Sunday, July 1, 2007

मेघा छाये आधी रात, झींगुर बोले चीकी मीकी—दो अनमोल बारिश गीत


मित्रो बारिश ने मुंबई शहर का हुलिया फिर बिगाड़ दिया है । उन्‍तीस जून की रात से लेकर तीस जून तक दिन भर ज़बर्दस्‍त बारिश हुई । आंकड़े आपको टी.वी.वाले बता
देंगे । आपको पता होगा कि तीस जून को ‘ब्‍लू मून’ वाला दिन था, एक महीने में दूसरी पूर्णिमा वाला दिन ।

बहरहाल, बारिश के इस महा-मौसम में हाल-बेहाल हुए लोगों में ये नाचीज़ भी शामिल था, जो घुटनों भर पानी में लौटकर घर आया । छींकों के मारे बुरा हाल हो गया । टी.वी. की ख़बरें इतनी डरावनी थीं कि मित्रों और रिश्‍तेदारों के फ़ोन चले आये । पर दिन ठीक-ठाक बीत ही गया ।

चलिये बारिश की इस डरावनी याद को भुलाने के लिए सुनें बारिश के कुछ सुहावने गीत !
मेघा छाये आधी रात, यहां सुनिए ।


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यहां देखिए






मेघा छाए आधी रात बैरन हो गयी निंदिया ।
बता दे मैं क्‍या करूं, क्‍या करूं ।
सबके आंगन दिया जले रे, मेरे आंगन जिया
हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया
कैसे कहूं मैं मन की बात, बैरन बन गयी निंदिया
बता दे रे मैं क्‍या करूं, मेघा छाये आधी रात ।।
टूट गये रे सपने मेरे, टूट गयी रे आशा
नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्‍यासा
आई है आंसू की बारात, बैरन बन गयी निंदिया
बता दे मैं क्‍या करूं, मेघा छाये ।।

इस गाने को मैं वेस्‍टर्न म्‍यूज़ि‍क और भारतीय पारंपरिक संगीत का बेहतरीन मिश्रण किया गया है । गाना एस.डी. बर्मन की ठेठ स्‍टाईल से शुरू होता है । ग्रुप वायलिन और रिदम का शानदार संयोजन, जिससे गाने की रवानी या गति का सहज अंदाज़ा लग जाता है, साथ में ऑर्गन की तान ने इस गाने के ‘इंट्रो’ को और भी नशीला बना दिया है । क़रीब बत्‍तीस सेकेन्‍ड के बाद इस वाद्य संयोजन में सितार के सुर सुनाई देते हैं । और उसके बाद वायलिन पर गाने का मुखड़ा छेड़ा गया है । और फिर हल्‍की सी बांसुरी । उसके बाद आती हैं लता जी । मैं इसे एस.डी.बर्मन के रचे सबसे अच्‍छे ‘इंट्रो’ में गिनता हूं । नये-नवेले रसिकों को बता दें कि गाने के पहले बजने वाले वाद्य-संयोजन को संगीत की भाषा में ‘इंट्रो’ कहा जाता है । ये तो थी इंट्रो की बात ।

पर इस गाने की इतनी ही ख़ूबियां नहीं हैं । जैसा कि मैंने कहा कि इस गाने में भारतीय पारंपरिक संगीत और वेस्‍टर्न म्‍यूज़ि‍क की स्‍वरलहरियों का शानदार मिश्रण है । आप ध्‍यान से सुनें तो पायेंगे कि जब लता जी गाती हैं तो ढोलक और तबले की थाप सुनाई देती है, वेस्‍टर्न ऑरकेस्‍ट्रा ख़ामोश रहता है, लेकिन जैसे ही लता जी की गायकी ख़त्‍म होती है, और ‘बैरन बन गयी निंदिया’ का ‘या’ ख़त्‍म होता है, फ़ौरन गिटार संगीत के कारवां को आगे बढ़ाता है । वो भी इतना प्रोमि‍नेन्‍ट गिटार है कि किसी क़द्रदान श्रोता को सिर्फ़ यही सुनवा दिया जाये, तो वो गाने को पहचान लेगा ।

यहां से गाने को और ध्‍यान से सुनने की ज़रूरत है । लगभग एक मि. चालीस सेकेन्‍ड के आसपास आपको अचानक पता चलेगा कि वेस्‍टर्न ऑर्केस्‍ट्रा ने ‘क्‍यू’ दिया और उसकी जगह ले ली भारतीय-धुन ने । और उसके बाद लता जी अंतरा गाती हैं ।

