Thursday, February 21, 2008

'वो काग़ज़ की कश्‍ती वो बारिश का पानी' लिखने वाले सुदर्शन फ़ाकिर नहीं रहे...

रेडियोवाणी पर इन दिनों मशहूर शायर मख़दूम मोहिउद्दीन की रचनाओं की श्रृंखला चल रही है । लेकिन आज उसे मुल्‍तवी करते हुए एक अहम शायर को श्रद्धांजली दी जा रही है । कल टेलीविजन पर ख़बर देखी कि जाने-माने शायर सुदर्शन फाकिर नहीं रहे । ये भी देखा कि जगजीत सिंह उनकी यादों की महफिल सजाए हुए हैं ।

सुदर्शन फाकिर के बारे में ज्‍यादा कुछ पता नहीं है । ना ही इंटरनेट खंगालते हुए ज्‍यादा कुछ पता चला । हां उनकी ग़ज़लों की एक लंबी फेहरिस्‍त है । और इनमें से ज्‍यादातर ग़ज़लें कई नामचीन कलाकारों ने गाई हैं । मुझे बेगम अख्‍तर की गाई ये ग़ज़ल बहुत शिद्दत से याद आती है । आईये इसे सुना जाए । इसकी इबारत भी दे रहा हूं ।

इश्‍क़ में ग़ैरत-ऐ-जज्बात ने रोने ना दिया

वरना क्‍या बात थी, किस बात ने रोने ना दिया ।

आप कहते हैं कि रोने से ना बदलेंगे नसीब

उम्र भर आप की इस बात ने रोने ना दिया

रोने वालों से कह दो उनका भी रोना रो लें

जिनको मजबूरी-ऐ-हालात ने रोने ना दिया

तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था

तंगी-ऐ-वक्‍त-ऐ-मुलाक़ात ने रोने ना दिया

एक दो रोज का सदमा हो तो रो लें फ़ाकिर

हमको हर रोज़ के सदमात ने रोने ना दिया ।।

 

सुदर्शन फाकिर की सबसे बड़ी ख़ासियत ये थी कि वो बहुत सरल और सादा जज्‍़बात काग़ज़ पर उतारते थे । उनकी ग़ज़लें इसलिए ज्‍यादा लोकप्रिय हुईं क्‍योंकि उनमें उर्दू के भारी-भरकम अलफ़ाज़ नहीं हैं । कहते हैं कि बेगम अख्‍़तर के वो पसंदीदा शायर थे । हालांकि जगजीत सिंह ने भी उनकी कई रचनाएं गायी हैं । पहले सुनिए बेगम अख्‍़तर की आवाज़ में उनकी ये बेमिसाल ग़ज़ल ।

 

कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया

और कुछ तल्खि़ए हालात ने दिल तोड़ दिया

हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब

आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

दिल तो रोता रहे, और आंख से आंसू ना बहे

इश्‍क़ की ऐसी रवायाल ने दिल तोड़ दिया

वो मेरे हैं, मुझसे मिल जायेंगे, आ जायेंगे

ऐसे बेकार ख़यालात ने दिल तोड़ दिया

आप को प्‍यार है मुझसे कि नहीं है मुझसे

जाने क्‍यों ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया ।।

 

और अब बारी सुदर्शन फाकिर की लिखी और जगजीत सिंह की गाई उस नज़्म की, जो सारी दुनिया में इसलिए मशहूर है क्‍योंकि उसके ज़रिए हम अपने बचपन की गलियों में लौट जाते हैं । दुनिया में भला कौन ऐसा होगा जिसे इस नज़्म ने बचपन की तरल-यादों में ना लौटा दिया हो । मैंने अपने स्‍कूल के दिनों में इसी नज़्म के ज़रिए पहली बार सुदर्शन फाकिर को पहचाना था । इसका वो संस्‍करण रेडियोवाणी पर चढ़ाया जा रहा है जो किसी कंसर्ट में जगजीत सिंह ने गाया था । ऐसा इसलिए कि इसमें जगजीत सिंह का एक अलग ही रंग नज़र आ रहा है ।

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो

भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।

मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन

वो काग़ज़ की कश्‍ती वो बारिश का पानी ।।

मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,

वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,

वो नानी की बातों में परियों का डेरा,

वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,

भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,

वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।

कड़ी धूप में अपने घर से निकलना

वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,

वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,

वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,

वो पीतल के छल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,

वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।

कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना

घरौंदे बनाना,बना के मिटाना,

वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,

वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,

न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,

बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी ।

सुदर्शन फाकिर जिंदगी भर गुमनाम रहे, वो उन शायरों में से नहीं थे जो टेलीविजन या रेडियो की दुनिया में छाए रहें । वो ज्‍यादा इंटरव्‍यू भी नहीं देते थे । ये विडंबना ही है कि शायर सुदर्शन फाकिर की ग़ज़लें उनके नाम से ज्‍यादा लोकप्रिय हुईं

