Wednesday, April 9, 2008

आज है 'रेडियोवाणी' की पहली सालगिरह

आज रेडियोवाणी की पहली सालगिरह है । मुझे यकीन ही नहीं होता कि ब्‍लॉगिंग की दुनिया में मुझे एक साल पूरा हो गया । कैसे ये एक साल बीत गया पता ही नहीं चला ।

ये सच है कि ब्‍लॉगिंग की दुनिया में मैं अचानक ही चला आया था । दरअसल इंटरनेट पर हिंदी में लिखने की तकनीक तो बाद में पता चली । पहले किसी दिन मैं मरफ़ी के नियमों के बारे में कुछ खोजबीन कर रहा था । तभी रवि रतलामी के ब्‍लॉग का पता चला । इस तरह रवि रतलामी घोषित रूप से हमारे ब्‍लॉगिंग-गुरू हैं । अगर किसी को लगता है कि ब्‍लॉगिंग की दुनिया मं हमें लाने की ग़लती किसने की तो वो श्री रवि रतलामी से संपर्क करे ।

खै़र, उसके बाद एक-एक करके कैलिडोस्‍कोप की तरह ब्‍लॉगिंग की दुनिया हमारे सामने अपने विविध रूपों में खुलती चली गयी । रवि भाई के अलावा जिस ब्‍लॉग पर शुरूआती दौर में नज़र पड़ी थी वो मनीष कुमार का ब्‍लॉग था । गीतकार सईद क़ादरी के इंटरव्‍यू के लिए मैं रिसर्च कर रहा था और मनीष की किसी पोस्‍ट पर जा पहुंचा था । इस तरह मनीष के ब्‍लॉग की कुछ दिनों तक छानबीन चलती रही और टिप्‍पणीबाज़ी भी चलती रही । फिर जल्‍दी ही इंडिक आई एम ई डाउनलोड किया और इंटरनेट पर हिंदी में लिखने का एक ज़रिया हाथ लग गया ।

दरअसल अप्रैल में 'रेडियोवाणी' की शुरूआत ये सोचकर की गयी थी कि इस ब्‍लॉग पर फिल्‍मों, विज्ञापनों, संगीत और अन्‍य तमाम मुद्दों पर लिखा जायेगा । लेकिन धीरे-धीरे हुआ ये कि आप सभी के अनुरोध पर रेडियोवाणी को संगीत के लिए ही समर्पित कर देना पड़ा । अब बाक़ी बातें कहां पर की जाएं । जब ये सवाल उठा तो मैंने अपने पिछले जन्‍मदिन पर अपना नया ब्‍लॉग शुरू किया 'तरंग'- जिसकी टैग लाइन है--मेरे मन की तरंग । लेकिन रेडियोवाणी और तरंग के बीच एक अहम घटना और हुई है पिछले एक साल की चिट्ठाकारी में । एक दिन मैं भाई अफलातून और भाई सागर नाहर से Retro Radioअलग अलग चैट कर रहा था । तभी बातों बातों में 'रेडियोनामा' शुरू करने का आयडिया निकल कर आया । और जल्‍दी ही रेडियोनामा ने आकार लिया और ग्‍यारह सितंबर को भाई अफलातून ने रेडियोनामा की पहली पोस्‍ट लिखी रेडियो आशिक़ भगवान काका । पता नहीं क्‍यों मुझे ऐसा लगता है रेडियोनामा की शुरूआत ब्‍लॉगिंग की मेरी यात्रा का एक अहम क़दम रहा है । रेडियो की दुनिया पर सार्थक बातचीत और विमर्श करने का एक जरूरी मंच बना है रेडियोनामा । आज रेडियोनामा पर कितने सारे लोग लिख रहे हैं और रेडियो की दुनिया के कितने कितने पहलू सामने आ रहे हैं । रेडियोनामा को लेकर अभी कितनी ही योजनाएं हैं जिन्‍हें मूर्त रूप दिया जाना है । 

