देव आनंद के नाम--वहां कौन है तेरा मुसाफिर जायेगा कहां । जन्मदिन पर विशेष ।
एक अभिनेता के तौर पर मुझे देव आनंद अच्छे लगते हैं ।
एक निर्माता निर्देशक के तौर पर मुझे देव आनंद 'हरे रामा हरे कृष्णा तक अच्छे लगते रहे थे । उसके बाद वो डिफ्यूज़ हो गए ।
लेकिन देव आनंद की कर्मठता और जिद कमाल की है । आज उनका 85 वां जन्मदिन है । आजकल वो अपनी नई फिल्म 'चार्जशीट' पर काम कर रहे हैं ।
देव आनंद शायद हमारे समाज को सिखा रहे हैं कि लगातार असफलता के बावजूद कैसे शिद्दत के साथ अपना काम किया जा सकता है । देव आनंद सिखा रहे हैं कि रिटायरमेन्ट की उम्र तक पहुंचते पहुंचते शिथिल हो जाने वाले मन को कसकर चुस्त दुरूस्त कैसे रखा जा सकता है । और जिस उम्र में दुनिया 'आराम' करती है उस उम्र में कैसे कर्मठता के रास्ते पर चला जा सकता है ।
देव आनंद की जिंदगी नाटकीयता भरी रही है ।
सुरैया से अथाह प्रेम था उन्हें । चर्चगेट स्टेशन के नज़दीक सुरैया के घर के सामने एक पेड़ के नीचे बारिश में भीगते हुए उन्होंने सुरैया के गैलेरी में आने का इंतज़ार किया था । एक मित्र के ज़रिए हीरे की अंगूठी भेजी थी जिसे सुरैया ने स्वीकार कर लिया था । पर सुरैया की नानी और सदियों से चली आ रही धर्म की दीवार ने देव और सुरैया को जीवन भर के लिए अलग अलग कर दिया था ।
आज देव आनंद सुरैया का जिक्र थोड़ी तल्खी से करते हैं, उनका कहना है कि सुरैया में साहस नहीं था । कभी कभी मैं सोचता हूं कि किस तरह का खालीपन महसूस होता होगा उन्हें भीतर से । जब सुरैया नहीं रहीं तो कैसा लगा होगा देव को ।
सुरैया--करीब तीस साल की उम्र में सिनेमा को अलविदा कहने वाली एक नायाब नायिका । उसके बाद धीरे धीरे अपनों से दूर होने वाली एक ज़हीन लड़की । जिसे अंग्रेजी लिट्रेचर से प्यार था । जिसे जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों से प्यार था । सुरैया को हॉलीवुड के अभिनेता ग्रेगरी पैक अच्छे लगते थे । जब देव आनंद को ये बात पता चली तो उम्र भर के लिए उन्होंने ग्रेगरी पैक की अदाओं को अपनी अदाएं बना लिया । जो सुरैया को अच्छा लगा देव आनंद ने उसे अपना लिया ।
कल्पना कीजिए कि तीस बरस से आगे की बाकी उम्र सुरैया ने अपने घर में कैद रहकर बिताई । बाहर की दुनिया से खुद को काटकर किताबों में डूबी रहीं । खूब सज धज कर तैयार होतीं और घर में बनी रहतीं । कल्पना कीजिए कि उम्रदराज़ होने के बाद भी वो अपने सौंदर्य के ढलने को स्वीकार नहीं कर पाईं । वो उसी तरह से मेकअप करके गहने पहनकर घर पर रहतीं, पूरी नफ़ासत के साथ ।
देव आनंद को जब दादा साहेब फालके अवॉर्ड मिला था तो मेरी उनसे बात हुई थी फोन पर । उन्होंने जिस तटस्थता के साथ इस अवॉर्ड को स्वीकार किया था, वो मुझे हैरतअंगेज़ लगती है । उन्होंने क़तई स्वीकार नहीं किया कि ये अवॉर्ड उन्हें देर से मिला है । उन्हें इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था । देव आनंद की शख्सियत वाक़ई अद्भुत है ।
हम उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रहे हैं ।
गाईड फिल्म का ये गीत उनके जन्मदिन पर-- जो एक साथ कई स्तरों पर अपनी बात कहता है ।
वहां कौन है तेरा मुसाफिर जायेगा कहां
दम ले ले घड़ी भर ये छैंया पाएगा कहां
बीत गये दिन, प्यार के पल छिन
सपना बनी वो रातें
भूल गये वो, तू भी भुला दे
प्यार की वो मुलाक़ातें
सब दूर अंधेरा, मुसाफिर जाएगा कहां ।।
कोई भी तेरी राह ना देखे, नैन बिछाए ना कोई
दर्द से तेरे कोई ना तड़पा, आंख किसी की ना रोई
कहे किसको तू मेरा, मुसाफिर जाएगा कहां ।।
कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी
पानी में लिखी कहानी
है सबकी देखी, है सबकी जानी
हाथ किसी के ना आई,
कुछ तेरा ना मेरा, मुसाफिर जायेगा कहां ।।
दम ले ले घड़ी भर ये छैंया पायेगा कहां ।।
आज पार्श्वगायक हेमंत कुमार की भी बरसी है । रेडियोवाणी कल उन्हें नमन करेगा ।
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20 टिप्पणियां:
बर्मन दा के मधुर गीतों में से यह मेरा पसन्दीदा है, शुक्रिया यूनुस भाई…
इतना खूबसूरत गीत सुनवाने का शुक्रिया ।
देव साहब को जन्मदिन मुबारक हो ।
अब हमारी सुनिए.
एक अभिनेता के तौर पर देव आनंद अपने समय में एवरेज थे, बाद में बिलो एवरेज. निर्माता के रूप में बढ़िया और निर्देशक के रूप में एब्सोल्यूटली अन झेलेबल.
जिसे आप कर्मठता और जिद कह रहे हैं, उसे में उनकी मूढ़ता और जिद कहता हूँ. वे हमारे समाज को सिखा रहे हैं कि गलतियों से ना सीखने वाला इंसान किस तरह गलतियों को दुहराता है.
लेकिन जीवन के प्रति उनका उत्साह लाजवाब है. उन्हें जन्मदिन की बधाई.
ये गीत तो शानदार है ही. लेकिन बर्मन दा और शैलेन्द्र का जिक्र किए बिना बात पूरी नहीं होगी. हेमंत कुमार पर पोस्ट की प्रतीक्षा है.
लेकिन देव साहब की संगीत की समझ की दाद देनी होगी. नवकेतन बैनर की सभी फिल्मों का संगीत हमेशा लाजवाब रहा. एस डी बर्मन से लेकर जतिन-ललित तक से कमाल का काम लिया उन्होंने.
बहुत-बहुत शुक्रिया युनूस जी इस पोस्ट के लिए !
मैनें अपनी ज़िन्दगी की पहली फ़िल्म देखी थी ज्वैल थीफ़। ज़ाहिर है यह सस्पैंस और थ्रिल से भरी फ़िल्म उस उमर में तो समझ में नहीं आई पर देव आनन्द ने एक अमिट छाप छोड़ी मेरे मन पर। पता नहीं क्यों आज भी मुझे उनकी सभी फ़िल्में और गाने अच्छे लगते है और उनके ख़िलाफ़ एक शब्द भी पसन्द नहीं।
sahi kaha Yunus Ji kitna ADhra lagta hoga jivan Dev sahab ko Suraiya ke bina..! ek aisi personality jiske upar us dashak ki rudhiyo.n ke baavazud lakho.n qurbaan ho.n...! vo person kisi ko is shiddat se chahe ki apni har cheez apni har aadat uske ko uski pasand ke anusar badal de...uar chahe kisi bhi majboori ke tahat vo shakhsa hi badal jaye, kitni reetee hui si lgti hogi jindagi, Dev ji ke janmadin par kafi samvedanae.n jaga di unhe le kar... ! unki Jeevatata ko salaam
aur haa.n ye geet mujhe bahut pasanda hai.
बेहतरीन पोस्ट लिखी है आपने देव साहब पर ..गाना बहुत पसंद है यह ..शुक्रिया
ये तो पसंदीदा गीत है... मुझे लग रहा है की आपने एक बार और इसे सुनाया था, रेडियोवाणी पर !
जीवन दर्शन और कबीर की तरह सूफियाने अंदाज़ को बयां करता यह गीत बड़ा ही मार्मिक और अतुलनीय है। शुक्रिया युनुस भाई।
श्वेत श्याम फिल्मों वाले देवानंद मुझे बहुत पसंद हैं. मुझे लगता है सुरैयाजी और देव साहब दोनों ने अपने तरीके से ढलती उम्र को स्वीकार नहीं किया. जन्मदिन पर उनको बधाई .
यूनुस जी बहुत बहुत धन्यवाद! यह सदाबहार गीत सुनवाने के लिए।
bahut acchhi post!!!! kuch nayi baatey saamney aayin...geet sadaa se pasand hai...
आपने यह गीत सुनाया/याद दिलाया। बहुत धन्यवाद।
बड़ा अच्छा लगा युनुस भाई .... The post .. the effect.
Yunusbhai
Great info with nice pictures.
Shall wait for Hemantda.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
वाह वाह मजा आ गया वैसे भूत फोड़क (घोस्ट बस्टर) भाई ठीक कह रहे है, यह गीत एस डी बर्मन की ज्यादा याद दिलाता है ..
Badi achchi jaankari di aapne Dev ji ke is pehle prem prasang ke bare mein.
Mujhe bhi yahi lagta hai ki Hare Rama Hare Krishna ke baad dev sahab kuch khas batour nirdeshak kar nahin paye.
Ye geet to humesha se pasandeeda raha hi hai.
सदा की तरह आपकी मशक्कत झलकती है इस पोस्ट में भी ... और एक ज़बरदस्त सेन्सिटिविटी भी. बधाई!
https://www.youtube.com/watch?v=dxzWgB_VDDA
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