Monday, September 1, 2008

मुकेश के स्‍वर में रामचरित-मानस का एक अंश ।।

रामचरित-मानस हम भारतीयों की सुबह का अटूट हिस्‍सा रही है । मुझे याद है कि भोपाल में बचपन के दिनों में हम आकाशवाणी पर 'रामचरित मानस गान' सुना करते थे । ये आकाशवाणी के भोपाल केंद्र की प्रस्‍तुति थी । राम किशन चंदेश्री और साथियों की आवाज़ें हुआ करती थीं इसमें । अभी कुछ दिनों पहले आशीष गुप्‍ता नामक सज्‍जन ने ई-मेल पर इसी रामचरित मानस का ब्‍यौरा मांगा और पूछा कि क्‍या वो उपलब्‍ध हो सकता है । आशीष का बचपन भी भोपाल में बीता है और उनके बचपन के संस्‍कारों में भी रेडियो पर गूंजती 'रामचरित मानस गान' की स्‍वरलहरियां शामिल थीं ।

                                  तुलसी दास

शायद अब आकाशवाणी पर रामचरित मानस गान नहीं आता । लेकिन बचपन की वो यादें जब तक ताज़ा हो जाती हैं । संगीत के संस्‍कार जब बन रहे थे तभी हमें पता चला कि मुकेश ने 'रामचरित मानस' को पूरा का पूरा गाया है । उसके बाद हमारी खोजबीन शुरू हुई । और कुछ खास दिक्‍कत नहीं आई । आज भी मुकेश की गाई 'तुलसी रामायण' की सीडीज़ आसानी से उपलब्‍ध हैं । अगर आप इच्‍छुक हैं तो यहां हमारा सीडी पर और यहां इंडिया क्‍लब पर देखिए । या फिर अपने स्‍थानीय म्‍यूजिक स्‍टोर पर खोजिए । बहरहाल बात चल रही थी 'तुलसी रामायण' की ।

मुकेश को 'तुलसी रामायण' का सस्‍वर पाठ बहुत प्रिय था । वे हमेशा अपना हारमोनियम लेकर 'रामचरित' का गायन किया करते थे । और उनका ये प्रेम इन सीडीज़ में झलकता भी है । भजन गाने के लिए जो दीनता, विकलता और समर्पण चाहिए वो मुकेश की आवाज़ में खूब है । वरना कुछ ऐसे इन्‍स्‍टेन्‍ट गायक हैं, जो फैक्‍ट्री की तरह होते हैं । भजन भी गवाईये, पॉप भी गवाईये और प्‍यार-मुहबबत के गाने भी । ख़ैर । आज मैं आपके लिए लेकर आया हूं मुकेश के स्‍वर में 'बजरंग-बाण' । वैसे 'हनुमान-चालीसा' भी मुकेश ने गाया है । और कई अन्‍य गायकों ने भी गाया है ।  लेकिन 'बजरंग-बाण' सुनकर मन को बड़ी शांति मिलती है । आपको ये भी बता दें कि ये रचना कुल साढ़े दस मिनिट की है ।