। और नामवर हो गये वो लोग जिन्‍होंने सुदर्शन फाकिर को गाया । सुदर्शन तो बस चंडीगढ़ में एक गुमनाम जिंदगी जीते रहे और चुपके से चले भी गए । शायद मौत के ज़रिए भी सुर्खियों में आना उनको मंजूर नहीं था । चलते चलते उन्‍हीं की ग़ज़ल के कुछ शेर उनके नाम---

पत्‍थर के ख़ुदा पत्‍थर के सनम पत्‍थर के ही इंसां पाए हैं

तुम शहरे मुहब्‍बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।।

बुतख़ाना समझते हो जिसको पूछो ना वहां क्‍या हालत है

हम लोग वहीं से गुज़रे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं ।।

हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहां

सहरा में खु़शी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं ।।

होठों पे तबस्‍सुम हल्‍का-सा आंखों में नमी से है 'फाकिर'

हम अहले-मुहब्‍बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं ।।

फाकिर साहब की याद को हज़ारों सलाम ।
सुदर्शन फाकिर की अन्‍य रचनाओं की फेहरिस्‍त देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए ।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

24 टिप्‍पणियां:

हर्षवर्धन February 21, 2008 at 3:24 PM  

सुदर्शन फाकिर को श्रद्धांजलि

इरफ़ान February 21, 2008 at 3:31 PM  

फ़ाक़िर साहब ने सचमुच सादा अल्फ़ाज़ में ज़िंदगी की रूमानी और ज़मीनी हक़ीक़तों से हमारी शनासाई करवाई है. ग़ज़लें अगर एक ख़ास श्रोतावर्ग से निकलकर आम श्रोताओं तक आरज़ू लखनवी के ज़रिये तब पहुँची थीं तो सुदर्शन फ़ाक़िर के ज़रिये अब.
आपने जिस परिश्रम और लगन से यह पोस्ट लगाई है उसे भी याद रखा जाएगा.

Shiv Kumar Mishra February 21, 2008 at 3:50 PM  

यूनूस भाई, वाकई गजब का लिखते थे फाकिर साहब. "बुतखाना समझते हो जिसको, पूछो न वहाँ क्या हालत है..." उन्हें श्रद्धांजलि.
इस पोस्ट के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.

अनिल रघुराज February 21, 2008 at 4:18 PM  

आप को प्‍यार है मुझसे कि नहीं है मुझसे।
जाने क्‍यों ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया।।
वाकई हर खासोआम के दिलों को छू जानेवाले शायर थे फाकिर साहब। अफसोस मुझे आज तक पता नहीं था कि वो कागज की कश्ती को लिखनेवाले का नाम सुदर्शन फाकिर है। वाकई काम और नाम होते हुए भी अगर मार्केटिंग दुरुस्त न हो तो प्रतिभाएं कैसे गुमनाम रह जाती हैं।

ALOK PURANIK February 21, 2008 at 5:14 PM  

फाकिर साहब को श्रदांजलि
इश्‍क़ में ग़ैरत-ऐ-जज्बात ने रोने ना दिया

वरना क्‍या बात थी, किस बात ने रोने ना दिया ।

हाय कालेज के दिनों में कितनी बार इस शेर ने सहारा दिया है।
फाकिर साहब यहां ना मिल पाये आपसे, ऊपर हम भी आ ही रहे हैं, दस बीस पचास साल में, ऊपर जमकर बैठकें होंगी।

काकेश February 21, 2008 at 5:14 PM  

बहुत जरूरी काम किया आपने. सुदर्शन फ़ाकिर साहब की याद को नमन.

annapurna February 21, 2008 at 5:52 PM  

नहीं यूनुस जी, फाकिर साहब के जज्बात सादा नहीं थे, हां अल्फ़ाज़ ज़रूर सादा थे।

एक स्तर पर आने के बाद काग़ज़ की कश्ती और बारिश का पानी याद रखना और

हम तो समझे थे बरसात में बरसेगी शराब
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

ये सादा जज्बात नहीं है।

कंचन सिंह चौहान February 21, 2008 at 7:59 PM  

sari nazmo.n kojankari thi bas ye jankati nahi thi ki Faqir sahab ki hai.. batane ka shukriya

डॉ. अजीत कुमार February 21, 2008 at 8:21 PM  

यूनुस भाई,
ये सुन कर बहुत दु:ख हुआ की अजीम शायर सुदर्शन फ़ाकिर साहब जन्नतनशीं हो गए.
पर उनके लिखे अशआर हमेशा हमें सुनने को मिलेंगे, और जब भी गायक को दाद मिलेगी तो उस पर पहला हक तो शायर का ही होगा.
धन्यवाद.

Poonam February 21, 2008 at 8:39 PM  

फाकिर साहब को श्रध्दांजलि . इतनी खूबसूरत गज़लों के सृजनकर्ता का नाम ही नही पता था मुझे.कितनी बार रिवाइंड करके सुना है उनकी गज़लों को.

