Tuesday, February 12, 2008

धड़कन ज़रा रूक गयी है-फिल्‍म प्रहार का गीत ।

कुछ गाने ऐसे होते हैं जिन्‍हें आप उम्र भर बस ढूंढते ही रह जाते हैं । मुझे ये खोज अजीब-सी लगती है कभी-कभी । कितने ही ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिन्‍हें किसी अज़ीज़, किसी प्रिय गीत की विकल तलाश रहती है । और उन्‍हें ये गाने नहीं मिलते । मुझे ही देखिए--ऐसे कितने ही गाने हैं जिनकी तलाश मुझे बरसों बरस से रही है । अब चूंकि टेक्‍नॉलॉजी अपने शिखर पर है, इसलिए इंटरनेट ऐसे गानों की खोज का स्‍वर्ग बनता जा रहा है ।

कुछ साल पहले की बात है, विविध भारती में ही एक सज्‍जन आए । पेशे से चित्रकार । ताल्‍लुक़ एक नामी संगीत-ख़ानदान से । उनके हाथ्‍ा में एक लिस्‍ट थी जिसमें ऐसे गाने थे जिनकी तलाश उन्‍हें कई सालों से रही है । किसी ने उन्‍हें मेरा पता-ठिकाना बता दिया था । ये एक समान तलाश वाले दो लोगों की मुलाक़ात थी । उनकी लिस्‍ट में जो गीत उनमें से एक था--अंबर की एक पाक सुराही । जो पिछले दिनों रेडियोवाणी पर सुनवाया गया था ।

फिर श्‍याम बेनेगल की फिल्‍म 'सूरज का सातवां घोड़ा' का एक गीत था--ये शामें सब की सब ये शामें' । धर्मवीर भारती की कविता । ये गीत मुझे आज तक नहीं मिला है । इसकी खोज कहां कहां नहीं की मैंने । बीते साल इस गीत के संगीतकार वनराज भाटिया से उनके घर जाकर एक लंबी बातचीत करने का मौक़ा मिला था । उनसे इस गाने की खोज-ख़बर ली तो उन्‍होंने शिकायती लहजे में कहा कि श्‍याम (बेनेगल) की एक आदत ख़राब है । वो गाने रिकॉर्ड तो पूरे करता है पर फिल्‍म में ज़रा सा टुकड़ा इस्‍तेमाल करता है । दिक्‍कत ये है कि कई फिल्‍मों की म्‍यूजिक सीडी भी रिलीज़ नहीं हुई । अब मुझे खुद भी नहीं पता कि कौन से गाने उसने बचाकर रखे हैं और कौन से यहां वहां गुम हो गये । इस तरह 'सूरज का सातवां घोड़ा' के गानों की खोज पर फिलहाल विराम लगा है । श्‍याम बाबू से ही इसकी तफ्तीश की जाएगी । उनका एक लंबा इंटरव्‍यू पहले किया था । अब कई दिनों से ओवरड्यू है । देखें कब हो पाता है ।

बहरहाल बात हो रही थी कुछ गानों की विकल तलाश की । तो आज मैं एक ऐसा ही गीत लाया हूं जिसे मैं काफी समय से खोज रहा था । दो तीन महीने पहले ये गीत मिल भी गया था पर रेडियोवाणी पर इसे चढ़ाने का अवसर मिल नहीं पा रहा था । ये गीत है फिल्‍म 'प्रहार' का । सच तो ये है कि इस फिल्‍म के सारे गीत मैं खोज रहा था और अब मिल भी गये हैं । एक एक करके समय समय पर रेडियोवाणी पर इन्‍हें प्रस्‍तुत किया जाएगा ।

आपको याद होगा कि 'प्रहार' सन 1991 में जाने-माने अभिनेता नाना पाटेकर ने ही बनाई थी । वे इस फिल्‍म के लेखक निर्देशक अभिनेता थे । संगीत लक्ष्‍मी-प्‍यारे का था और गाने मंगेश कुलकर्णी ने लिखे थे । एक बेहद सशक्‍त फिल्‍म जिसे आज तक लोग याद करते हैं । इस फिल्‍म का एक गीत है--'धड़कन ज़रा रूक गयी है ।' आईये आज इस गाने की बातें करें ।

