Friday, January 2, 2009

चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब: ख़ुद नीरज के स्‍वर में ।।

नीरज...वो कवि जिनसे हमारे बचपन और कैशोर्य की यादें गुलज़ार हैं । दूरदर्शनी कवि-सम्‍मेलनों में हमने उन्‍हें खूब सुना । मंच पर बस एकाध बार ही सुन सके । दिसंबर के महीने में र‍ेडियोवाणी पर नीरज की बात की गई थी और फिल्म 'नई उमर की नई फसल' का गीत 'कारवां गुज़र गया' सुनवाया गया था । इसके बाद अनूप भार्गव जी ने मुझे नीरज की आवाज़ में उनके दो गीत भेजे । और हमने आपको नीरज के स्‍वर में 'कारवां' सुनवाया । ये अनूप जी संग्रह की अनमोल रिकॉर्डिंग है ।

आईये आज फिर नीरज को सुना जाए । ये उनका एक प्रसिद्ध गीत है । बाद 1993Neeraj2में  देव-आनंद ने अपनी फिल्‍म 'प्रेमपुजारी' में इसे थोड़ा-सा बदलवाकर शामिल किया था । तब इसका रूप बना--'शोखियों में घोला जाये थोड़ा सा शबाब' । लेकिन मूल रूप में ये पंक्ति थी--चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब । फिल्‍मी-गीत अपनी जगह महत्‍त्‍वपूर्ण है लेकिन जो बात इस गीत में है वो फिल्‍मी-रचना में कहां । इसमें वाक़ई एक मार्मिकता है । एक बेकली है । एक तन्‍मयता है । सुनिए और नए साल के इस पहले हफ्ते को महकाईये ।

*ऑडियो--अनूप जी के संग्रह से ।

चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी-सी शराब
होगा जो नशा यूं तैयार वो प्‍यार है प्‍यार ।।
आधी रात जुहू पर उतर, कर रहा हो चांद जब मुकाम
और वहीं टहल रहे हों फूल, ति‍तलियों की गोरी बाहें थाम
ऐसे वक्‍त आता है जो ज्‍वार वो प्‍यार है प्‍यार ।।
लेके हाथ दर्द की क़लम, आंसुओं में स्‍वप्‍न घोल-घोल
लिख रही हो पाती पी के नाम, जब कोई कली लटों को खोल
तब जो छेड़ता है दिल के तार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।
आईने को सामने बिठा, अबरूओं की तेज़ करके धार
अपने से ही करके आंखें चार, अपने हुस्‍न पे खुद हो निसार
मुस्‍कुराता है जो बार बार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।
लड़खड़ाते हों उमर के पांव, जब ना कोई दे सफर में साथ
बुझ गए हों राह के चिराग़, और सब तरफ़ हो काली रात
तब जो चुनता है डगर के ख़ार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।
चुप हो जब ज़मीनो-आसमान, गुनगुनाती हो ना जब कोई बीन
सर किसी मज़ार पर टिका, रो रही हो जिंदगी हसीन
तब जो बनके आता है क़रार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।

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16 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi January 2, 2009 at 4:00 PM  

आप ने तो नए साल के तोहफे में मेरी फरमाइश पूरी कर दी।

नारदमुनि January 2, 2009 at 4:02 PM  

sir jee yah chandani nahi shokhiyon me ghola jaye fulo ka sabab.... narayan narayan

Arvind Mishra January 2, 2009 at 4:12 PM  

आईने को सामने बिठा, अबरूओं की तेज़ करके धार
अपने से ही करके आंखें चार, अपने हुस्‍न पे खुद हो निसार
मुस्‍कुराता है जो बार बार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।


लड़खड़ाते हों उमर के पांव, जब ना कोई दे सफर में साथ
बुझ गए हों राह के चिराग़, और सब तरफ़ हो काली रात
तब जो चुनता है डगर के ख़ार, वो प्‍यार है प्‍यार ।।
वाह युनुस भाई अपने यह आज का ही दिन नहीं ये मेरा पूरा साल ही धन्य कर दिया इसे सूना कर -आख़िरी लाईनें पढ़ सुनकर तो आँखें नम हो आयीं ! बहुत बहुत शुक्रिया !

Tarun January 2, 2009 at 4:21 PM  

कारवाँ गुजर गया मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है, शोखियों में घोला जाये वाले प्रेम पुजारी के अन्य गीत भी काफी मधुर हैं। लेकिन ओरिजिनल को सुनकर कुछ अलग ही मजा आया जो बिल्कुल ही अलग है। युनूस भाई शुक्रिया।

क्या इत्तेफाक है कि हम भी आज एक दूसरे कवि की रचना सुना रहे हैं - कवि प्रदीप की

yunus January 2, 2009 at 4:25 PM  

नारद जी
ये उसी गीत का मूल रूप है । चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब ।
जिसे देव आनंद ने अपनी फिल्‍म के लिए बदलवाकर 'शोखियों में घोला जाए' करवा दिया था ।
आप इस मूल गीत को सुनें जिसकी इबारत फिल्‍मी गाने से एकदमै अलग है ।

Neeraj Rohilla January 2, 2009 at 6:16 PM  

युनुसभाई,
आपकी जय हो और साथ में अनूप जी की भी जय हो ।
नये साल का इससे बेहतर तोहफ़ा क्या हो सकता है । आगे भी इन्तजार रहेगा । वैसे १-२ दिन में हम एक स्पेशल कव्वाली सुनवाने का सोच रहे हैं फ़िल्म "तुम्हारा कल्लू" से ।

कंचन सिंह चौहान January 2, 2009 at 8:47 PM  

waah to ye hai us geet ka adhaar jo hamare ptiya geeto me ek hai... vaise Yunus ji kya ye batayenge ki is geet me jo sansodhan hua vo bhi Neeraj ji dwara kiya gaya ya kisi aur dwara...?? kyo ki uske bhi bol bahut sundar hai.n

vimal verma January 2, 2009 at 9:09 PM  

मज़ा आ गया सुनकर...नीरज़ जी का अपना अलग अंदाज़ है गाने का कही से ए भाई ज़रा देख के चलो (मेरा नाम जोकर)मिले तो ज़रूर सुनवाईयेगा....नया साल मंगलमय हो...जै हो

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल January 2, 2009 at 10:51 PM  

यूनुस भाई, आपकी तारीफ करने योग्य शब्द नहीं हैं मेरे पास. हैं. आप तो जादूगर हैं. अपनी किशोरावस्था में नीरज जी से न जाने कितनी बार यह गीत सुना था. आपने फिर से उन दिनों की यादें ताज़ा कर. पिछले दिनों यहां जयपुर में नीरज जी से कोई डेढेक घण्टे बतियाने का सौभाग्य मिला था. उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग मेरे पास है. लिप्यंतरण करना है.है. अगर किसी तरह नीरज जी की आवाज़ में छुपा रुस्तम वाली कव्वाली भी सुनवा सकें तो मज़ा आ जाए.

नितिन व्यास January 2, 2009 at 10:51 PM  

वाह वाह ओरिजिनल का मजा ही कुछ और है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` January 3, 2009 at 9:30 AM  

नव वर्ष शुभ हो !
आपको ममता जी व अनूप भाई को शुभ कमनाएँ - नीरज जी के स्वर मेँ गीत सुनना बडा अच्छा लगा
- लावण्या

अनूप भार्गव January 3, 2009 at 6:18 PM  

युनुस भाई:
इस गीत को अपने ब्लौग पर जगह देने और इतने लोगों तक पहुँचाने का शुक्रिया ।
मेरे पास नीरज जी का मंच से सुनाया गया लगभग हर गीत है । नहीं ये तो कुछ ज़्यादा हो गया ... :-) हर गीत तो नहीं हां काफ़ी सारे गीत है । कुछ DVD और VCD भी हैं । विमल जी की फ़रमाइश ’ए भाई ज़रा देख कर चलो..’ मेरे पास है । आप को भेजता हूँ ।

विष्‍णु बैरागी January 6, 2009 at 3:38 AM  

युनूस भाई, इसे 'देर आयद-दुरुस्‍त आयद कहूं' या कुछ और कि इतनी दिनों बाद आपका यह लेख पढ पाया और नीरजजी की आवाज में गीत सुन पाया।
आप सचमुच में वक्‍त को लौटाने का अद्भुत और अविश्‍वसनीय काम, अत्‍यन्‍त सफलतापूर्वक कर रहे हैं। हम सब आपके ऋणी हैं।
यदि सम्‍भव हो तो अनूपजी से, नीरज की ही आवाज में उनके कुछ और गीत सुनवाने का उपकार कीजिएग। पहला गीत है - 'अपनी बानी, प्रेम की बानी, हर कोई इसको ना समझे। यो तो इसे नन्‍दलला समझे या इसे बृज की लली समझे।' दूसरा गीत - 'हम पत्‍ते तूफान के', तीसरा गीत-'मां जल भरन न जाऊं, मोहे छेडे एक पडौसी छोरा।'
ईश्‍वर आपको और अनूपजी को लम्‍बी उम्र दे।

अभिषेक ओझा January 6, 2009 at 7:19 AM  

आज ही ये बात पता चली की ये नीरज जी की रचना है. ये गीत तो बहुत पसंद है... अच्छी प्रस्तुति रही ये भी.

Ashok Pande January 14, 2009 at 6:46 PM  

सुन्दर प्रस्तुति है! आनन्द प्राप्त हुआ! धन्यवाद!

अजित वडनेरकर January 16, 2009 at 4:17 PM  

आनंदम् आनंदम्।
यूनुस भाई की जैजैकार
ये प्यार है, ये प्यार है , ये प्यार

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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