ब्‍लॉगिंग की एक साल की यात्रा ने कई मित्र बनाए हैं । कई लोगों से जुड़वाया है । हैदराबाद के भाई सागर नाहर हमारे अभिन्‍न मित्र हैं । रेडियोनामा के प्रबंधन का काम सागर भाई परदे के पीछे रहकर बड़ी तन्‍मयता और जिम्‍मेदारी से कर रहे हैं । रवि रतलामी हमारे ब्‍लॉग-गुरू हैं ।  तकनीकी दिक्‍कतें होने पर मैं इन दोनों को सबसे पहले परेशान करता हूं । Violin Close-Up बाक़ी तमाम ऐसे मित्र हैं जिन सबके नाम देने पर ये पोस्‍ट बेहद लंबी हो सकती है । मुझे उम्‍मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे । ब्‍लॉगिंग की दुनिया अभी भी मित्रों की तादाद में इज़ाफ़ा करवाती जा रही है । और ये बेहद खुशगवार अहसास है । सभी मित्रों का धन्‍यवाद जिन्‍होंने अपनी टिप्‍पणियों और मेलों के ज़रिए हौसला बढ़ाया, ग़लतियां सुधारीं और फ़रमाईशें भी कीं । ये ज़रूर है कि इस एक वर्ष में कुछ बार अपनी आवाज़ में पॉडकास्टिंग की । पर ज्‍यादा नहीं कर पाया । उम्‍मीद है कि इस साल रेडियोवाणी और रेडियोनामा पर अपनी आवाज़ वाले ज्‍यादा पॉडका‍स्‍ट कर पाऊंगा ।

रेडियोवाणी की पहली सालगिरह पर एक ऐसा गीत जो कई दिनों से मन में गूंज रहा है ।

सुरमई शाम इस तरह आए, सांस लेते हैं जिस तरह साए ।

कोई आहट नहीं बदन की कहीं, फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं ।

वक्‍त जाता सुनाई देता है, तेरा साया दिखाई देता है ।

जैसे खुश्‍बू नज़र से छू जाए, सांस लेते हैं जिस तरह साए ।

सुरमई शाम ।। ।

दिन का जो भी पहर गुज़रता है, एक अहसान सा उतरता है

वक्‍त के पांव देखता हूं मैं, रोज़ ये छांव देखता हूं मैं ।

आए जैसे कोई ख्‍़याल आए, सांस लेते हैं जिस तरह साए ।

सुरमई शाम ।।

Surmai Shaam

मैं हमेशा कहता हूं कि गाने जिंदगी में अतीत के किसी रिफरेन्‍स-पॉइंट की तरह होते हैं । इस गाने ने मुझे जिंदगी के बीते हुए कुछ वर्षों की याद दिला दी । लता जी द्वारा निर्मित फिल्‍म 'लेकिन' का संगीत जारी हुआ था और हमारे शहर में कैसेट पहुंचते ही हम फौरन ख़रीद लाए थे । उसके बाद दिन दिन भर बार बार इस फिल्‍म के गीत बजने लगे । पता नहीं क्‍यों तमाम गीतों के बीच इस गीत ने मेरे मन में ख़ास जगह बनाई ।

हृदयनाथ मंगेशकर का संगीत, गुलज़ार के बोल और मेरे प्रिय गायकों में से एक सुरेश वाडकर की आवाज़ । सब कुछ बेमिसाल है इस गाने में । इस गाने को ध्‍यान से सुनें तो आप महसूस करेंगे कि गाने का इंट्रो और इंटल्‍यूड सभी पश्चिमी वाद्यों पर बजे हैं ।

....वक्‍त जाता सुनाई देता है, तेरा साया दिखाई देता है । जैसे खुश्‍बू नज़र से छू जाए । सांस लेते हैं जिस तरह साए

लेकिन जैसे ही सुरेश वाडकर गाते हैं, आपके केवल तबला सुनाई देता है । भारतीय शास्‍त्रीय संगीत और पश्चिमी संगीत का बेहतरीन संयोजन है इस गाने में । सुरेश वाडकर की ख़ासियत ये है कि वो ज्‍यादा कलाबाज़ी नहीं करते । उनकी सहज शास्‍त्रीयता ही उन्‍हें महान गायक बनाती है । इस गाने में उनकी सूक्ष्‍म-हरकतें और नाज़ुक भाव ग़ौर करने लायक़ हैं । ये गाना आपको अपने साथ बहाकर ले जाता है । आपको अपनी परेशानियों से काटकर एक सुखद छांव देता है ।