विकास कुमार February 21, 2008 at 8:58 PM  

gazalen suni thi. naam nahi pata tha.
aise mahan shayar ko shradhaanjali.

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey February 21, 2008 at 9:53 PM  

फ़ाकिर साहब को जाना भी अभी जब वे नहीं हैं। और ये अति सुन्दर गीत तो वास्तव में उनके प्रति गहरे मन से श्रद्धांजलि देने को प्रेरित कर रहे हैं।

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi February 21, 2008 at 10:18 PM  

शुक्रिया तीन बेहतरीन गजलें सुनाने का।

विनय 'नज़र' February 22, 2008 at 12:22 AM  

सुदर्शन जैसे शाइर ज़माने में एक बार ही पैदा होते है और उनकी शाइरी सभी के दिलों में मरते दम तक ज़िन्दा रहती है...

डॉ.श्रीकृष्ण राऊत February 22, 2008 at 1:57 AM  

‘दिल तो रोता रहे, और आंख से आंसू ना बहे

इश्‍क़ की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया’

यूनुस भाई,

ग़ज़ल के इश्क मे आज कुछ ऐसी ही हालत
है अपने दिल की ।

Manish Kumar February 22, 2008 at 2:20 AM  

सुदर्शन फ़ाकिर नहीं रहे..जानकर बहुत धक्का पहुँचा। उनकी कई गजलें और नज़्में सुनते सुनते बड़े हुए हैं। बड़ी मायूसी हुई..

mamta February 22, 2008 at 2:28 AM  

जगजीत सिंह की गई हुई ये नज्म तो सुनी थी पर शायर का नाम नही मालूम था।

फाकिर साहब को श्रधांजलि ।

अजय यादव February 22, 2008 at 6:09 AM  

सुदर्शन फ़ाकिर को विनम्र श्रद्धांजलि! आम आदमी के जज़्बातों को उसी की भाषा में बेहद खूबसूरती से कहने वाले इस महान शायर की गज़लें और नज़्म हमेशा हमें उनकी याद दिलातीं रहेंगी!

झूठा है जो भी कहता है कि फ़ाकिर नहीं रहा
क्या कोई भी उस कलाम का शाकिर नहीं रहा

RA February 22, 2008 at 1:55 PM  

यूनुस, सुदर्शन फ़ाक़िर की याद को उनकी कृतियो से जोड़ रहें है आप, तो हमें बचपन में सुने दूरियाँ के record की याद आयी जब गीत के सुंदर शब्दों को सुनकर एक नाम ’सुदर्शन फ़ाक़िर’ का जाना था जो आज भी उन गीतों को पुन: सुनते वक़्त ज़ेहन पर आ जाता है।
शब्दो से एहसासात का जादू जगानें वाले फ़ाक़िर साहब को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं।

नितिन व्यास February 22, 2008 at 3:36 PM  

महान शायर को विनम्र श्रद्धांजलि!

vimal verma February 22, 2008 at 7:16 PM  

किसी के जाने के बाद ही उनकी खूबियों के बारे में पता चलता है... कितने दिनो से तो वो कागज़ की कश्ती हम सुनते आ रहे थे या जगजीत चित्रा की वजह से भी हम सुदर्शन जी को गुनगुना रहे थे पर बेग़म अख्तर भी उन्हें गाती थी ये जानकारी मेरे लिये नई है.. हमारी विनम्र श्रद्धांजलि सुदर्शन जी को.......

जोशिम February 23, 2008 at 7:48 AM  

एक अनूठे कलाम के बढ़ जाने पर क्या कह सकते हैं? - उन्हीं के शब्दों में ? - बस तेरी याद के साए हैं .. पनाहों की तरह.. - श्रद्धांजलि - मनीष

Rajendra,  February 24, 2008 at 1:40 AM  

फाकिर साहेब की एक और रचना मुलाहिजा फरमाइए :

किसी रंजिश को हवा दो के मैं जिंदा हूँ अभी
मुझको एहसास दिला दो के मैं जिंदा हूँ अभी
मेरे रुकने से मेरी साँसें भी रुक जायेगी
फासले और बढ़ा दो के मैं जिंदा हूँ अभी
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानें वालों
अब कोई और दवा दो के मैं जिंदा हूँ अभी
चलती राहों में यू हीं आँख लगी है फाकिर
भीड़ लोगों की हटा दो के मैं जिंदा हूँ अभी.

विश्व दीपक ’तन्हा’ February 24, 2008 at 7:37 AM  

सच में जगजीत सिंह जी से ऎसी कितनी हीं लाज़वाब गज़लें सुनी थी मैने, लेकिन शायर का नाम पता न था। और पता भी तब चला जब शायर ना रहा। बड़े हीं अफसोस की बात है।
दुआ करता हूँ कि जन्नत में सुदर्शन जी की आत्मा को शांति मिले।
आमीन!

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Post a Comment

परिचय

संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

Blog Archive

ब्‍लॉगवाणी

www.blogvani.com

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP