Monday, April 6, 2009

निर्भय-निर्गुण गुण रे गाऊंगा: कुमार गंधर्व का दिव्‍य-स्‍वर

बहुत बरस पहले की बात है, मैं मध्‍यप्रदेश के आकाशवाणी छिंदवाड़ा में शौकिया-रेडियो-प्रस्‍तुतियां करता था । आकाशवाणी छिंदवाड़ा शहर से दूर एक टेकरी या पहाड़ पर स्थित है । जहां से शहर का सुंदरतम दृश्‍य नज़र आता है । जब हम 'युववाणी' के लिए प्रतीक्षा कर रहे होते थे उस समय एक कार्यक्रम हुआ करता था 'संझवाती' । संध्‍या-पूजा के समय में भजन बजाए जाते थे इस कार्यक्रम में और अकसर कुमार गंधर्व का 'चदरिया झीनी रे' या 'उड़ जायेगा हंस अकेला' बजता रहता । विशेष रूप से आकाशवाणी की इमारत की भौगोलिक स्थिति, सुरमई शाम के धुंधलके और एकदम सांद्र सन्‍नाटे में वो भजन बहुत मन भाते थे, जो कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली ने साथ में गाए हैं । एच.एम.वी. की एक पूरी डिस्‍क है । जिस पर दोनों ओर ये भजन हैं । इन निर्गुण भजनों को सुनकर मन जैसे बैरागी हो जाता था ।

कुमार गंधर्व को सुनना तो उसके बाद भी जारी रहा । एक दिन दादर के 'कोहीनूर म्‍यूजिक स्‍टोर' में भटक रहा था कि तभी कुमार जी की आवाज़ में 'कबीर' मिल गए । यानी कुमार गंधर्व को सुनना जारी रहा । हमारे मोबाइल पर 'उड़ जायेगा हंस अकेला' कभी रिंगटोन की तो कभी एम.पी.3 की शक्‍ल में बजता रहा है । ज़बर्दस्‍ती दूसरों को सुनवाया भी जाता रहा है । ट्रांस्‍फर भी किया जाता रहा है । यानी हम कुमार गंधर्व के मुरीदों की क़तार में बीच में कहीं खड़े हुए हैं । एक दिन 'रेडियोवाणी' पर लगे 'सी.बॉक्‍स' में किन्‍हीं रविकांत जी का संदेश मिला---'कभी निर्गुण सुनवाएं' । तो जैसे एक साथ कई यादें ताज़ा हो गईं । कुमार गंधर्व को सुनना किसी सौभाग्‍य से कम नहीं होता । उपमाएं कम पड़ जाती हैं और शब्‍द हमारी भावनाओं को व्‍यक्‍त करने के लिए पूरे नहीं पड़ते । नए शब्‍दों को गढ़ने की ज़रूरत है कुमार जी के निर्गुण से गुज़रने के अहसास को बयान करने के लिए । आईये आज से रेडियोवाणी में कुमार गंधर्व को सुनने की अनि‍यमित श्रृंखला शुरू करें । और कबीर की ये रचना सुनें । 
( स्‍वर कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली के )
अवधि- 4.14

99120063
निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा
मूल-कमल दृढ़-आसन बांधूं जी
उल्‍टी पवन चढ़ाऊंगा ।।
निर्भय निर्गुण ।। 
मन-ममता को थिर कर लाऊं जी 
पांचों तट मिलाऊंगा जी 
निर्भय निर्गुण ।। 
इंगला-पिंगला-सुखमन नाड़ी
त्रिवेणी पे हां नहाऊंगा
निर्भय-निर्गुण ।।  kumar gandharva

पांच-पचीसों पकड़ मंगाऊं-जी 
एक ही डोर लगाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
शून्‍य-शिखर पर अनहद बाजे जी
राग छत्‍तीस सुनाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
कहत कबीरा सुनो भई साधो जी
जीत निशान घुराऊंगा ।
निर्भय-निर्गुण ।।
 

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13 टिप्‍पणियां:

अफ़लातून April 6, 2009 at 7:21 PM  

आनन्द - आनन्द !
हमने यह कुमार गन्धर्व के शिष्य और वरिष्ट गांधीवादी एस.एन सुब्बाराव से सुना है । ’धुन सुन के मनवा मगन हुआ जी’- कुमार गन्धर्व का सुनवा दीजिए ना ।

neeshoo April 6, 2009 at 8:33 PM  

यूनुस जी , शानदार प्रस्तुति । सुनकर अच्छा लगा ।

रविकांत पाण्डेय April 6, 2009 at 9:16 PM  

यूनुस जी, बहुत-बहुत आभार। मन तो जैसे किसी और लोक में पहुँच गया। निर्गुण और वो भी कबीर का और फ़िर ये दिव्य स्वर...इसके आगे कहने को क्या बचता है। कबीर साहब का ही एक लोक में प्रचलित निर्गुन है-" साधो, नैया बीच नदी डूबल जाय" जिसे सुनना स्वर्गिक आनंद की अनुभुति कराता है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` April 7, 2009 at 2:03 AM  

यूनुस भाई ,
बहुत आनँद भया आज तो !
यूँ ही सुँदर गीत सुनवाते रहीयेगा .
स स्नेह,
- लावण्या

Arvind Mishra April 7, 2009 at 6:26 AM  

अनहद नाद यही तो है ! वाह !

महेन April 7, 2009 at 6:27 AM  

कुमार गन्धर्व जो को सुनना हर बार ख़ास होता है. क्यों, यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ.

Anonymous,  April 7, 2009 at 7:00 PM  

बहुत बाड़िया, सुनकर आनंद हुआ../ आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?

yunus April 7, 2009 at 10:30 PM  

मैं इंडिक से लिखता हूं जी अनाम जी

Manish Kumar April 8, 2009 at 6:28 AM  

देर से पहुँचा आपकी इस पोस्ट पर। अति उत्तम इसे सुनकर वाकई आपने ये दिन बना दिया।
अब इसे गुनगुनाना कुछ दिन ज़ारी रहेगा।

annapurna April 9, 2009 at 4:55 PM  

बेहद सुरीली पोस्ट !

Sagar Chand Nahar April 11, 2009 at 9:46 PM  

बहुत खूब.. एक अलौकिक अनूभूति हुई।

Vinod Kumar Purohit May 2, 2009 at 9:12 PM  

युनूस भाई साहब कुमार साहब की आवाज आैर कबीर का उलटबंसिया जैसे सोने में सुहागा। अति अद्भभुत । मेरा भी पुराना निवेदन अभी भी लंबित है। जब तक आप पूरा नहीं करेंगे निवेदन करना जारी रखूंगा। आपको स्मरण तो होगा ही नहीं तो ईमेल द्वारा पुन: स्मरण करा दूंगा। रात भर का है डेरा रे सवेरे जाना है0000

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