जब घर से निकलकर विविध-भारती में काम करने मुंबई आया था तो मरीन-ड्राइव पर अरब सागर की लहरों को देखता अकेला, या कभी कभी अपने अज़ीज़ दोस्‍त और 'रूमी' सुनील के साथ बैठा शामें बिताया करता था । शुरूआत में मुंबई हताश भी करती है, झटके भी देती है और इम्तिहान भी लेती है । ऐसे कठिन दौर में समंदर के किनारे ये गाना बार-बार याद आता था, उसी समंदर के किनारे बैठकर हमने प्रेम की, घर की विकल याद की, ज़माने की जुल्‍मतों की कुछ कविताएं लिखी थीं और उसी समंदर के किनारे बैठकर बहुत सारे सपने देखे थे, जिनमें से कुछ पूरे हुए और बहुत की ताबीर बाक़ी है ।

रेडियोवाणी की पहली सालगिरह पर ये गाना सुनवाकर मैं अपने अतीत के उन दिनों को सलाम कर रहा हूं । एक महत्‍त्‍वपूर्ण दिन और उस पर एक अहम गीत का साथ । कल रेडियोवाणी पर मैं आपको बताऊंगा साल भर की कुछ महत्‍त्‍वपूर्ण पोस्‍टों के बारे में । तब तक आप सोचिए कि ये सब गाने नहीं होते तो दुनिया कितनी सूनी होती, जिंदगी कितनी बेमानी होती । ये गाने हैं तो ' वक्‍त के पांव देखता हूं मैं---रोज़ ये छांव देखता हूं मैं ।'  

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

40 टिप्‍पणियां:

मीत April 9, 2008 at 4:02 PM  

बधाई यूनुस भाई. ऐसे और कई साल आएँ - जाएँ, यही दुआ है. बहुत अच्छी पोस्ट, और बहुत अच्छा गीत. शुक्रिया.

इरफ़ान April 9, 2008 at 4:21 PM  

सालगिरह मुबारक. उम्मीद है इस नये साल में आपकी रेडियोवाणी कुछ और नये गुल खिलाएगी.

आनंद April 9, 2008 at 4:25 PM  

बहुत बहुत बधाई हो...

sanjay patel April 9, 2008 at 4:58 PM  

युनूस भाई रेडियोवाणी तो निश्चित ही सालगिरह मना रही है आज लेकिन शायद इस पर आने वाले हमारे तमाम दोस्त आज स्वयं को एक साल और युवा महसूस कर रहे हैं.कहीं सुना था कि सालों बीत जाने के बाद आप वैसे के वैसे ही रहेंगे फ़र्क़ सिर्फ़ इस बात से पड़ेगा कि इन बीते बरसों में आप किन लोगों के साथ मिल बैठे यानी मित्र और क्या क्या पढ़ा - सुना. इस लिहाज़ से रेडियोवाणी और आपका क़र्ज़ हम पर कि आपने हमें कुछ बेहतरनीन चीज़ें पढ़वा कर (खु़दा के लिये इस चीज़ शब्द पर मत जाइयेगा)हमें और नेक और खुश तबियत बनाया. मेरी ये टिप्पणी तमाम ब्लॉगर-बिरादरों की तरफ़ से क़ुबूलें युनूस भाई.कहते हैं जन्म दिन क्या मनाना...ये सोचो कि एक साल और चला गया ; लेकिन रेडियोवाणी इस बात को ग़लत साबित करता है.हर पोस्ट एक दिन पुरानी ज़रूर होती है...बीतती है लेकिन हमारे प्रेज़ेंट और फ़्यूचर को ख़ुशनुमा भी तो बना देती है.सलाम रेडियोवाणी ...हमारे दिलों को आबाद करती रहो यूँ ही.

