Saturday, May 10, 2008

तलत मेहमूद के कुछ अनमोल वीडियो: मुहब्‍बत की धुन बेक़रारों से पूछो ।

तलत महमूद हमारे प्रिय कलाकार रहे हैं । कल उनकी दसवीं पुण्‍यतिथि थी । किन्‍हीं व्‍यस्‍तताओं के रहते कल रेडियोवाणी पर तलत की चर्चा नहीं हो सकी । इसलिए एक तरह की बेचैनी थी ।

तलत को सुनना तब शुरू किया था जब हम मध्‍यप्रदेश के शहर सागर में नौंवी या दसवीं की पढाई कर रहे थे । आपको बता दें कि ये बहुधा ब्‍लैक एंड व्‍हाइट टी.वी. का दौर था । और दूरदर्शन पुराने ज़माने की फिल्‍में खूब दिखाता था । उन दिनों तलत साहब के अभिनय वाली कई फिल्‍में देखने को मिलीं । लेकिन जिस फिल्‍म की याद अभी तक है वो है दिल-ए-नादां । ये फिल्‍म सन 1953 में आई थी । इस फिल्‍म के निर्माता और निर्देशक थे अब्‍दुल रशीद कारदार । तलत इस फिल्‍म के नायक थे । साथ में थीं श्‍यामा । शकील बदायूंनी ने इस फिल्‍म के गीत लिखे थे और संगीतकार थे गुलाम मोहम्‍मद । ये सारी बातें तो ख़ैर इंटरनेटी खोजबीन और encylopedia से ही प्राप्‍त की हैं । उस समय ये सब पता नहीं था लेकिन इस फिल्‍म का एक गीत आंखों में और ज़ेहन में रच बस गया था ।

मुझे याद है कि इस गाने में खुद तलत महमूद पियानो पर बैठे हैं और गाना गा रहे हैं । कमाल का गाना था ये । कुछ दिन तक तो इस गाने को खोजा पर जब नहीं मिला तो इसकी खोज बंद कर दी । कुछ महीनों पहले यू-ट्यूब पर घुमक्‍कड़ी के दौरान इस गाने का वीडियो मिल गया । उस वक्‍त इसे डाउनलोड करने की सुध नहीं रही । आज जब इसे दोबारा खोजा तो फिर मिल गया । आप सबकी नज़र ये गीत । एक पुरानी और विकल खोज के नाम, इसे डाउनलोड तो अभी तक नहीं किया है पर अगर आपको ये गीत प्रिय है तो अपने ख़ज़ाने में फ़ौरन रख लीजिए । क्‍या पता....कब इसकी यू-ट्यूबी खिड़की बंद हो जाए ।

आज तो इस गाने को यूट्यूब से ही चढ़ाया जा रहा है । पर पहली फुरसत में इसे अपने ख़ज़ाने में रखकर अपलोड किया जायेगा ताकि रेडियोवाणी पर ये स्‍थायी रूप से मौजूद रहे । तो सुनिए और मज़ा लीजिए इस गाने का ।

यहां आपको ये भी बता दें कि तलत तो अपना गाना खुद ही गा रहे हैं । यहां वीडियो में दो नायिकाएं खड़ी दिख रही हैं । इनमें से एक हैं पीस कंवल और दूसरी हैं  श्‍यामा । पीस कंवल को आवाज़ दी है जगजीत कौर ने । और श्‍यामा को आवाज़ दी है सुधा मल्‍होत्रा ने । कोशिश करके जगजीत कौर और सुधा मल्‍होत्रा की आवाज़ की अलग अलग पहचानियेगा ।

मुहब्‍बत की धुन बेक़रारों से पूछो

ये नग़मा है क्‍या चांद तारों से पूछो ।।

तुम्‍हारी ज़बां पे मेरी दास्‍तां है

तुम्‍हें ये ख़बर क्‍या मुहब्‍बत कहां है

भला क्‍यों ये दुनिया हसीं है जवां है

तुम अपनी नज़र के इशारों से पूछो ।।

मुहब्‍बत की धुन ।।

कोई बन खुश्‍ाबू बसा मेरे मन में

लुटा है मेरा दिल इसी अंजुमन

कली कौन सी खिल रही है चमन में

ये तुम अपने दिल की बहारों से पूछो ।।

इस गाने के बाद तलत के कुछ और वीडियो भी आपकी नज़र । जिन्‍हें मैं अपने संग्रह के लिए डाउनलोड कर रहा हूं । ये तलत के लाइव शो के वीडियो हैं ।

ये गाना है-'ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई ना हो' । 1950 में आई फिल्‍म 'आरज़ू' का गीत । जांनिसार अख्‍तर के बोल हैं और संगीत अनिल विश्‍वास का । ज़रा देखिए कि तलत कितनी सहजता से गा रहे हैं । आज के स्‍टेज शो के लटकों-झटकों की तुलना में ये कितना बड़ा 'रिलीफ़' लगता है ।

तलत महमूद की आवाज़ में फिल्‍म सुजाता का गीत । सन 1959 में आई इस फिल्‍म के गीतकार थे मजरूह सुल्‍तानपुरी और संगीतकार थे सचिन देव बर्मन ।

ये गाना है--हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्‍हें हम दर्द के सुर में गाते हैं । ये फिल्‍म पतिता का गीत है । शैलेंद्र । शंकर जयकिशन  ।

इस वीडियो की क्‍वालिटी थोड़ी ख़राब है ।

तलत साहब को गये दस वर्ष हो गये । लेकिन इन गीतों ने हमें उनकी मौजूदगी का लगातार अहसास कराया है । तलत साहब की स्‍मृति को नमन...