डाउनलोड कड़ी के लिए क्लिक करें ।

निश्चय प्रेम प्रतिति ते , विनय करें सन्मान ।
तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करें हनुमान ॥
जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लीजै प्रभु विनय हमारी ।
जन के काज विलंब न कीजै , आतुर दौरि महासुख दीजै ॥
जैसे कुदि सिन्धु के पारा , सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाय लंकिनी रोका , मारेहु लात गई सुरलोका ॥
जाय विभीषन को सुख दीन्हा , सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिन्धु मह बोरा , अति आतुर जमकातर तोरा ॥
अक्षयकुमार मारि संहारा , लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई , जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी , किरपा करहु उर अंतरयामी ॥
जय जय लखन प्राण के दाता , आतुर ह्वै दुख करहु निपाता ॥
जय हनुमान जयति बलसागर , सुर समुह समरथ भटनागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले , बैरिहि मारु वज्र के कीले ॥
ॐ हीं हीं हीं हनुमंत कपीसा , ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ॥
जय अंजनिकुमार बलवंता , शंकरसुवन वीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल कुल घालक , राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥
अग्नि बेताल काल मारिमर , भूत प्रेत पिशाच निशाचर ॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की , राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
सत्य होहु हरि शपथ पाई कै , रामदुत धरु मारु धाई कै ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा , दुख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा , नहि जानत कछु दास तुम्हारा ॥
बन उपवन मग गिरि ग्रह माहीं , तुम्हरें बल हौं डरपत नाहीं ॥
जनकसुता हरिदास कहावौं , ताकी सपथ विलम्ब न लावौं ॥
जय जय जय धुनि होत अकासा , सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥
चरन पकरि कर जोरि मनावौं , यहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥
उठ उठ चलु तोहि राम दोहाई , पांय परौं कर जोरि मनाई ॥
ॐ चम चम चम चम चपल चलंता , ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल , ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ॥
अपने जन को तुरंत उबारौं , सुमिरत होय अनंद हमारौं ॥
यह बजरंग बाण जेहि मार्रै , ताहि कहौ फ़िरि कवन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग बाण की , हनुमंत रक्षा करै प्राण की ॥
यह बजरंग बाण जो जापै , तासो भूत प्रेत सब कांपै ॥
धूप देय जो जपै हमेशा , ताके तन नहि रहे कलेशा ॥

उर प्रतिति द्रुढ सरन ह्वै , पाठ करै धरि ध्यान |
बाधा सब हर करै सब , काम सफल हनुमान ||

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24 टिप्‍पणियां:

mamta September 1, 2008 at 6:33 PM  

सुबह-सुबह की बहुत ही बढ़िया शुरुआत ।
आनंद आ गया।

जितेन्द़ भगत September 1, 2008 at 8:12 PM  

शुक्रि‍या युनूस भाई।

अभिषेक ओझा September 1, 2008 at 8:16 PM  

मुकेश के रामचरितमानस का mp3 मेरे पास पूरा पड़ा है, लेकिन घर पर. शुक्रिया इसे सुनवाने के लिए... लताजी की आवाज में है क्या कहीं?

RA September 1, 2008 at 9:21 PM  

यूनुस,
बजरंगबाण को पढ़ने से कष्ट निवारण होता है,ऐसा सुना है|
मुकेश की आवाज़ में रामचरितमानस के पाठ के ख्याल से बचपन की यादें ताज़ा हो गयीं |स्मृति में आते हैं वो LP records और उनका खूबसूरत आर्ट वर्क जो इस ज़माने के सी डी आवरण से नदारद है |

Parul September 1, 2008 at 10:26 PM  

bahut badhiyaa post..merey pass sundar kand hai..soch rahi thii post karuun...aapney ye sunvaya aabhaar