धड़कन ज़रा रूक गयी है--एक बाक़ायदा नृत्‍य गीत है । लेकिन आम फिल्‍मों की तरह झूम-झाम नृत्‍य वाला नहीं । ये बॉलरूम का गीत है । दरअसल पार्टी में वॉल्‍ट्ज हो रहा है और पृष्‍ठभूमि में ये गीत बज रहा है । ये है इस गाने की सिचुऐशन । लक्ष्‍मी-प्‍यारे ने गाने के इंट्रो और इंटरल्‍यूड में वॉल्‍ट्ज की तरंग रखी है । मुखड़े के बाद पहले गाढ़ी सी सोलो वायलिन आती है और फिर ग्रुप वायलिन जिसमें सलिल चौधरी के संगीत जैसा अहसास है । इस गाने में आगे चलकर आपको पियानो भी सुनाई देता है । क़रीब साढ़े चार मिनिट के आसपास जाकर । सुरेश वाडकर की आवाज़ इस नर्मोनाज़ुक गाने के लिए बिल्‍कुल फिट है । शानदार और बेमिसाल गीत  है ये । लंबी खोज के बाद मिला ये गीत मुझे बहुत सुख दे रहा है । आप बताएं आपको कैसा लगा ।

धड़कन ज़रा रूक गयी है, कहीं जिंदगी बह रही है ।

पलकों में यादों की डोली, भीतर खुशी हंस रही है ।

ये खुशी तुम हो, तुम्‍हीं तुम मेरी जानम, करो ऐतबार ।।

धड़कन ज़रा रूक गयी है ।।

चेहरों के मेले में चेहरे थे गुम, इक चेहरा था मैं, इक चेहरा थे तुम

जाने क्‍या तुमने दे दिया, मुझको जहान मिल गया ।।

धड़कन ज़रा रूक गयी है ।।

होठों पर बात रहे, बातों में सुर बहे, सुरों में गीत वही, तुम्‍हारी ही बात कहे ।

मिट जाऊं सपनों के आग़ोश में, भीग जाऊं यादों की बौछार में ।

धड़कन ज़रा रूक गयी है ।।

मिलते ही आंखों ने, रिश्‍ता पहचाना, अहसास सीने में सांसों ने जाना

चुपके से प्‍यार छू गया, दिला के इक जनम नया ।

धड़कन ज़रा रूक गयी है ।।

ये रहा इस गाने का यू ट्यूब वीडियो ।

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7 टिप्‍पणियां:

annapurna February 12, 2008 at 8:10 PM  

कविताकोश में कवियों की सूची में धर्मवीर भारती पर क्लिक कीजिए जहां क्या इनका कोई अर्थ नहीं शीर्शक से ये शामें… कविता है।

Parul February 12, 2008 at 9:31 PM  

ये गीत सुनकर कदम खुद ब खुद इसकी लय मे थिरकने लगते है……खूबसूरत गीत, अरसे बाद सुना…शुक्रिया

Anonymous,  February 13, 2008 at 1:23 AM  

सुरेश वाडकर की आवाज़ सरस,मंगेश कुलकर्णी के शब्द और इस गीत को पुन: सुनना भी सुखद है। सूरज का सातवां... कुछ महीने पहले देखी थी पर भारती जी की कविता पर ध्यान नहीं गया। आपकी पोस्ट पढ़कर यह फ़िल्म पुन: देखनी होगी।

yunus February 13, 2008 at 1:33 AM  

अनाम जी आपकी टिप्‍पणियां पढ़कर अच्‍छा तो लग रहा है पर कृपया जिज्ञासा ना बढ़ाएं और बेनामी-परदे से बाहर आ जाएं । फिर गुफ्तगू में मज़ा भी आएगा और जमेगी भी खूब ।

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey February 13, 2008 at 2:39 AM  

श्याम बेनेगल की आदत - बहुत सी मेहनत और उसमें से कुछ का इस्तेमाल - जान कर अच्छा लगा। यही उत्कृष्टता का कष्टसाध्य मन्त्र है।

Manish Kumar February 13, 2008 at 3:05 AM  

बहुत सुंदर गीत है ये। बहुत दिनों बाद इसे दोबारा सुना। धन्यवाद !

डॉ. अजीत कुमार February 15, 2008 at 2:57 AM  

सुरेश वाडकर की आवाज़ का जादू हमेशा मुझे लुभाता रहा है.
इस गाने में भी उनकी सुरीली आवाज़ के साथ बेहतरीन लिरिक्स ने समान बाँध दिया है.
धन्यवाद.

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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