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12 टिप्‍पणियां:

Harshad Jangla May 10, 2008 at 5:09 PM  

Yunusbhai
Adbhut khazana.
Patita is by Shankar-Jaikishan and not S D Burman.
Please make a correction.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA
May 9 2008

मीत May 10, 2008 at 5:37 PM  

छा गए हैं मालिक. एकदम छा गए हैं ..... तलत महमूद .... वाह. मेरे मन में भी तलत की एक श्रृंखला शुरू करने की थी ... आप ने मेरा काम आसान कर दिया ..... मैं भी कुछ बहुत कमाल के गाने ले कर आता हूँ, बस ज़रा इंतज़ार ....

Parul May 10, 2008 at 6:07 PM  

बहुत बढ़िया पोस्ट-- मगर यू ट्यूब आधा मज़ा किरकिरा कर देता है। बफ़रिंग बहुत वक़्त लेती है ।

sanjay patel May 10, 2008 at 10:05 PM  

युनूस भाई ये तारीख़ें तो आवन-जानव हैं तलत साहब का सुरूर कभी नहीं जाता दिलोदिमाग़ से. तलत महमूद को आप सुनें तो लगता है कि आप किसी फ़ूलकुमार को सुन रहे हैं.तलत साहब की गायकी में कुछ ऐसा शरीफ़ , सलोना और ईमानदार हमारे तसव्वुर में आता है जो साफ़ सुथरा है , नाज़ुक है , भला है,भरोसेमंद है और प्यार करने से ज़्यादा प्यार करने के क़ाबिल है. मुझे लगता है जब हमारे बाप और चचाओं ने वो तस्वीरें देखीं होंगे जिनमे तलत साहब का प्ले-बैक हुआ करता था तब ये मध्यमवर्गीय लोग अपनी ज़िन्दगी की तल्ख़ियाँ भूल जाते होंगे..गोया अपनी तकलीफ़ों की धूल को उड़ा दिया करते होंगे.पेश की गई रचना की सादगी देखिये और सुनिये कंपोज़िशन का कमाल.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` May 11, 2008 at 2:12 AM  

तलत साह'ब के गीत
आज भी सुनकर खुशी होती है -
बचपन मेँ उनके घर पर
उनकी पत्नी से मिलने ,
मेरी अम्मा और अनिल बिस्वास जी की पहली पत्नी
आशालता जी के साथ,
मैँ गयी थी ,
वो याद आ गया -
उनके बेटे ने ,
तलत महमूद जी की
बेब साइट भी बनायी है -
शायद आपने देखी हो !
उनकी यादोँ को
हमारा भी प्यारभरा सलाम -
-- लावण्या

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey May 11, 2008 at 1:54 PM  

सच में यूनुस - वीडियो की बजाय डाउनलोडेबल ऑडियो ज्यादा अच्छा विकल्प है। रेडियोवाणी में ध्वनि की अपेक्षा रहती है।

Anonymous,  May 12, 2008 at 12:06 AM  

श्रे युनूसजी,
आपने कमाल का काम किया, वैसे आपके सभी काम कमाल के ही होते है । पर पहेले दो गीत तो मैंने डाउनलोड करके ही पकड लिये, जिसके कारण तीसरा सुजाता और पतिता का गीत यू ट्यूबने हटा लिया है, इस तरह कि नोबत उन गीतों के लिये नहीं आये ।
पियुष महेता ।
सुरत ।

सागर नाहर May 12, 2008 at 3:05 AM  

दूरदर्शन के उस जमाने में मैने भी खूब फिल्में देखी जिसमें से तलत साहब की दिल-ए- नादां और तराना, नूतन की सीमा, सोहराब मोदी की पृथ्वी वल्लभ जैसी कई फिल्में है।
तलत साहब की इन दोनों फिल्मों को तो अनगिनत बार देखा, तराना का गाना सीने में सुलगते हैं अरमां मेरे सबसे पसन्दीदा गीतों में से एक है।
तलत साहब का वीडियो दिखलाने के लिये अनेको धन्यवाद।
@ लावण्या जी खालिद महमूद साहब के लिये कह रही है ना? वे मेरे मेल मित्र हैं। उनके हर स्टेज शो के पहले और बाद में उनकी मेल जरूर आती है।

RA May 12, 2008 at 12:40 PM  

यूनुस,
आपने ठीक ही लिखा कि दिल-ए-नादां का गीत सुनने और देखनें दोनो में अच्छा है। और हां, सुधा मलहोत्रा एवं जगजीत कौर की distinct voices भी notice की गयीं।
तलत साहब के परिवार से एक connection आपको email में लिखती हूँ।

sanjay patel May 13, 2008 at 4:46 AM  

युनूस भाई...टिप्पणी तो पहले लिख ही चुका था आपकी पोस्ट पढ़ कर ...आज तसल्ली से वीडियो देख रहा था...एक ख़ास बात दिखी...ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल में तलत साहब के पास खड़े शख़्स महान संगीतकार अनिल विश्वास हैं...एक अंतरे के पहले तलत साहब को शायद माइक्रोफ़ोन के क़रीब जाकर गाने का निर्देश देते....ऐसा है न ?

annapurna May 13, 2008 at 6:54 PM  

तलत मेहमूद की ग़ज़ले हमें बहुत अच्छी लगती है। इस ख़ास गुलोकार को हमारा नमन !

yunus May 14, 2008 at 3:48 PM  

जी संजय भाई ऐसा ही है । :)

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