safat alam September 1, 2008 at 11:33 PM  

युनूस जी! शायद आप मुसलमान हैं और रमज़ान आ रहा है. जिसमें स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं, नरक के द्वार बन्द कर दिए जाते हैं और पुण्य का प्रत्युपकार भी बढ़ा दिया जाता है इस अवसर पर मैं कहना यह चाहता हूँ कि मुस्लिम का अर्थ है अल्लाह के समक्ष स्वयं को समर्पित कर देना। अतः आप के लिए यह कदापि वैध नहीं कि आप अपने ब्लाग में इस प्रकार के लेख लिखें जिसमें अल्लाह के अतिरिक्त किसी दूसरे का गुण गाया गया हो, यही तो शिर्क है जिसके सम्बन्ध में कुरआन कहता है कि ( अल्लाह अपने साथ भागीदार ठहराने को क्षमा नहीं करता उसके अतिरिक्त जितनें गुनाहं हैं यदि चाहे तो क्षमा कर देगा)
युनूस भाई ! हमें गैर-मुस्लिम भाईयों के लिए आदर्श बनना चाहिए ताकि वह अपने वास्तविक पूज्य को पहचान सकें न कि हम स्वयं उनके पूज्यों की प्रशंसा करने लगें। आप जानते हैं कि कभी हमारे पूर्वज भी गैरमुस्लिम ते पर अल्लाह का बहुत बड़ा कृपा हुआ कि उसने हमें मुसलमान घराने में पैदा फरमाया अब हमारा कर्तव्य बनता हैं कि हम यह संदेश अपने ग़ैर-मुस्लिम भाइयों तक पहुंचाएं क्योंकि वह अपने वास्तविक सृष्टिकर्ता को पहचान नहीं रहे हैं।
युनूस भाई ! आपको अवश्य कलमा तय्येबा याग होगा जिसे एक व्यक्ति अपने हृदय से पढ़ लेता है तो मुसलमान बन जाता है। जानते हैं उसका अर्थ क्या होता है ? उसका अर्थ होता है ( मैं इस बात का साक्षी हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं तथा मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के अन्तिम संदेष्टा हैं ) अर्थात मैं केवल एक अल्लाह की पूजा करूंगा जो प्यारे नबी मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुए नियम के अनुसार होगी।
युनूस भाई ! हमें अपना भाई समझें जो अपने भाई की भलाई चाहता है। कृपया हमारी बात पर चिंतन मनन करें और इस ब्लौग का दर्शन अवश्य करें । http://safat.ipcblogger.com/blog/
अल्लाह की हम सब पर दया हो

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi September 2, 2008 at 1:59 AM  

@safat alam taimi

बड़े भाई। आप की राय सर माथे। आप ने सही कहा कि खुदा के अलावा किसी की इबादत ना करें। पर हम तो यह समझते हैं कि खुदा के सिवा जहाँ में कोई अस्तित्व ही विद्यमान नहीं है, जिस का भी अस्तित्व है वह खुदा/अल्लाह/ईश्वर/गॉड/सत् है। हम खुदा का ध्यान कर जिस किसी की भी अर्चना करते हैं, वह सब खुदा की ही इबादत है। खुदा कहाँ नहीं है? कौन खुदा में नहीं है? हम सब जो भी है जीव निर्जीव सभी खुदा की हद में हैं।
हम तो खुदा के अलावा किसी का अस्तित्व ही नहीं मानते। फिर किसी दूसरे की इबादत कैसे कर सकते हैं। दुनियाँ में सभी नाम खुदा के हैं। किस का लें और किस का न लें?

यूनुस भाई!
मैं बहुत दिनों से पूरी रामचरित मानस की रिकॉर्डिंग की तलाश में हूँ। आकाशवाणी जिसे रोज सुबह या शाम प्रसारित करती थी। मैं ने पूरे साल भर तक उसे अपने रेडियों से कैसट पर रिकार्ड किया था। पर समय के साथ बहुत सी कैसेट खराब हो गई हैं। उस में अनेक गायकों के स्वर थे और संक्षेप में टीका, प्रसंग भी सुनाया जाता था। क्या उस की या कोई और संपूर्ण रिकार्डिंग की कम्प्यूटर या सीडी में संग्रह के लायक मिल सकती है? हो तो बताएँ। या आप उपलब्ध करवा सकते हों तो कराएँ। मुकेश वाली रिकार्डिंग संक्षिप्त है, पूरी नहीं।

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi September 2, 2008 at 2:00 AM  

@safat alam taimi

बड़े भाई। आप की राय सर माथे। आप ने सही कहा कि खुदा के अलावा किसी की इबादत ना करें। पर हम तो यह समझते हैं कि खुदा के सिवा जहाँ में कोई अस्तित्व ही विद्यमान नहीं है, जिस का भी अस्तित्व है वह खुदा/अल्लाह/ईश्वर/गॉड/सत् है। हम खुदा का ध्यान कर जिस किसी की भी अर्चना करते हैं, वह सब खुदा की ही इबादत है। खुदा कहाँ नहीं है? कौन खुदा में नहीं है? हम सब जो भी है जीव निर्जीव सभी खुदा की हद में हैं।
हम तो खुदा के अलावा किसी का अस्तित्व ही नहीं मानते। फिर किसी दूसरे की इबादत कैसे कर सकते हैं। दुनियाँ में सभी नाम खुदा के हैं। किस का लें और किस का न लें?

