ये उनकी कविता है जिसे फिल्ममे लिया गया है. और कविताको संगीतमे ढलानेमें भला जयदेवजी कौन मात दे सकता है? (तुमुल कोलाहल कलय के बारेमे आपने पहले भी लिखा है).
येसुदासजी ने फिल्म सदमा के लिये एक अदभुतसा गीत गाया है, ’सुरमई अखियोंमें एक नन्हा मुन्हा सपना दे जा रे’ गुलजार के बोल और इलय राजा का संगीत. (इसी फिल्ममें सुरेश वाडकर साबका भी खूबसूरतसा गीत है "ए जिंदगी गले लगा ले").
ए.आर. रहमान के उदय के बाद इलय राजा का संगीत क्षेत्रसे मानो अस्त सा हो गया. नही तो वो दक्षीण भारतके चित्रपट संगीत के सम्राट थे. कभी उनके बारेमे लिखियेगा. येसुदासने गाये हुवे मलयालम और तमील गीत बहुतही कर्णमधुर है. भाषा भलेही ना समझे, सुननेमें बडा मजा आता है.

अनूप शुक्ल November 25, 2007 at 7:23 PM  

अभी-अभी ये गीत सुना। बहुत अच्छा लगा। बच्चनजी की आवाज में कोई गीत हो तो सुनवायें वह भी। :)

Sanjeet Tripathi November 25, 2007 at 7:52 PM  

सुंदर!!

शुक्रिया!!

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey November 25, 2007 at 11:29 PM  

हरिवंशराय बच्चन की यह रचना बार-बार पढ़े पर भी पढ़ने का मन करता है। अच्छा किया, याद दिलायी आज के दिन यूनुस!

Sagar Chand Nahar November 26, 2007 at 2:01 AM  

और मेरे हिसाब से यह गीत हिन्दी के सबसे सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। क्या कमाल का संगीत क्या गीत और लाजवाब गायकी ।
सुनते हुए पता नहीं मन कहीं खो सा जाता है, एक बार सुनने से मन नहीं भरता।
मेरे सब्से पसंदीदा गीतों में से एक है यह गीत।

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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