Monday, December 3, 2007

क्‍यूं प्‍याला छलकता है--मन्‍नाडे का एक अनमोल गीत


आज रेडियोवाणी पर जो गीत रहा है उसे सुनवाने का वादा मैंने कुछ दिन पहले किया थापर व्यस्तताओं की वजह से नहीं सुनवा सका

ये कई मायनों में एक दुर्लभ गीत है
मुझे याद है कि मैंने black and white टी वी के ज़माने में शिवेंद्र सिन्हा की ये फिल् दूरदर्शन पर देखी थीउन दिनों हमने मन्नाडे के गीत खोज-खोजकर सुनने शुरू कर दिये थेइस गीत को मैं कई सालों से खोज रहा था पर अब जाकर हाथ लगा हैइस गाने में एक सादगी है और शब्दों में है लालित्

पंडित नरेंद्र शर्मा के बोल हैं और संगीत रघुनाथ सेठ का हैसुनिए और बताईये कि कैसा लगा ये गीत






क्‍यूं प्‍याला छलकता है क्‍यूं दीपक जलता है
दोनों के मन में कहीं अनहोनी विकलता है ।।

पत्‍थर में एक फूल खिला, दिल को एक ख्‍वाब मिला
क्‍यूं टूट गये दोनों, इस का ना जवाब मिला
दिल नींद से उठ उठकर क्‍यूं आंखें मलता है ।।

हैं राख की रेखाएं लिखती हैं चिंगारी
हैं कहते मौत जिसे जीने की तैयारी
जीवन फिर भी जीवन जीने को मचलता है ।।
क्‍यूं प्‍याला छलकता है ।।



चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: kyu-pyala-chalakta-hai, manna-dey, phir-bhi, Pt.-narendra-sharma,

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5 टिप्‍पणियां:

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey December 3, 2007 at 3:08 PM  

यह सुनना बहुत भाया, यूनुस।

Neeraj Rohilla December 3, 2007 at 5:28 PM  

यूनुसजी,
मन्नाजी का हिन्दी शब्दों का उच्चारण सभी गायकों में सबसे उत्कृष्ट है | इस मामले में उन्होंने कभी निराश नहीं किया | गजल के क्षेत्र में यही बात मेहदी हसन साहब पर लागू होती है |

इस मधुर गीत को सुनवाने के लिए धन्यवाद |

Vikas Shukla December 3, 2007 at 7:30 PM  

मन्नाडॆजी के गाये फिल्मी और गैर फिल्मी गीत, दोनोही बडे मधुर है. ये गीत भी बढिया रहा.

Manish Kumar December 4, 2007 at 2:42 AM  

बहुत खूब यूनुस भाई पहली बार सुना इसे..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` December 4, 2007 at 4:13 AM  

युनुस भाई,
मन्ना बाबू का गाया, मेरे पापा जी का लिखा ये गीत आज अंतर्जाल के आपके पन्ने पे सुनकर बहुत खुशी हुई - सुनवाने का शुक्रिया -

स्नेह - लावण्या

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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