Tuesday, March 4, 2008

फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो, तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

रेडियोवाणी पर हम हमेशा कहते रहे हैं कि हम गुलज़ार के शैदाईयों में से हैं, गुलज़ार की रचनाओं पर हमारी पैनी नज़र रहती है । पिछले दिनों जब टाईम्‍स ऑफ इंडिया ने lead india का आयोजन किया था तो इसके विज्ञापनों पर अपनी भी नज़र गयी थी । गुलज़ार इनमें नज़र आए थे । पर ध्‍यान ज्‍यादा नहीं दिया था । अभी तीन दिन पहले हमारी एक मित्र डॉ. वृंदा देशमुख ने एक लिंक भेजा और कहा कि ये वीडियो देखिए.....ज़ाहिर है कि फ़ौरन देखा ।

वीडियो इतना असरदार था कि मन में कई सवाल उठने लगे । सड़क पर पेड़ गिर गया है । ट्रैफिक जाम है और लोग बग़लें झांक रहे हैं । फिर आगे क्‍या होता है खुद देखिए वीडियो में । बहरहाल.....सवाल उठा कि आखि़र ये गीत किसने लिखा होगा, फौरन यू-ट्यूब पर जा पहुंचे और 'लीड इंडिया' की बाक़ी फिल्‍में खोजीं । तो पता चला कि ये तो अपने गुलज़ारए बाबू हैं । लीड इंडिया कैम्‍पेन में इस गीत को 'new anthem' कहा गया था । ज़रा देखिए कि कितने 'प्रोवोकिंग' हैं ये वीडियो । और कितना प्रेरक है ये गीत ।

शंकर अहसान लॉय इस तरह के गीतों को तैयार करने में बड़े माहिर हैं ।

फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

लगाओ हाथ के सूरज सुबह निकाला करे । 

हथेलियों में भरे धूप और उछाला करे ।

उफ़क़ पे पांव रखो और चलो अकड़ के चलो ।

फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

हिंदुस्‍तान चले ।।

  

कहिए कैसी रही दोस्‍तो ।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

11 टिप्‍पणियां:

Parul March 4, 2008 at 3:54 PM  

फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो…वाह! पोस्ट मन भायी……

जोशिम March 4, 2008 at 3:59 PM  

क्या ... यार.... सवेरे सवेरे रुन्धाते हो - बहुत सही - पहले पूरा नहीं देखा सुना था

Tarun March 4, 2008 at 4:39 PM  

jabardast rahi, bahut bariya hai

आभा March 4, 2008 at 6:19 PM  

गुलजार से गुलजार ही रहेगा .....

Sanjeet Tripathi March 4, 2008 at 6:58 PM  

पहले देखा,पढ़ा और सुना है!

बहुत बढ़िया लिखा है गुलजार साहब नें और उतना ही बढ़िया इसका फिल्मांकन हुआ है!!!

कंचन सिंह चौहान March 4, 2008 at 6:58 PM  

hmmm...add to mujhe bhi bahut pasand hai..achanak click karne vali cheez hai...bas galat ye hua ki apne man se hi ise prasun joshi ki kriti maan rahe the..he he shukriya galatfahami dur karne ka.

डॉ. अजीत कुमार March 4, 2008 at 8:08 PM  

किसी न किसी को आख़िर वो क़दम उठाना ही पड़ेगा जिससे ये जड़ता दूर हो. शायद तभी हजारों लाखों क़दम हमारे साथ आ मिलेंगे. जाहिर है वही जागती पीढ़ी, दुनिया की जड़ता को धीरे-धीरे पहचानती पीढ़ी ही एक सकारात्मक कदम उठा सकती है.
कितना positive कांसेप्ट है ये गुलज़ार साहब का. और इसका फिल्मांकन... एक-एक फ्रेम मानो एक - एक कडी जोड़ता हुआ.... अद्भुत.
डॉ वृंदा जी को यह लिंक भेजने के लिए और यूनुस भाई आपको हमें एक सत्यता से परिचित कराने का धन्यवाद.

भोजवानी March 4, 2008 at 8:50 PM  

कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री

Poonam March 4, 2008 at 10:34 PM  

इस गीत में गुलज़ार और शंकर एह्सान लाय ने लीड इंडिया का "एसेंन्स" 'कैपचर" कर लिया है.आभार इसे सुनवाने का.

anitakumar March 5, 2008 at 12:51 AM  

टी वी पर देखा था और हमने भी यही सोचा था कि प्रसून्न जोशी का लिखा है, गलतफ़हमी दूर करने का शुक्रिया, बहुत ही ओजपूर्ण है

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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