ALOK PURANIK April 9, 2008 at 5:05 PM  

जमाये रहिये जी।

अफ़लातून April 9, 2008 at 5:45 PM  

साल मुबारक युनुस भाई ।

नितिन बागला April 9, 2008 at 5:54 PM  

ब्लाग की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो यूनुस भाई।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल April 9, 2008 at 6:01 PM  

यूनुस भाई,
रेडियोवाणी की सालगिरह पर खूब-खूब बधाई. बल्कि, बधाई से भी ज़्यादा आभार.
मैंने शायद पहले भी लिखा था, आपको पढता हूं तो गालिब बेसाख्ता याद आ जाते हैं :
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना
बन गया रक़ीब आखिर, था जो राज़दां अपना.

तो आपकी क़लम को यह ताकत हासिल है. इस ताकत में और इज़ाफा हो, यह क़लम और चले, यही कामना है.

Sunil Deepak April 9, 2008 at 6:42 PM  

आप को मेरी भी बधाई, सुनील

annapurna April 9, 2008 at 6:52 PM  

शुक्रिया यूनुस जी आपने मुझे मेरी ब्लागिंग यात्रा की सालगिरह याद दिला दी।

तभी पहली बार मैनें नारद देखा था और देखा था आपका पहला चिट्ठा रेडियोवाणी पर। ब्लाग जगत में क़दम ही रखा था इसीलिए टिप्पणी करना भी कठिन लगता था। यहीं से प्रेरणा मिली और मेरी चिट्ठाकारी शुरू हुई।

आपको सालगिरह मुबारक ! आशा है मेरे जैसे और भी लोग प्रेरणा लेते रहेंगें।

Sanjeet Tripathi April 9, 2008 at 7:28 PM  

मुबारकां मुबारकां!!
अमां खां साहेब, आप अईसे ही इधर सालगिरह पे सालगिरह मनाते रहें और आवाज़ की महफिलें सजाते रहें!!
आमीन!!

अभिषेक ओझा April 9, 2008 at 8:36 PM  

बहुत बहुत बधाई !

Parul April 9, 2008 at 8:56 PM  

इतने सुरीले मुक़ाम की बधायी व ढ़ेरो शुभकामनाए

vimal verma April 9, 2008 at 9:24 PM  

मियाँ हमारी भी पुरखुलूस मुबारकां!ऐसे ही गुल पे गुल खिलाते रहे सुनते रहें सुनाते रहें...

Raviratlami April 9, 2008 at 11:17 PM  

मेरा भी यही कहना है जो ऊपर दुर्गाप्रसाद जी ने कहा है -

तो आपकी क़लम को यह ताकत हासिल है. इस ताकत में और इज़ाफा हो, यह क़लम और चले, यही कामना है.

अजित वडनेरकर April 9, 2008 at 11:49 PM  

सुरीले सफर की सालगिरह पर
हमारी भी शुभकामनाएं । सफर
चलता रहे , पड़ाव दर पड़ाव,
पल पल , मुसलसल...
हम बने हुए हैं साथ...

सागर नाहर April 10, 2008 at 12:09 AM  

कुछ कहने के लिये मेरे पास तो कुछ बचा ही नहीं, संजय पटेल भाई साहब की टिप्पणी को कॉपी+पेस्ट करलें बस...
खूब लिखते रहें यही प्रार्थना है.. चिट्ठे के जन्मदिन पर ढ़ेरों बधाईयाँ।

anitakumar April 10, 2008 at 12:38 AM  

जन्मदिन मुबारक हो, रेडियोवाणी खूब बोलने लगा है, खुदा करे कि आप ने इसके लिए जो भी सपने देखे हैं वो जल्द ही पूरे हों और आप के दोस्तों में इजाफ़ा होता रहे, क्या ऐसा कह सकते हैं कि आप के दोस्त हमारे दोस्त, तो फ़िर हमारे भी दोस्तों में इजाफ़ा होता रहेगा…:)

अल्पना वर्मा April 10, 2008 at 12:48 AM  

रेडियोवाणी की सालगिरह पर बधाई----

Priyankar April 10, 2008 at 12:54 AM  

हार्दिक शुभकामनाएं ! एक लंबी और अर्थवान यात्रा पर निकलने के लिए . यह पहला पड़ाव है .

RA April 10, 2008 at 1:24 AM  

ऐसे ही सुन्दरतम गीत सुनवाते रहें, ,सौजन्य और स्वागत का माहौल आपके ब्लाग में बना रहे .. नित नये गीत मित्र बनते रहेंगे...शुभेच्छा स्वीकारें।

विनीत कुमार April 10, 2008 at 1:43 AM  

yunus bhai, aapke blog ko mai blog ki tarah nahi, rdio ke website ke taur par dekhta hoo, aapka dedication blog se kahi jyada hai. mere kuch saathi radio par research kar rahe hai aur aapke blog ka laabh le rahe hai, mai khud me ise radio ka reference point maanta hoo, radiovaani khoob aage jaayae, subhkaamnayae

Geet Chaturvedi April 10, 2008 at 1:52 AM  

बहुत सारी बधाइयां. लिखते रहिए, सुनाते; पढ़ाते रहिए.

डा प्रवीण चोपड़ा April 10, 2008 at 2:04 AM  

यूनुस भाई, साल गिरह बहुत बहुत मुबारक। यह पोस्ट के रूप में हमें जो गिफ्ट दिया है ...मज़ा आ गया। ऊपर वाले से यह दिली गुजारिश है कि वो आप की बाकी की भी सारी तमन्नायें शीघ्र अति शीघ्र पूरी करे......काश, अगर आज के दिन मुंबई होता तो आप के दफ्तर पहुंच कर मोंजिनीज़ के केक की फरमाइश कर देता। चलिये, अभी तो आप का इतना समय नहीं ले रहा हूं ....आखिर आज आप बर्थ-डे ब्वाय हैं। बहुत दिनों से आप से बात भी नहीं हो सकी थी। बहुत सारी शुभकामनायें, यूनुस भाई।

डॉ. अजीत कुमार April 10, 2008 at 2:56 AM  

जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, मैं कादम्बिनी के जरिये इस ब्लॉग जगत में अपने पैर रखने की कोशिश कर रहा था. उन्हीं दिनों ब्लॉगवाणी पर आना हुआ था और आपकी रेडियोवाणी से पहला परिचय हुआ था. आपकी आवाज़ का क्रेज मुझ पर तारी था या आपको नजदीक से जानने की उत्कंठा, मैं उस समय तक के आए आपके सारे पोस्ट पढ़ गया था. चाहे वो आपके द्वारा खींची गयी तस्वीरों वाली पोस्ट हो या फ़िर कब्बन मिर्जा का गाया मेरा पसंदीदा गीत- आयी जंजीर की झंकार खुदा खैर करे या मेरे प्रिय संगीतकार खैयाम साहब; ईर बीर फत्ते हो या जब कभी बोलना... हो, कहाँ तक गिनाऊँ. अब आज इस सुरमई शाम इस तरह आए.. की बात ही ले लें.. रेडियोवाणी बिल्कुल अपनी सी लगने लगी.
आज उसी रेडियोवाणी ने जब एक साल पूरे कर लिए हैं, मेरा और रेडियोवाणी का रिश्ता आठवें महीने से गुजर रहा है, तो दिल में एक संतोष है कि जिस तरह का संगीत हमने पसंद किया वो हमें रेडियोवाणी के जरिये मिला. मक़ाम कुछ ऐसे भी आए जब लगा रेडियोवाणी हमसे रूठ गयी है, पर तभी देखा कि अरे पसंदीदा गीतों की थाल लिए वो मेरी और ही चली आ रही है. सारे शिकवे दूर हो गए.
यूनुस भाई, इन आठ महीनों में ही मैंने रेडियो वाणी के साथ साल पूरे कर लिए, सुनते, झूमते, गुनगुनाते... और हमारा ये सफर इसी तरह जारी रहेगा.
इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ रेडियोवाणी को मैं उसके सालगिरह की बधाई प्रेषित करता हूँ.
धन्यवाद.

