Saturday, September 8, 2007

सुनिए आशा भोसले और गुलाम अली को एक साथ--आशा भोसले के जन्‍मदिन पर विशेष



आज आशा भोसले का चौहत्‍तरवां जन्‍मदिन है ।

आशा भोसले होने का मतलब है लंबा संघर्ष ।

जब बड़ी बहन के रूप में लता मंगेशकर जैसी शख्सियत फिल्‍म-संगीत-संसार में त‍हलका मच रही हों,

जब करियर के हर मोड़ पर आपकी तुलना अपनी बड़ी बहन से की जाए,

जब लता मंगेशकर की सादगी और कलात्‍मकता को श्रेष्‍ठ बताया जाये और आशा की प्रयोगधर्मिता को कम करके आंका जाये,

जब आशा को केवल कैबेरे या दोयम दर्जे के गाने के लिए ही उपयुक्‍त माना जाये,

जब निजी जिंदगी में बहुत कम उम्र में शोषण झेलना पड़े, मां बनना पड़े और बच्‍चों की जिम्‍मेदारी खुद अपने कंधों पर उठानी पड़े
जब आप चौहत्‍तर साल की जिंदगी में अपनी बड़ी दीदी की छाया से निकलकर अपनी एक अलग और ठोस पहचान कायम करें

तो वाक़ई साबित हो जाता है कि आशा भोसले संघर्ष का दूसरा नाम हैं ।

आशा भोसले ने हर तरह के गीत गाकर अपने आप को साबित किया है । और आज इस पोस्‍ट में मैं आपको आशा भोसले की दो बेमिसाल रचनाएं सुनवा रहा हूं । ये इसलिए बेमिसाल हैं कि इन्‍हें आशा भोसले ने गुलाम अली के साथ गाया है । जी हां संगीत के क़द्रदानों को वो अलबम याद होगा जिसमें आशा भोसले ने कुछ रचनाएं गुलाम अली के साथ गाईं थीं और कुछ दोनों कलाकारों के एकल गीत थे । मुझे इस अलबम की सबसे अनोखी बात ये लगती है कि इसके ज़रिए हम दो कालजयी कलाकारों को एक साथ सुन पाते हैं । और वो भी पूरी हार्मनी में । ना तो कोई आक्रामकता, ना कोई मुक़ाबला, ना कोई होड़,
आशा भोसले ने ग़ज़लें कम गायीं हैं । और जिस तरह के सेन्‍सुअस गीत ज्‍यादातर वो गाती रही हैं, वहां से बाहर निकलकर ग़ज़लों या ग़ैरफिल्‍मी गीतों की ख़ामोश कलात्‍मक दुनिया में आना उनके लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण और संतोषजनक रहा होगा । ये दोनों रचनाएं पढ़ने में भले सामान्‍य या औसत लगें लेकिन इनको सुनना एक दिव्‍य अनुभव है ।

तो आईये आशा भोसले की विराट प्रतिभा को सलाम करें और उन्‍हें दें जन्‍मदिन की बधाई ।

ये है पहला गीत--नैना तोसे लागे ।

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नैना तोसे लागे,सारी रैना जागे ।
तूने चुराई मोरी निंदिया, तू ही चैन चुराए ।।

मेरी सांसों में लहराए अंग में खुशबू घोले
मीठा मीठा दर्द जगाए नस नस में तू डोले
सांझ सबेरे होंठों पर भी नाम तेरा ही आए ।। नैना तोसे ।।

सावन मास की धूप सा गोरी तेरा रूप सलोना
एक झलक में कर गया रोशन मन का कोना कोना
रंग हज़ारों तूने मेरे जीवन में बिखराए ।। नैना तोसे ।।

मस्‍त हवाएं,शाम सुहानी,भीगी रूत के मेले
सबको तेरी आस हो जैसे सब हैं आज अकेले
आंगन मेरी तन्‍हाई का तुझ बिन कौन सजाए ।। नैना तोसे ।।

तोड़के रस्‍मों की ज़ंजीरें आ दोनों मिल जाएं
सपने महकें, आशाओं के फूल सभी खिल जाएं
जो दोनों के बीच हैं, पल में वो दूरी मिट जाए ।। नैना तोसे



ये नासिर फराज़ की ग़ज़ल है । सुनिए और पढि़ये ।
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गये दिनों का सुराग लेकर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान गया वो ।।

बस एक मोती सी छब दिखाकर
बस एक मीठी सी धुन सुनाकर
सितारा-ए-शाम बनकर आया
बरंगे-ख्‍वाब-सेहर गया वो ।। गये दिनों का ।।

ना अब वो यादों का चढ़ता दरिया
ना फुरसतों की उदास बरखा
यूं ही जरा सी कसक है दिल में
जो ज़ख्‍़म गहरा था, भर गया वो ।। गये दिनों का ।।

वो हिज्र की रात का सितारा
वो हमनफ़स-हमसुख़न हमारा
सदा रहे उसका नाम प्‍यारा
सुना है कल रात मर गया वो ।। गये दिनों का ।।

वो रात का बेनवां मुसाफिर
वो तेरा शायर वो तेरा नासिर
तेरी गली तक तो हमने देखा था
फिर ना जाने किधर गया वो ।। गये दिनों का ।।


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4 टिप्‍पणियां:

PD September 8, 2007 at 7:38 PM  

आपने तबियत खुश कर दिया युनुस जी..
दिन बन गया आज का मेरा..
बहुत दिनों से ये गाने मैं ढूंढ रहा था..

Udan Tashtari September 8, 2007 at 11:45 PM  

आशा जी को जन्म दिन की शुभकामनायें.

बहुत खूब प्रस्तुति रही यह भी.बधाई.

Neeraj Rohilla September 9, 2007 at 10:18 AM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति,
बधाई ।
आप गीता दत्तजी की जीवन और संगीत यात्रा के बारे में भी कभी रेडियोवाणी पर लिखिये ।

वैसे आज ही मैने सुरैयाजी पर एक प्रविष्टी लिखी है और कुछ गीत भी सुनवायें हैं, ध्यान दीजियेगा ।

साभार,

Vikas Shukla September 12, 2007 at 2:52 AM  

युनूसभाई,
जब ये अल्बम रिलीज हुवा तबसे मेरे पास है. मराठी के महान शायर मरहूम सुरेश भट जी ने महाराष्ट्र टाइम्स मे एक लंबा आर्टिकल लिखकर इस अल्बम की शायरी और संगीत की खूबसूरती विवरण की थी तथा ऐसी भविष्यवाणी की थी की ये अल्बम उस दशक का सबसे ज्यादा यशस्वी अल्बम सिद्ध होगा. हालाकी वैसा हुवा नही. लेकिन एक यादगार अल्बम माना जाता है.

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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