Monday, April 7, 2008

एक कली दो पत्तियां--भूपेन हज़ारिका का एक लोकप्रिय गीत ।

रेडियोवाणी पर हम भूपेन हज़ारिका के गानों की एक श्रृंखला चला रहे हैं । bhuभूपेन दा के गानों में असम की लोक-संस्‍कृति भी नज़र आती है । वो जब गाते हैं तो केवल गाने के लिए नहीं गाते बल्कि कभी कभी जनता को जगाने के लिए भी गाते हैं । यही वजह है कि पूरे उत्‍तर भारत में हिंदी के किसी गायक के ऐसे प्रशंसक नहीं होंगे जैसे भूपेन दा के कार्यक्रमों में उत्‍तर-पूर्व के राज्‍यों में जमा होते हैं ।

आज जो गीत मैं आपको सुनवा रहा हूं, इसे बहुत बहुत पहले दूरदर्शन के ज़माने में किसी कार्यक्रम में सुना था । फिर ग़ायब हो गया ये गीत । और अब पुन: मिला है । आपकी नज़र ये गीत ।

इस गाने की कमेन्‍ट्री में गुलज़ार कहते हैं---एक तो ये है कि भूपेन दा के गीतों में वहां की तस्‍वीर नज़र आती है, एक पूरा लैन्‍डस्‍कैप है और उसमें एक अकेला नुमाइंदा मज़दूर । क्‍या ऐसा नहीं लगता कि भूपेन हज़ारिका सिर्फ कविता नहीं गा रहे, आसाम का कल्‍चर गुनगुना रहे हों ।

एक कली दो पत्तियों नाज़ुक नाजु़क उंगलियां

तोड़ रही हैं कौन ये एक कली दो पत्तियां

रतनपुर बागीचे में ।

फूल की खिलखिलाती, सावन बरसाती,

हंस रही कौन ये मोगरे जगाती

एक कली दो पत्तियां ।।

जुगनू और लक्ष्‍मी की लगन ऐसे आई

डाली डाली झूमी लेके अंगड़ाई

एक कली दो पत्तियां ।।

जुगनू और लक्ष्‍मी की प्रीत रंग लाई

नन्‍हें से एक मुन्‍ने से चुप्‍पी जगमगाई ।।

एक कली दो पत्तियां ।।

एक कली दो पत्तियां, खिलने भी ना पाई थीं

तोड़ने उस बागीचे में दानव आया रे

दानव आया रे ।

दानव की परछाईं में कांप रही थीं पत्तियां

बुझने लगी मासूम कली दानव की परछाईं में

साये से देवदारों में तांबरन सी बांहों के

ढोल मादल बजने लगे, मादल ऐसे बाजे रे

लाखों मिलके नाचे रे ।

आया एक तूफान नया, दानव डर के भाग गया

मादल ऐसे गरजा रे, दानव डर के भागा रे ।

दानव डर के भागा

एक कली दो पत्तियां ।।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

6 टिप्‍पणियां:

Parul April 7, 2008 at 5:46 PM  

आपने तो सुबह सुबह एक साथ दो खूबसूरत आवाज़ें सुनवा दीं--बहुत शुक्रिया

कंचन सिंह चौहान April 7, 2008 at 7:12 PM  

गीतके साथ ही इन तीन पत्तियों पर आधारित अमृता प्रीतम की कहानी याद आ गई जो उन्होने किसी चित्र प्रदर्शनी के चित्रकार से मिलने के बाद लिखी थी

Sanjeet Tripathi April 7, 2008 at 7:50 PM  

इसे तो सुनते रहें सुनते रहें मन नही भरता।

vimal verma April 7, 2008 at 10:49 PM  

ऐसी ही बेहतरीन चीज़ें आप सुनवाते रहे,और हम सुनते रहें...बहुत बढ़िया

अजय यादव April 8, 2008 at 6:23 AM  

युनुस भाई! इस गीत की तारीफ़ और इसे सुनवाने के लिये आपका आभार प्रकट करने के लिये शब्द कम पड़ रहे हैं.

- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

Post a Comment

परिचय

संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

Blog Archive

ब्‍लॉगवाणी

www.blogvani.com

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP