'रंग डारूंगी नंद के लाला'--।। आईये आज कुछ शास्त्रीय 'होरी' सुनें ।।
रेडियोवाणी पर इस वक्त होली की पिनक चढ़ी है । होली रेडियोवाणी का प्रिय त्यौहार है । हम तो ये मानते हैं कि होली ना होती तो दुनिया बहुत वीरान होती, ख़ासतौर पर संगीत की दुनिया । अब देखिए ना होली पर फिल्मों ने जो कुछ कहा-सुना है वो तो आप सब जानते ही हैं, फिर भी अगर दोहराना ही चाहते हैं तो नाचीज़ ने इसका ब्यौरा यहां पर लिखा है । रही बात संगीत के बाक़ी रूपों की....तो वहां भी होली का ब्यौरा बहुत बहुत मिलता है । ख़ासकर लोकसंगीत में...हमारे लोकगीतों मे होली अपने विविध रूपों में आती है । दिक्कत ये है कि इन लोकगीतों को एक जगह जमा नहीं किया गया है । होली के अवसर पर बुंदेली लोकगीत बहुत बहुत याद आए लेकिन समस्या ये है कि वे हमारे संग्रह में हैं नहीं और कहीं से उपलब्ध हो नहीं पा रहे हैं ।
बहरहाल.....भारतीय शास्त्रीय संगीत में 'होरी' की लंबी परंपरा रही है । बदकिस्मती से मुझे शास्त्रीय-संगीत का इतना ज्ञान नहीं है लेकिन इतना तो बता ही सकता हूं कि होरी 'दादरा' का ही एक रूप है । दादरा के अंतर्गत कजरी, चैती, झूला और होरी इत्यादि गायी जाती हैं । इसमें मूलत: प्रकृति का चित्रण, बदलते मौसम के साथ मन:स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाया जाता है । तो आईये आज कुछ 'होरी' सुनी जाएं ।
ई स्निप्स पर भटकते हुए मुझे कुछ दिलचस्प 'होरी' मिली हैं । ये है विदुषी गिरिजा देवी और विदुषी शोभा गुर्टू की गायी जुगलबंदी 'होरी' । बोल हैं---'भिजोयी मेरी चुनरी हो नंदलाला' । बिना किसी मशक्कत के इसी सीधे ई स्निप्स से ही सुनवा रहा हूं । उम्मीद करें कि ये रचना ई स्निप्स पर लंबे समय तक बरक़रार रहेगी । वरना आगे चलकर इस पोस्ट का रंग फीका पड़ जाएगा ।
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अब डॉक्टर अनीता सेन के स्वर में एक 'होरी' सुनी जाए । बोल हैं--'रंग डारूंगी नंद के लाला' । इस रचना में भी एक दिव्य रंग है । सुबह से कितनी बार सुन चुका हूं कह नहीं सकता ।
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इन दोनों रचनाओं को सुनने के बाद अब एक सूचना और दे दी जाए । मुझे शास्त्रीय संगीत से जुड़े एक बेहतरीन ब्लॉग का पता मिला है । indianraga.blogspot.com । इस ब्लॉग की मुख्य पोस्टें आप नीचे दिये गये विजेट में देख सकते हैं ।
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8 टिप्पणियां:
आह ! कहाँ पे जुगाड़ बिठाया है मालिक ? ये तो वाक़ई हद है. यूँ ही सुनवाते रहिये भैय्या, हम सब काम-धाम छोड़ धूनी रमाये बैठे हैं.
सुश्री अनीता सेन की गायी होरी के दिव्य रंग से सहमति है|यह track य़हाँ NJ की देसी airwaves में भी होली मे मौसम में सुना सुनाया जाता है है। आपका अभिव्यक्ति वाला जानकार लेख पढा़। सधन्यवाद/ खु़शबू
सुनकर आनंद आ गया।
बहुत सही,
मजा आ गया, आगे भी इन्तजार रहेगा ।
बहुत बढ़िया ।
मनभावन और आनंदित करता हुआ।
वाह, २३ मार्च को दिल्ली में गिरिजा जी का कार्यक्रम था और मैं गाँव था, मुझे मलाल रहा पर आपके ब्लॉग पर आकर मन हल्का हुआ...वर्षों पहले मुज़फ्फरनगर में गिरिजा देवी अपनी शिष्य सुनंदा के साथ आई थीं और उन्होंने सुनाया था....चलो गुइयाँ आज खेले होरी..
अभी तो नहीं सुन पाया। कल फुरसत से सुनूँगा।
आनंदित करता हुआ'होरी'गीत।
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