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Thursday, September 6, 2007

कव्वाली की दुनिया-- आईये सुनें अलग अलग गायकों की आवाज़ में अमीर खुसरो की रचना ‘मन कुन्तो मौला’

पिछले कुछ दिनों से हम रेडियोवाणी पर और भाई नीरज रोहिल्ला । अपने ब्लॉग पर क़व्वाली की महफिलें सजा रहे हैं । बहुत दिनों से तमन्ना यही थी कि आपको अमीर खुसरो की कुछ सूफी रचनाएं सुनवाई जाएं । लेकिन संयोग नहीं बन रहा था । ये तमन्ना तब से और ज़ोर पकड़ने लगी थी जब से निर्मल-आनंद वाले अभय तिवारी ने नीरज के ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी में ‘मन कुन्तो मौला’’ का जिक्र किया था । दरअसल सूफी कव्वाली में ‘मन कुन्तो मौला’ को बिल्कुल मील का पत्थर माना जाता है । हर क़व्वाल इसे ज़रूरी रचना मानता है । लगभग सभी मशहूर क़व्वालों ने ‘मन कुन्तो मौला’ गाकर अपने आप को धन्य धन्य समझा है । ज़ाहिर है कि आज अगर हम किसी एक संस्करण को सुनवा दें तो पूरी तरह से नाइंसाफी होगी । इसलिये ये पोस्ट आकार में ज़रा बड़ी होगी, लेकिन अगर आप सूफ़ी रचनाओं के दीवाने हैं और कहीं ना कहीं आप के दिल में रूहानियत की लौ लगी है तो आप इन तमाम रचनाओं को सुनेंगे । अभी वक्त ना हो तो बाद में आईये और एक एक करके इन सारे संस्करणों को सुनिए,फिर महसूस कीजिए कि ऐसा क्या। है इस रचना में जो इसे हर क़व्वाल ने अपनी ‘मुक्ति’ के लिए एक ज़रूरी रचना समझा है ।

इस बीच हज़रत अमीर खुसरो पर केंद्रित एक ज़रूरी बेबसाईट मुझे मिली है जिसे आप सबके साथ शेयर करना ज़रूरी है । ज़रा एक बार यहां भी जाईयेगा । ये यूसुफ सईद की वेबसाईट है, जिस पर अमीर खुसरो पर केंद्रित बाकी वेबसाईटों का भी विवरण है । और कई अन्य ज़रूरी जानकारियां भी हैं ।
इस वेबसाईट से ही कॉपी-पेस्ट करके मैंने रोमन में इस सूफी रचना का ब्यौरा यहां प्रस्तुत किया है । जो इसे समझने में आपकी मदद करेगा ।

Man kunto maula,
Fa Ali-un maula
Man kunto maula.
Dara dil-e dara dil-e dar-e daani.
Hum tum tanana nana, nana nana ray
Yalali yalali yala, yalayala ray Man tunko maula......

"Whoever accepts me as a master,
Ali is his master too."
(The above is a hadith - a saying of the Prophet Mohammad (PBH).
Rest of the lines are tarana bols that are generally meaningless
and are used for rhythmic chanting by Sufis.)

तो आईये अब एक एक करके ज़रा ‘मन कुन्तो मौला’ के तमाम संस्करण सुन लिये जाएं । सबसे पहले हम सुनेंगे निज़ामी-ब्रदर्स की आवाज़ में । जहां तक मेरी जानकारी है, निज़ामी भाईयों के नाम हैं—गुलाम साबिर और गुलाम वारिस निज़ामी । भारतीय-क़व्वालों की दुनिया में ये जोड़ी एक बड़ा नाम है । निज़ामी भाईयों के गाए इस संस्करण की ख़ासियत ये है कि इसमें एक ख़ास रवानी है । लय है । गति है । और भक्ति रचनाओं का मक़सद तब पूरा होता है जब एक धीमी गति से शुरू करके मामला लौ लगने की तीव्र गति तक पहुंचता है और आपके तन-बदन को झकझोरता हुआ एक असीम शांति से भर देता है । निज़ामी ब्रदर्स का गाया ये संस्करण यही काम करता है । सुनिए और देखिए---



अब इसे साबरी-ब्रदर्स की आवाज़ में सुनिए और देखिए । क़व्वाली के क़द्रदान साबरी ब्रदर्स से वाकिफ़ ना हों ये हो ही नहीं सकता । और वाकिफ़ होने के लिए यहां क्लिक कीजिए । साबरी ब्रदर्स ने इसे समझाते हुए गाया
है ।



ये है उस्ताद नुसरत फतेह अली खां का गाया संस्करण


और ये ज़ि‍ला ख़ान की आवाज़ में ‘मन कुन्तो मौला’ । इसके फैशनेबल वीडियो पर मत जाईयेगा । गायकी सुनिएगा, जो वाक़ई लाजवाब है ।



वडाली ब्रदर्स की आवाज़ वाला संस्करण । वडाली ब्रदर्स पंजाबी लोक गायकी के कालजयी नाम हैं ।



उस्ताद शुजात ख़ां की आवाज़ वाला संस्करण—
हो सकता है कि इसे सुनने में कठिनाई हो । लेकिन मैं इसका विकल्प खोज रहा हूं । क्योंकि ये कमाल का संस्करण है । अगर दिक्कत होती है तो जल्दी ही इसे किसी दूसरे उपाय से सुनवाया जायेगा ।



तो देखा आपने इस एक क़व्वाली को कितने कितने गायकों ने गाया है और अपनी अपनी तरह से गाया है । कई संस्करण हैं जो छूट गये हैं । लेकिन इतने सारे संस्करण एक साथ पेश करने का मतलब है सुनने वालों को दिक्कत में डालना । इसलिए फिलहाल ये छह संस्करण ही सुनिए और बताईये कैसे लगे ।
अगली बार जब कभी मौका मिलेगा तो हम कई कलाकारों की आवाज़ में सुनेंगे अमीर खुसरो की रचना
‘आज रंग है ओ मां’ ।

Technorati tags:
कव्वाली ,
मन कुन्तो मौला ,
अमीर खुसरो ,
qawwali ,
man kunto maula ,
ameer khusro ,

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: कव्वाली, मन, कुन्तो, मौला, अमीर, खुसरो, साबरी, ब्रदर्स, निज़ामी, ब्रदर्स, उस्ताद, शुजात, खान, जिला, खान,

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अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

कव्वाली की दुनिया-- आईये सुनें अलग अलग गायकों की आवाज़ में अमीर खुसरो की रचना ‘मन कुन्तो मौला’

पिछले कुछ दिनों से हम रेडियोवाणी पर और भाई नीरज रोहिल्ला । अपने ब्लॉग पर क़व्वाली की महफिलें सजा रहे हैं । बहुत दिनों से तमन्ना यही थी कि आपको अमीर खुसरो की कुछ सूफी रचनाएं सुनवाई जाएं । लेकिन संयोग नहीं बन रहा था । ये तमन्ना तब से और ज़ोर पकड़ने लगी थी जब से निर्मल-आनंद वाले अभय तिवारी ने नीरज के ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी में ‘मन कुन्तो मौला’’ का जिक्र किया था । दरअसल सूफी कव्वाली में ‘मन कुन्तो मौला’ को बिल्कुल मील का पत्थर माना जाता है । हर क़व्वाल इसे ज़रूरी रचना मानता है । लगभग सभी मशहूर क़व्वालों ने ‘मन कुन्तो मौला’ गाकर अपने आप को धन्य धन्य समझा है । ज़ाहिर है कि आज अगर हम किसी एक संस्करण को सुनवा दें तो पूरी तरह से नाइंसाफी होगी । इसलिये ये पोस्ट आकार में ज़रा बड़ी होगी, लेकिन अगर आप सूफ़ी रचनाओं के दीवाने हैं और कहीं ना कहीं आप के दिल में रूहानियत की लौ लगी है तो आप इन तमाम रचनाओं को सुनेंगे । अभी वक्त ना हो तो बाद में आईये और एक एक करके इन सारे संस्करणों को सुनिए,फिर महसूस कीजिए कि ऐसा क्या। है इस रचना में जो इसे हर क़व्वाल ने अपनी ‘मुक्ति’ के लिए एक ज़रूरी रचना समझा है ।

इस बीच हज़रत अमीर खुसरो पर केंद्रित एक ज़रूरी बेबसाईट मुझे मिली है जिसे आप सबके साथ शेयर करना ज़रूरी है । ज़रा एक बार यहां भी जाईयेगा । ये यूसुफ सईद की वेबसाईट है, जिस पर अमीर खुसरो पर केंद्रित बाकी वेबसाईटों का भी विवरण है । और कई अन्य ज़रूरी जानकारियां भी हैं ।
इस वेबसाईट से ही कॉपी-पेस्ट करके मैंने रोमन में इस सूफी रचना का ब्यौरा यहां प्रस्तुत किया है । जो इसे समझने में आपकी मदद करेगा ।

Man kunto maula,
Fa Ali-un maula
Man kunto maula.
Dara dil-e dara dil-e dar-e daani.
Hum tum tanana nana, nana nana ray
Yalali yalali yala, yalayala ray Man tunko maula......

"Whoever accepts me as a master,
Ali is his master too."
(The above is a hadith - a saying of the Prophet Mohammad (PBH).
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and are used for rhythmic chanting by Sufis.)

तो आईये अब एक एक करके ज़रा ‘मन कुन्तो मौला’ के तमाम संस्करण सुन लिये जाएं । सबसे पहले हम सुनेंगे निज़ामी-ब्रदर्स की आवाज़ में । जहां तक मेरी जानकारी है, निज़ामी भाईयों के नाम हैं—गुलाम साबिर और गुलाम वारिस निज़ामी । भारतीय-क़व्वालों की दुनिया में ये जोड़ी एक बड़ा नाम है । निज़ामी भाईयों के गाए इस संस्करण की ख़ासियत ये है कि इसमें एक ख़ास रवानी है । लय है । गति है । और भक्ति रचनाओं का मक़सद तब पूरा होता है जब एक धीमी गति से शुरू करके मामला लौ लगने की तीव्र गति तक पहुंचता है और आपके तन-बदन को झकझोरता हुआ एक असीम शांति से भर देता है । निज़ामी ब्रदर्स का गाया ये संस्करण यही काम करता है । सुनिए और देखिए---



अब इसे साबरी-ब्रदर्स की आवाज़ में सुनिए और देखिए । क़व्वाली के क़द्रदान साबरी ब्रदर्स से वाकिफ़ ना हों ये हो ही नहीं सकता । और वाकिफ़ होने के लिए यहां क्लिक कीजिए । साबरी ब्रदर्स ने इसे समझाते हुए गाया
है ।



ये है उस्ताद नुसरत फतेह अली खां का गाया संस्करण


और ये ज़ि‍ला ख़ान की आवाज़ में ‘मन कुन्तो मौला’ । इसके फैशनेबल वीडियो पर मत जाईयेगा । गायकी सुनिएगा, जो वाक़ई लाजवाब है ।



वडाली ब्रदर्स की आवाज़ वाला संस्करण । वडाली ब्रदर्स पंजाबी लोक गायकी के कालजयी नाम हैं ।



उस्ताद शुजात ख़ां की आवाज़ वाला संस्करण—
हो सकता है कि इसे सुनने में कठिनाई हो । लेकिन मैं इसका विकल्प खोज रहा हूं । क्योंकि ये कमाल का संस्करण है । अगर दिक्कत होती है तो जल्दी ही इसे किसी दूसरे उपाय से सुनवाया जायेगा ।



तो देखा आपने इस एक क़व्वाली को कितने कितने गायकों ने गाया है और अपनी अपनी तरह से गाया है । कई संस्करण हैं जो छूट गये हैं । लेकिन इतने सारे संस्करण एक साथ पेश करने का मतलब है सुनने वालों को दिक्कत में डालना । इसलिए फिलहाल ये छह संस्करण ही सुनिए और बताईये कैसे लगे ।
अगली बार जब कभी मौका मिलेगा तो हम कई कलाकारों की आवाज़ में सुनेंगे अमीर खुसरो की रचना
‘आज रंग है ओ मां’ ।

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Sunday, August 26, 2007

फिल्म ‘गर्म हवा’ की क़व्वाली—मौला सलीम चिश्ती, अज़ीज अहमद ख़ां वारसी की आवाज़


मैंने थोड़े दिन पहले आपको एक बेमिसाल क़व्‍वाली सुनाई थी जिसके बोल थे—
कन्‍हैया बोलो याद भी है कुछ हमारी । फरीद अयाज़ की आवाज़ थी, अभी फ़रीद अयाज़ की आवाज़ में दूसरी क़व्‍वाली सुनवाने के बारे में सोच ही रहा था कि कल आलोक पुराणिक ने संदेस भेजा, गर्म हवा फिल्‍म की एक क़व्‍वाली मिल नहीं रही है । शायद आपके ख़ज़ाने में हो । मेरे ख़ज़ाने में इसका ऑडियो तो नहीं है लेकिन इंटरनेट पर ज़रूर ये क़व्‍वाली प्राप्‍त हो गयी । और एक नहीं इस क़व्‍वाली के कई स्‍त्रोत मिले । तो चलिए क़व्‍वाली पर ख़रामां ख़रामां (धीरे धीरे) चल रही हमारी श्रृंखला की दूसरी कड़ी सुनी जाए । वैसे आजकल नीरज रोहिल्‍ला भी क़व्‍वाली पर अच्‍छा काम कर रहे हैं और मैंने उनसे कहा है कि हम दोनों चिट्ठेकारी की दुनिया में क़व्‍वाली का कारवां चलाएंगे । इसी बहाने कई क़व्‍वालियां दोबारा खोजी जा सकेंगी ।

आलोक भाई धन्‍यवाद । आपने इस क़व्‍वाली की याद दिला दी । मैंने इस श्रृंखला के पहले हिस्‍से में ही अर्ज़ कर दिया था कि मुझे बहुत कम क़व्‍वालियां सुहातीं हैं । और इसके अनेक कारण हैं । कभी डाउन मेमोरी लेन में जाऊंगा तो ज़रूर थोड़ी तुर्शी के साथ अपनी बात कहूंगा और बहुत सारे कट्टर लोगों को बुरा भी लगेगा । पर फिलहाल चूंकि मौक़ा उम्‍दा क़व्‍वाली सुनने का है इसलिए सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि क़व्‍वाली को प्रदूषित करने में भाई लोगों ने कोई क़सर नहीं छोड़ी है, बस इसी बात का अफ़सोस रह जाता है ।

बहरहाल, 1973 में आई फिल्‍म ‘गर्म हवा’ की क़व्‍वाली सुनवाने से पहले इस फिल्‍म के बारे में थोड़ी सी चर्चा कर ली जाए । विभाजन की पृष्‍ठभूमि पर बनी सबसे ऑथेंटिक फिल्‍म थी ये । इस्‍मत चुग़ताई की कहानी, कैफ़ी आज़मी का स्‍क्रीनप्‍ले, उन्‍हीं के नग्‍़मे, निर्देशन एम.एस.सथ्‍यू का और कलाकार कमाल के । बलराज साहनी, फारूख़ शेख, गीता सिद्धार्थ, ए के हंगल, शौक़त कैफी वग़ैरह । ‘गर्म हवा’ भारत की कालजयी फिल्‍मों में गिनी जाती है । अगर आपने ये फिल्‍म अब तक नहीं देखी है तो ज़रूर डी वी डी खोजिए और अभी देख डालिए ।

इस फिल्‍म का संगीत उस्‍ताद बहादुर खां साहब ने दिया था । ये क़व्‍वाली हिंदी फिल्‍मों की बेहद सच्‍ची और अच्‍छी क़व्‍वालियों में से एक है । आवाज़ है अज़ीज़ अहमद ख़ां वारसी की । आज मैं आपको ना सिर्फ़ ये क़व्‍वाली सुनवाऊंगा बल्कि दिखाऊंगा भी ।

इसे सुनकर यूं लगता है जैसे दुनिया के सताए मज़लूम लोग मौला सलीम चिश्‍ती की दरगाह पर सिर झुकाए खड़े हैं, अपनी परेशानियों का हल मांग रहे हैं । निवेदन और याचना की जो मार्मिकता इस क़व्‍वाली से उभरती है, उसके बाद अगर कोई प्‍यार मुहब्‍बत की क़व्‍वाली सुनवाता है तो लगता है जैसे मुंह का स्‍वाद ख़राब हो गया है ।

ये रहे इस क़व्‍वाली के बोल, जिन्‍हें हमने
अक्षरमाला से लिया है ।

सूखी रुत में छाई बदरिया, चमकी बिजुरिया साथ
डूबो तुम भी संग मेरे, या थामो मेरा हाथ

मौला सलीम चिश्ती, आक़ा सलीम चिश्ती -२
आबाद कर दो दिल की दुनिया सलीम चिश्ती -२

जितनी बलायें आई, सब को गले लगाया -२
खूँ हो गया कलेजा, शिकवा न लब पे आया -२
हर दर्द हम ने अपना, अपने से भी छुपाया
हर दर्द हम ने अपना, हा
हर दर्द हम ने अपना, अपने से भी छुपाया -२
तुम से नहीं है कोई पर्दा सलीम चिश्ती
मौला सलीम चिश्ती ...

जाएगा कौन आके, प्यासा तुम्हारे दर से -२
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से -२
कुछ जाम से पीएंगे, हा
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से -२

एक प्याली भर के दे साक़ी मै-ए-गुलफ़ाम की
एक अपने नाम पी, और एक अल्लाह नाम पी
मेट दे पूरी मेरी हसरत दिल-ए-नाकाम की
देदे देदे दर्द में कोई सूरत आराम की
घूँट ही पिला मगर जोश-ए-तमन्ना डाल कर
एक क़तरा दे मगर क़तरे में दरिया डाल कर
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से ...

ये संग-ए-दर तुम्हारा, तोड़ेंगे अपने सर से -२
ये संग-ए-दर तुम्हारा, हा
ये संग-ए-दर तुम्हारा, तोड़ेंगे अपने सर से -२
ये दिल अगर तुम्हारा टूटा सलीम चिश्ती -२
मौला सलीम चिश्ती ...

इस संग-ए-दर के सदक़े, इस रहगुज़र के सदक़े
भटके हुए मुसाफ़िर, मंज़िल पे पहुंचे आख़िर
उजड़े हुए चमन में, ये रँग-ए-पैरहन में
सौ रँग मुस्कुराए, सौ फूल लैलहाए
आई नई बहारें, पहलने लगी फुआरें
ग़्हूँघट की लाज रखना, इस सर पे ताज रखना
इस सर पे ताज रखना

आक़ा सलीम चिश्ती, मौला सलीम चिश्ती ...


इस क़व्वाली को सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए
और देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए या फिर इस लिंक को कट पेस्टc कर लीजिए
http://youtube.com/watch?v=9ilOntNHFhY


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garam hawa ,
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maula salim chishti ,
aziz ahmed khan warsi

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फिल्म ‘गर्म हवा’ की क़व्वाली—मौला सलीम चिश्ती, अज़ीज अहमद ख़ां वारसी की आवाज़


मैंने थोड़े दिन पहले आपको एक बेमिसाल क़व्‍वाली सुनाई थी जिसके बोल थे—
कन्‍हैया बोलो याद भी है कुछ हमारी । फरीद अयाज़ की आवाज़ थी, अभी फ़रीद अयाज़ की आवाज़ में दूसरी क़व्‍वाली सुनवाने के बारे में सोच ही रहा था कि कल आलोक पुराणिक ने संदेस भेजा, गर्म हवा फिल्‍म की एक क़व्‍वाली मिल नहीं रही है । शायद आपके ख़ज़ाने में हो । मेरे ख़ज़ाने में इसका ऑडियो तो नहीं है लेकिन इंटरनेट पर ज़रूर ये क़व्‍वाली प्राप्‍त हो गयी । और एक नहीं इस क़व्‍वाली के कई स्‍त्रोत मिले । तो चलिए क़व्‍वाली पर ख़रामां ख़रामां (धीरे धीरे) चल रही हमारी श्रृंखला की दूसरी कड़ी सुनी जाए । वैसे आजकल नीरज रोहिल्‍ला भी क़व्‍वाली पर अच्‍छा काम कर रहे हैं और मैंने उनसे कहा है कि हम दोनों चिट्ठेकारी की दुनिया में क़व्‍वाली का कारवां चलाएंगे । इसी बहाने कई क़व्‍वालियां दोबारा खोजी जा सकेंगी ।

आलोक भाई धन्‍यवाद । आपने इस क़व्‍वाली की याद दिला दी । मैंने इस श्रृंखला के पहले हिस्‍से में ही अर्ज़ कर दिया था कि मुझे बहुत कम क़व्‍वालियां सुहातीं हैं । और इसके अनेक कारण हैं । कभी डाउन मेमोरी लेन में जाऊंगा तो ज़रूर थोड़ी तुर्शी के साथ अपनी बात कहूंगा और बहुत सारे कट्टर लोगों को बुरा भी लगेगा । पर फिलहाल चूंकि मौक़ा उम्‍दा क़व्‍वाली सुनने का है इसलिए सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि क़व्‍वाली को प्रदूषित करने में भाई लोगों ने कोई क़सर नहीं छोड़ी है, बस इसी बात का अफ़सोस रह जाता है ।

बहरहाल, 1973 में आई फिल्‍म ‘गर्म हवा’ की क़व्‍वाली सुनवाने से पहले इस फिल्‍म के बारे में थोड़ी सी चर्चा कर ली जाए । विभाजन की पृष्‍ठभूमि पर बनी सबसे ऑथेंटिक फिल्‍म थी ये । इस्‍मत चुग़ताई की कहानी, कैफ़ी आज़मी का स्‍क्रीनप्‍ले, उन्‍हीं के नग्‍़मे, निर्देशन एम.एस.सथ्‍यू का और कलाकार कमाल के । बलराज साहनी, फारूख़ शेख, गीता सिद्धार्थ, ए के हंगल, शौक़त कैफी वग़ैरह । ‘गर्म हवा’ भारत की कालजयी फिल्‍मों में गिनी जाती है । अगर आपने ये फिल्‍म अब तक नहीं देखी है तो ज़रूर डी वी डी खोजिए और अभी देख डालिए ।

इस फिल्‍म का संगीत उस्‍ताद बहादुर खां साहब ने दिया था । ये क़व्‍वाली हिंदी फिल्‍मों की बेहद सच्‍ची और अच्‍छी क़व्‍वालियों में से एक है । आवाज़ है अज़ीज़ अहमद ख़ां वारसी की । आज मैं आपको ना सिर्फ़ ये क़व्‍वाली सुनवाऊंगा बल्कि दिखाऊंगा भी ।

इसे सुनकर यूं लगता है जैसे दुनिया के सताए मज़लूम लोग मौला सलीम चिश्‍ती की दरगाह पर सिर झुकाए खड़े हैं, अपनी परेशानियों का हल मांग रहे हैं । निवेदन और याचना की जो मार्मिकता इस क़व्‍वाली से उभरती है, उसके बाद अगर कोई प्‍यार मुहब्‍बत की क़व्‍वाली सुनवाता है तो लगता है जैसे मुंह का स्‍वाद ख़राब हो गया है ।

ये रहे इस क़व्‍वाली के बोल, जिन्‍हें हमने
अक्षरमाला से लिया है ।

सूखी रुत में छाई बदरिया, चमकी बिजुरिया साथ
डूबो तुम भी संग मेरे, या थामो मेरा हाथ

मौला सलीम चिश्ती, आक़ा सलीम चिश्ती -२
आबाद कर दो दिल की दुनिया सलीम चिश्ती -२

जितनी बलायें आई, सब को गले लगाया -२
खूँ हो गया कलेजा, शिकवा न लब पे आया -२
हर दर्द हम ने अपना, अपने से भी छुपाया
हर दर्द हम ने अपना, हा
हर दर्द हम ने अपना, अपने से भी छुपाया -२
तुम से नहीं है कोई पर्दा सलीम चिश्ती
मौला सलीम चिश्ती ...

जाएगा कौन आके, प्यासा तुम्हारे दर से -२
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से -२
कुछ जाम से पीएंगे, हा
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से -२

एक प्याली भर के दे साक़ी मै-ए-गुलफ़ाम की
एक अपने नाम पी, और एक अल्लाह नाम पी
मेट दे पूरी मेरी हसरत दिल-ए-नाकाम की
देदे देदे दर्द में कोई सूरत आराम की
घूँट ही पिला मगर जोश-ए-तमन्ना डाल कर
एक क़तरा दे मगर क़तरे में दरिया डाल कर
कुछ जाम से पीएंगे, कुछ महर्बां नज़र से ...

ये संग-ए-दर तुम्हारा, तोड़ेंगे अपने सर से -२
ये संग-ए-दर तुम्हारा, हा
ये संग-ए-दर तुम्हारा, तोड़ेंगे अपने सर से -२
ये दिल अगर तुम्हारा टूटा सलीम चिश्ती -२
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इस संग-ए-दर के सदक़े, इस रहगुज़र के सदक़े
भटके हुए मुसाफ़िर, मंज़िल पे पहुंचे आख़िर
उजड़े हुए चमन में, ये रँग-ए-पैरहन में
सौ रँग मुस्कुराए, सौ फूल लैलहाए
आई नई बहारें, पहलने लगी फुआरें
ग़्हूँघट की लाज रखना, इस सर पे ताज रखना
इस सर पे ताज रखना

आक़ा सलीम चिश्ती, मौला सलीम चिश्ती ...


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और देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए या फिर इस लिंक को कट पेस्टc कर लीजिए
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Sunday, August 19, 2007

कव्वाली में कन्हैया—सुनिए फरीद अयाज़ की आवाज़ में ये अदभुत कव्वाली-- कन्हैया याद भी है कुछ हमारी

आज तो कमाल हो गया । मैं इंटरनेट पर नज़ीर अकबराबादी की रचना ‘कन्‍हैया का बांकपन’ खोज रहा था । इसे पीनाज़ मसानी ने गाया है और विविध भारती में इसका रिकॉर्ड सही सलामत है । ख़ैर ये रचना तो नहीं मिली मगर कुछ ऐसा मिला है कि ऐन दफ्तर जाने से ठीक पहले सब कुछ छोड़कर मुझे ये पोस्‍ट लिखनी पड़ रही है । जी हां आज मैं रात्रि प्रसारण कर रहा हूं ।
मुझे मिली हैं कुछ क़व्‍वालियां । आमतौर पर क़व्‍वालियों से मेरा ज्‍यादा अनुराग नहीं रहा है । इसकी कई वजहें रही हैं । पर मुझे कुछ चुनिंदा क़व्‍वालियां पसंद है, जिसमें कबीर की एक रचना है जिसे श्‍याम बेनेगल ने अपनी फिल्‍म ‘मंडी’ में इस्‍तेमाल किया था—‘हर में हर को देखा रे बाबा हर में हर को देखा’ इसके अलावा दो चार और होंगी बस । बहरहाल आज मुझे प्राप्‍त हुई हैं फ़रीद अयाज़ क़व्‍वाल की क़व्‍वालियां ।
इंटरनेट पर मुझे फ़रीद अयाज़ के बारे में ज्‍यादा कुछ पता नहीं चल सका । बस इतना पता चला कि ये विशुद्ध क़व्‍वाली को निभाने वाली फ़नकार हैं जिनका ताल्‍लुक भारत से रहा है पर अब रहते हैं पाकिस्‍तान में । दुनिया भर में इनकी कव्‍वालियों की म‍हफिलें काफी चर्चित रही हैं । इनके बारे में ज्‍यादा जानकारी बाद में जुटाई जायेगी, फिल्‍हाल सुनिए ये क़व्‍वालियां ।

इस कव्‍वाली का उन्‍वान है—कन्‍हैया याद भी है कुछ हमारी ।
मुझे अद्भुत लगा कि कव्‍वाली और वो भी कन्‍हैया पर । हालांकि ये अजीब नहीं है । कन्‍हैया सबके प्रिय रहे हैं । क़व्‍वालों और सूफियों के भी ।
ये रहा इस क़व्‍वाली का यू ट्यूब वीडियो । जो वीडियो से ज्‍यादा तस्‍वीरों का मोन्‍टाज है ।

ये रहे इसके बोल--
कन्‍हैया बोलो याद भी है कुछ हमारी,
कहूं क्‍या तेरे भूलने के मैं वारी
बिनती मैं कर कर पमना से पूछी
पल पल की खबर तिहारी
पैंया परीं महादेव के जाके
टोना भी करके मैं हारी
कन्‍हैया याद है कुछ भी हमारी
खाक परो लोगो इस ब्‍याहने पर
अच्‍छी मैं रहती कंवारी
मैका में हिल मिल रहती थी सुख से
फिरती थी क्‍यों मारी मारी ।
कन्‍हैया कन्‍हैया ।।


इनकी कुछ और क़व्‍वालियां भी मिली हैं । हौसला अफ़ज़ाई तो कीजिये, ज़रूर पेश की जायेंगी ।
अगर आप फरीद अयाज़ कव्‍वाल के बारे में ज्‍यादा जानते हैं तो ज़रा मुझे भी टॉर्च दिखाईये ।


इस क़व्वाली की लिंक ये रही । इसे कट पेस्ट कीजिये या फिर यहां क्लिक कीजिए
http://youtube.com/watch?v=GjQBG7A3bLg

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कव्वाली में कन्हैया—सुनिए फरीद अयाज़ की आवाज़ में ये अदभुत कव्वाली-- कन्हैया याद भी है कुछ हमारी

आज तो कमाल हो गया । मैं इंटरनेट पर नज़ीर अकबराबादी की रचना ‘कन्‍हैया का बांकपन’ खोज रहा था । इसे पीनाज़ मसानी ने गाया है और विविध भारती में इसका रिकॉर्ड सही सलामत है । ख़ैर ये रचना तो नहीं मिली मगर कुछ ऐसा मिला है कि ऐन दफ्तर जाने से ठीक पहले सब कुछ छोड़कर मुझे ये पोस्‍ट लिखनी पड़ रही है । जी हां आज मैं रात्रि प्रसारण कर रहा हूं ।
मुझे मिली हैं कुछ क़व्‍वालियां । आमतौर पर क़व्‍वालियों से मेरा ज्‍यादा अनुराग नहीं रहा है । इसकी कई वजहें रही हैं । पर मुझे कुछ चुनिंदा क़व्‍वालियां पसंद है, जिसमें कबीर की एक रचना है जिसे श्‍याम बेनेगल ने अपनी फिल्‍म ‘मंडी’ में इस्‍तेमाल किया था—‘हर में हर को देखा रे बाबा हर में हर को देखा’ इसके अलावा दो चार और होंगी बस । बहरहाल आज मुझे प्राप्‍त हुई हैं फ़रीद अयाज़ क़व्‍वाल की क़व्‍वालियां ।
इंटरनेट पर मुझे फ़रीद अयाज़ के बारे में ज्‍यादा कुछ पता नहीं चल सका । बस इतना पता चला कि ये विशुद्ध क़व्‍वाली को निभाने वाली फ़नकार हैं जिनका ताल्‍लुक भारत से रहा है पर अब रहते हैं पाकिस्‍तान में । दुनिया भर में इनकी कव्‍वालियों की म‍हफिलें काफी चर्चित रही हैं । इनके बारे में ज्‍यादा जानकारी बाद में जुटाई जायेगी, फिल्‍हाल सुनिए ये क़व्‍वालियां ।

इस कव्‍वाली का उन्‍वान है—कन्‍हैया याद भी है कुछ हमारी ।
मुझे अद्भुत लगा कि कव्‍वाली और वो भी कन्‍हैया पर । हालांकि ये अजीब नहीं है । कन्‍हैया सबके प्रिय रहे हैं । क़व्‍वालों और सूफियों के भी ।
ये रहा इस क़व्‍वाली का यू ट्यूब वीडियो । जो वीडियो से ज्‍यादा तस्‍वीरों का मोन्‍टाज है ।

ये रहे इसके बोल--
कन्‍हैया बोलो याद भी है कुछ हमारी,
कहूं क्‍या तेरे भूलने के मैं वारी
बिनती मैं कर कर पमना से पूछी
पल पल की खबर तिहारी
पैंया परीं महादेव के जाके
टोना भी करके मैं हारी
कन्‍हैया याद है कुछ भी हमारी
खाक परो लोगो इस ब्‍याहने पर
अच्‍छी मैं रहती कंवारी
मैका में हिल मिल रहती थी सुख से
फिरती थी क्‍यों मारी मारी ।
कन्‍हैया कन्‍हैया ।।


इनकी कुछ और क़व्‍वालियां भी मिली हैं । हौसला अफ़ज़ाई तो कीजिये, ज़रूर पेश की जायेंगी ।
अगर आप फरीद अयाज़ कव्‍वाल के बारे में ज्‍यादा जानते हैं तो ज़रा मुझे भी टॉर्च दिखाईये ।


इस क़व्वाली की लिंक ये रही । इसे कट पेस्ट कीजिये या फिर यहां क्लिक कीजिए
http://youtube.com/watch?v=GjQBG7A3bLg

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