Manish Kumar April 10, 2008 at 3:34 AM  

रेडियोवाणी की पहली सालगिरह की हार्दिक बधाई यूनुस भाई। आपकी सईद कादरी संबंधित ई मेल आज भी मेरी आलमारी की शोभा बढ़ा रही है। मुझे इस बात की हमेशा खुशी होती है कि ब्लागिंग के जरिए आप जैसे मित्र से मुलाकात हुई।
सुरमयी शाम .. मेरा बेहद प्रिय गीत है और इसे गुनगुनाना मुझे बेहद पसंद है। आज इस अवसर पर इस गीत को सुनवाने का शुक्रिया।
रेडियोवाणी इसी तरह सालों साल सफलता के मुकाम हासिल करती रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey April 10, 2008 at 3:34 AM  

बहुत बहुत बधाई यूनुस।
क्या शानदार ब्लॉग है।

PD April 10, 2008 at 4:19 AM  

आपको शायद याद होगा.. पिछले साल सितम्बर में आपने एक गीत पोस्ट किया था "आप यूं फासलों से गुजरते रहे".. याद है?? मैं उससे पहले भी आपके ब्लौग पर यदा-कदा आता रहता था, मगर ब्लौगिंग का चस्का सर नहीं चढा था.. आपके उस पोस्ट के बाद से मैं आपके ब्लौग पर लगातार आने लगा.. जो अभी तक आ रहा हूं.. हां ये मानता हूं कि ज्यादा कमेंट नहीं लिखी है मैंने.. :)

पिछले साल नवंबर में मैं अपने ब्लौग का जन्मदिन बिलकुल अपने जन्मदिन कि तरह फिके तौर पर मनाया था(वो तो कुछ दोस्त लोग मेरे इ-पते से मेरे जन्मदिन का अनुमान लगा बैठते हैं.. अब आपको भी अनुमान लग जायेगा.. :D).. अब सोचता हूं कि इस बार अपने ब्लौग को ये शिकायत नहीं दूंगा..

विभास April 10, 2008 at 4:31 AM  

yunus bhai... kaise hain
shayad aapne mujhe pahchana nahi hoga lekin mai aapke blog tak sanjay bhai k blog k zariye pahucha...

maine aapka interview liya tha naidunia k liye jab aap indore tashrif laaye the ...

radio waani per aapka blog padha ... aapne pure dil se likha hai ... badhai

svibhaas@gmail.com

Rajendra,  April 10, 2008 at 6:44 AM  

हमारी भी बधाई स्वीकारें. बस ऐसे ही बतियाते रहिये और संगीत से सरोबार करते रहिये.
इतने अच्छे ब्लॉग के लिए एक बार फिर बधाई.

bhakit April 10, 2008 at 10:22 AM  

Yunusji,

Dheer sari badhaiyya aur blog ke aage ke varsh aur sangeetmay ho.

Dhanyavaad,
Bhakit

Harshad Jangla April 10, 2008 at 3:28 PM  

Yunusbhai

Many Many Happy Returns on the completion of one year of this wonderful blog. I have not missed a day since I have statrted visiting.Thanx & Rgds.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA
April 9, 2008

PIYUSH MEHTA-SURAT April 11, 2008 at 5:50 AM  

युनूसजी, देरीसे हीए सही पर वधाई ।

जोशिम April 12, 2008 at 1:44 AM  

देरी की गलती है - यूँ है कि सुनने का काम जुम्मे होता है - लेकिन कोई भी माफी पूरी नहीं आपकी सुरमई शाम में शरीक होने में देर करने की - सजा आप दें - और देर से ही सही बधाई कुबूल करें - वैसे जिस मौसम में आप का रूमी और आप "सुरमई शाम" सुनते थे - मेरा रूमी अक्सर "जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए ..." लगाता था - उस गाने में भी उम्मीद है - मनीष

Mala Telang April 12, 2008 at 8:20 PM  

देरी से ही सही ,लेकिन हमारी भी ढ़ेरों शुब कामनाएं लीजिये..... और ऐसे ढ़ेरों सुरीले गीत अनवरत् सुनवाते रहिये .।

Mala Telang April 12, 2008 at 8:25 PM  

ये गाना मेरे पसंदिदा गानों मेंसे एक है ,और इसे एक बार सुनकर मन नही भरता .... बार बार मन ललकता है सुनने के लिये ... वाह ... आभार !!!

बोधिसत्व April 12, 2008 at 9:11 PM  

देरी से ही सही इतने अच्छे ब्लॉग के लिए बधाई.

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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