Sunday, May 25, 2008

ये जंग है जंगे-आज़ादी- मख़दूम मोहिउद्दीन की रचना समवेत स्‍वरों में ।

रेडियोवाणी पर मैंने बहुत पहले मख़दूम मोहीउद्दीन पर एक पूरी श्रृंखला की थी । मख़दूम हिंदुस्‍तान के अज़ीम शायर हैं । उनके बारे में इस सीरीज़ में बहुत कुछ लिखा जा चुका है । साथी चिट्ठाकार रियाज़ ने अपने चिट्ठे ढाई आखर पर मख़दूम की ये रचना प्रस्‍तुत की थी । उनका लिखा आप यहां पढ़ सकते हैं । आज बस आपको मख़दूम की ये क्रांतिकारी रचना सुनवानी है । मुझे ना तो इसके गायक-वृंद का पता है और ना ही इसके संगीतकार का । पर इसे पिछले हफ्ते भर से सुन रहा था और अपने ज़ेहन में उतार रहा था । अब ये आपकी नज़र है ।

 

ये जंगे है जंगे आज़ादी, आज़ादी के परचम के तले

हम हिंद के रहने वालों की महक़ूमों की मज़दूरों की   महकूम-सताए हुए लोग

आज़ादी के मतवालों की,दहक़ानों* की मज़दूरों की     *भट्टी चलाने वाले

सारा संसार हमारा है

पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन

हम अफ़रंगी हम अमरीकी               अफरंगी-फिरंगी

हम चीनी जावा जाने वतन

हम सुर्ख़ सिपाही ज़ुल्म शिकन          जुल्‍म-शिकन: जुल्‍मों को मिटाने वाले

आहन पयकर फ़ौलाद बदन             आहन-पयकर: लोहे के बदन वाले

वह जंग ही क्या वह अमन ही क्या

दुश्मन जिसमें ताराज़ न हो                   

वह दुनिया दुनिया क्या होगी

जिस दुनिया में स्वराज न हो

वह आज़ादी आज़ादी क्या

मज़दूर का जिसमें राज न हो

लो सुर्ख़ सवेरा आता है आज़ादी का आज़ादी का

गुलनार तराना गाता है आज़ादी का आज़ादी का

देखो परचम लहराता है आज़ादी का आज़ादी का ।।

मख़दूम मोहिउद्दीन पर केंद्रित श्रृंखला की सारी कडि़यां पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए ।

अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्‍ट की जानकारी

9 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग May 25, 2008 at 7:32 PM  

bahut badhiya ,pichle kai dino se ek hindi magzine me bhi makhdoom par jauki sahab kuch likh rahe hai.....

Neeraj Rohilla May 25, 2008 at 7:52 PM  

वाह यूनुस जी,

बचपन के याद ताजा हो गयी जब कम सबसे आगे खड़े होकर देश भक्ति के गीत गाया करते थे | अब और भी पुराने गीत खोजकर सुनेंगे |

आप ऐसे ही खजाना लुटाते रहिये,

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi May 25, 2008 at 10:12 PM  

बेमिसाल गीत के लिए धन्यवाद। मेरे कलेक्शन में शामिल।

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey May 25, 2008 at 10:16 PM  

मखदूम का लेखन सशक्त है। मजदूरों में तो जोश जगा देता होगा।

जोशिम May 25, 2008 at 11:08 PM  

वाह - कहाँ से ढूंढ लाये गीत राज - खूब

मीत May 25, 2008 at 11:52 PM  

कमाल की प्रस्तुति.

महेन्द्र मिश्र May 26, 2008 at 12:05 AM  

राष्ट्रिय देशभक्ति से पूर्ण रचना के धन्यवाद

sanjay patel May 26, 2008 at 3:16 AM  

युनूस भाई ये बिला शक आकाशवाणी के विभिन्न स्टेशनों में से किसी एक का किया कारनामा ही है. दर असल आकाशवाणी के सुनहरे दिनों में गीत,क़ौमी तरानों और लोकगीतों को लेकर बेहतरीन काम हुआ है. इन प्रयासों से कई आवाज़ों को काम मिला,माइक्रोफ़ोन पर गाने का शऊर आया और कई स्टाफ़ संगीतकारों का हुनर ज़माने तक पहुँचा. अब हालत ख़राब हैं...सुगम संगीत किसे कहेंगे उसे जो जगजीतसिंह,पंकज उधास गा रहे हैं या उसे जो डॉ.पलाश सेन,दलेर मेहंदी या शुभा मुदलग सुना रहीं हैं . आकाशवाणी के इस बुरे दौर का सबसे बड़ा नुकसान यही हुआ कि मीरा,कवीर,सूर,इक़बाल,ग़ालिब,और मीर जैसे महान रचनाकारों को नई और अपने अंचल की सौधी आवाज़ों में सुनना ही मुहाल हो गया है.शुक्र है विविध भारती वंदनवार के अंत में रोज़ एक राष्ट्र-भक्ति रचना का प्रसारण कर रही है वरना इन गीतों को गाने की रस्म तो हमारे स्कूल ही पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी पर पूरा कर ही रहे हैं.

Ghost Buster May 26, 2008 at 3:43 AM  

यूनुस भाई, फायरफॉक्स को वरजन ३ से अपडेट करने का सबसे बड़ा लाभ हमें ये हुआ कि आपके ब्लॉग पर निर्भीक होकर घूमना सम्भव हो गया. पता नहीं क्या बात है कि इससे पहले जब भी यहाँ आए (फायर फॉक्स २ में या किसी भी अन्य ब्राऊजर में), तो या तो प्रोग्राम क्रेश हुआ या विंडोस ही रीस्टार्ट हो गया. ये एकदम तयशुदा बात थी. इसलिए अब तक आपके यहाँ आने से कतराते रहे. कभी कोई कमेन्ट भी नहीं दे सके. हालांकि ये हमारे पसंदीदा ब्लौग्स में से एक है. संगीत के प्रति दीवानगी अब भी हममें जबरदस्त है और आपका ब्लॉग तो समुन्दर है ही.

क्रेश का कारण समझ में नहीं आया. हो सकता है कि यहाँ विजेटस की अधिकता से ऐसा होता रहा हो. इसके अलावा चोखेर-बाली पर भी यही समस्या थी, वहां पूरी तरह अब भी ख़त्म नहीं हुई है.

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संगीत का ब्‍लॉग । मुख्‍य-रूप से हिंदी-संगीत । संगीत दिलों को जोड़ता है । संगीत की कोई सरहद नहीं होती ।

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