जिस तरह एस.डी.बर्मन ने इस गाने का संगीत-संयोजन किया है, वो वाक़ई अद्भुत है । ये गीत मैंने अपने मोबाइल फ़ोन पर उतार रखा है और जितनी बार सुनता हूं इस गाने का एक नया ही रूप सामने आता है । हैरत होती है कि उस ज़माने में संगीतकार जितनी मेहनत मुखड़े और अंतरे पर करते थे, उतनी ही गाने के इंटरल्‍यूड म्‍यूजिक पर भी करते थे । ऐसा नहीं होता था कि इंटरल्‍यूड के नाम पर कुछ भी ठूंस दिया जाये । यही वजह है कि आज जब हम ये गाने सुनते हैं तो हमारा अवचेतन मन इन तरंगों को गुनगुनाता है । इंटरल्‍यूड को गुनगुनाता है । है ना हैरत की बात । कितने ही ऐसे गाने हैं जिनके इंट्रो या इंटरल्‍यूड को हम शिद्दत के साथ याद करते हैं ।

इस गाने में सितार और वायलिन का इतना प्‍यारा इस्‍तेमाल किया गया है कि क्‍या
कहूं । वाह । कमाल है । सचिन दा को नमन है, बार बार नमन है । ये गाना हमारी बारिश को रंगीन बना देता है ।

लेकिन नमन तो गीतकार नीरज को भी करना होगा । इस गाने का एक-एक शब्‍द कमाल का है । ये फिल्‍मी गीत नहीं है, साहित्यिक-गीत है । ज़रा इन जुमलों पर ग़ौर कीजिए—

सबके आंगन दिया जले रे, मेरे आंगन जिया

हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया

नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्‍यासा

अब मैं जिस गाने का ज़ि‍क्र करने जा रहा हूं वो फिल्‍म ‘उसने कहा था’ से है । इस गाने में ‘झींगुर बोले चीकी-मीकी’ जैसा मीठा जुमला इस्‍तेमाल किया गया है । आपको बता दें कि शैलेन्‍द्र ने इसे लिखा और स्‍वरबद्ध किया सलिल दा ने । सलिल दा को पश्चिमी शास्‍त्रीय संगीत का जुनून की हद तक शौक़ था । और उन धुनों को वो अपने संगीत में ढाल लिया करते थे । यहां मैं रेखांकित करना चाहूंगा कि वो उन धुनों को वैसा का वैसा नहीं रखते थे, वो नकल नहीं करते थे बल्कि रचनात्‍मकता दिखाते हुए उन धुनों को ढाला करते थे ।
रिमझिम के ये प्‍यारे प्‍यारे गीत लिए –यहां सुनिए

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यहां पढिये

आहा रिमझिम के ये प्‍यारे प्‍यारे गीत लिए
आई रात सुहानी देखो प्रीत लिए
मीत मेरे सुनो ज़रा हवा कहे क्‍या
सुनो तो ज़रा
झींगुर बोले चीकी-मीकी, चीकी-मीकी ।
रिमझिम के ये ।।
खोई सी भीगी-भीगी सी रात झूमे
आंखों में सपनों की बारात झूमे
दिल की ये दुनिया आज बादलों के साथ झूमे
आहा रिमझिम के ये ।।
आ जाओ दिल में बसा लूं तुम्‍हें
नैंनों का कजरा बना लूं तुम्‍हें
ज़ालिम ज़माने की निगाहों से छुपा लूं तुम्‍हें
आहा रिमझिम के ये ।।
दिल से जो निकली है वो बात रहे
मेरा तुम्‍हारा सारी जिंदगी का साथ रहे
आहा रिमझिम के ये ।।

इस गाने को ध्‍यान से सुना आपने । ज़रा इसके इंट्रो पर ध्‍यान दीजिये, जिसमें बांसुरी की महीन तान है । जो वायलिन के उछाल से होते हुए शायद में‍डोलिन तक जा पहुंचती है । मेरे ख्‍याल से ये में‍डोलिन ही है ।

इसके बाद तलत मेहमूद और लता मंगेशकर की आवाज़ों में गाने का मुखड़ा आता है । तलत साहब की आवाज़ में तो जो नर्मी और नाज़ुकी है उसके कहने ही क्‍या । ये बारिश पर बने सबसे नाज़ुक गीतों में से एक है । दोनों ने बड़ी ही तन्‍मयता से इसे गाया है । लता दीदी की आवाज़ में एक मासूम-सी प्रेमिका का समर्पण है । और तलत की आवाज़ में है एक प्रेमी की मस्‍ती ।
इस गाने के अंतरे के बाद जो म्‍यूज़ि‍क है वो कमाल का है । हमारे परमोद भैया यानी अज़दक बता सकते हैं कि ये जैज़ है या क्‍या । वेस्‍टर्न म्‍यूज़ि‍क के बारे में अपने को ज्‍यादा कुछ नहीं पता । पर सलिल दा की ये कंपोज़ीशन हमेशा से अच्‍छी लगती रही है । ख़ासतौर पर इस गाने में बांसुरी और वायलिन की तान । और झींगुर बोले चीकी-मीकी । आप भी बताईयेगा इस गाने को सुन, देख और पढ़कर कैसा लगा आपको । रेडियोवाणी पर बारिश के गीतों का सिलसिला समय समय पर जारी रहेगा ।



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8 टिप्‍पणियां:

Vikas Shukla July 1, 2007 at 6:47 PM  

युनूसभाई,
हमे ये प्यारेसे बारिशके गीत सुनवाने और समझानेके लिये धन्यवाद. सलीलजी की और एक प्यारीसी बारिशगीतकी धुन मैने आजही फिर एक बार सुनी. झिरझिर झिरझिर बदरवा बरसे हो प्यारे प्यारे. फिल्म का पता नही. गायक शायद हेमंतदा और लताजी. इसका भी रसग्रहण कर देना.

Vikas Shukla July 1, 2007 at 7:10 PM  

Now I remember. Film of the above song is Pariwar.

Suresh Chiplunkar July 1, 2007 at 9:04 PM  

दोनों ही उम्दा गीत हैं यूनुस भाई,
पर मुझे पहला वाला पसन्द है.. बढिया प्रस्तुति

सजीव सारथी July 1, 2007 at 10:45 PM  

yun to barish ke sabhi geet acche hain par megha chaye mera bhi favourite hai ise lata di ne kya khoob gayaa hai

mamta July 2, 2007 at 12:36 AM  

यूनुस भाई आपका गानों को इतनी बारीकी से समझाने का तरीका बहुत पसंद आया।

पुराने संगीतकार आज के संगीतकारों की तरह एक ही तरह की धुन नही बनाया करते थे।

बारिश के तो इतने सारे गाने है कि बस पर हमे एस.डी.बर्मन जी का अब के बरस भेज बहुत पसंद है। कभी सुन्वाईएगा

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 2, 2007 at 4:22 AM  

युनूस भाई,
नमस्कार !
आशा है बँबई की बारिश , कुछ पल के लिये थमी होगी ~~
आहा ! हमेँ भी याद है वो बारिश का मौसम जब हम सहेलियोँ के साथ,
तेज़ गिरते पानी मेँ चलते हुए जुहु किनारे घुटनोँ भर दरिया के उछलते मौजोँ से जूझते थे -
" मेघा छाये आधी रात " गीत, मेरे पसँदीदा गीतोँ मेँ है.
वेस्टर्न धुन का भारतीय वाध्योँ के सँग सम्मिश्रण करने के पीछे एक और खास बात है -
ये गीत "शर्मीली " फिल्म से है जिसमेँ राखी जी ने दोहरी भूमिका निभायी थी.
एक बहन मोडर्न है , वेस्टर्न किस्म की - दूसरी शाँत, सुशील सर्वथा भारतीय --
ये गीत, एन दो पात्रोँ से दर्शकोँ को परिचित करवाता है और साथ साथ, कहानी की भूमिका भी बन जाता है -
ये मेरा मत है ~~ दादा सचिन देव बर्मन एक अजोड सँगीत निर्देशक रहे हैँ और नीरज जी एक बेहतरीन, रुमानी हिन्दी कवि रहे -
उस पर लतादी की स्वप्निल आवाज़ का जादू गीत को चासनी मेँ भिगो कर, यादगार बनाने मेँ रही सही कसर पूरी कर लेता है.
~~ स स्नेह,
--लावण्या

Anonymous,  July 2, 2007 at 5:44 PM  

Gaane main baarish kahan hai ?

sukhi-sukhi Rakhee aasoonoo (tears) main bheegati nazar aai.

khair... saari main Rakhee hamen bahut acchhee lagathi hai.

Aap sangeet ki bhasha acchhi tarah se jaante bhi hai aur samjhaate bhi hai jisase gaane sunane ka maza duguna ho jatha hai.

Annapurna

Vikas Shukla July 3, 2007 at 6:32 PM  

गानेमें बारिश नही है और गीतके शब्द है, "मेघा छाये आधी रात.." और गाना चित्रित किया है दिनमें !

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