यूनुस भाई!
मैं बहुत दिनों से पूरी रामचरित मानस की रिकॉर्डिंग की तलाश में हूँ। आकाशवाणी जिसे रोज सुबह या शाम प्रसारित करती थी। मैं ने पूरे साल भर तक उसे अपने रेडियों से कैसट पर रिकार्ड किया था। पर समय के साथ बहुत सी कैसेट खराब हो गई हैं। उस में अनेक गायकों के स्वर थे और संक्षेप में टीका, प्रसंग भी सुनाया जाता था। क्या उस की या कोई और संपूर्ण रिकार्डिंग की कम्प्यूटर या सीडी में संग्रह के लायक मिल सकती है? हो तो बताएँ। या आप उपलब्ध करवा सकते हों तो कराएँ। मुकेश वाली रिकार्डिंग संक्षिप्त है, पूरी नहीं।

Toonfactory September 2, 2008 at 3:20 AM  

Wahh Yunus Bhai..main bhi kaafi samay se Mukesh Ji Ki Aawaz mein Ramcharitmanas ki talaash mein hoon aur aise mein Bajrang Baan ki yeh prastuti man ko gadgad kar gayi...barambaar shukriya aapko.

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey September 2, 2008 at 3:31 AM  

शब्द नहीं हैं धन्यवाद देने को।
पर मित्र यूनुस; safat alam taimi जी के कहे अनुसार अगर आप इस्लाम के विषय में भी ज्ञानवर्धन करेंगे तो स्वागत है।

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey September 2, 2008 at 4:01 AM  

और यूनुस रमजा़न के तपस्यामूलक माह की शुभकामनायें।

anitakumar September 2, 2008 at 7:41 AM  

भाई आपने तो हमारी सुबह बना दी, बहुत अच्छा लगा सुन कर्। द्विवेदी जी की बात पर ध्यान दें प्लीज, रामायण के और अंश सुनवाये

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` September 2, 2008 at 10:28 AM  

@safat alam taimi
आप दूसरोँ को ईस्लाम धर्म समजने और पढने के लिये कह रहे हैँ तो क्या आपने दूसरे धर्मोँ को पूरी तरह समझा और जाना है ?
हिन्दू मुस्लिम दोनोँ धर्म अच्छे हैँ पर उन्के पालन करने के नियम एकदूसरे से बहुत अलग हैँ - आप मूर्ति पूजा को नहीँ मानते, हिन्दू मानते हैँ ईसाई भी क्रोस पर लटके जीज़स को पूजते हैँ - यहूदी डेवीड के सितारे को पूजते हैँ -
आप और ईसाई मुस्लीम और यहूदी गौ माँस खा लेते हो और हिन्दू नहीँ खाते ..
आप तीनोँ धर्म, अपने मरे हुए के शव को दफनाते हो जबकि हिन्दू जलाते हैँ
ये बहुत बडे बडे फर्क हैँ -
आप ईस्लाम को मानिये ..दूसरोँ पर अपनी बात मनवाने की जिद्द ना करीये --
आपका ये तरीका गलत है -
आप खुश रहीये -- पर दूसरे धर्म का भी आदर करीये -
इतना ही कहना है -
बहुत बहुत धन्यवाद !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
युनूस भाई,
रमजान के पावन पर्व पर आप को सुकून हासिल हो -
इस अँश को यहाँ रखकर आपने आपके निष्पक्षता और उदारता लिये मानवता का परिचय दिया है
" राम चरित मानस " को
मुकेशजी के स्वर मेँ
तैयार करने का कार्य
पापाने ही करवाया था -
- लावन्या

Dr Prabhat Tandon September 2, 2008 at 3:35 PM  

यूनूस भाई ,रमजान की शुभकामनायें ! और इस सुन्दर रचना को सुनवाने के लिये आभार !
इस इतवार ३१/८/०८ को लखनऊ से प्रकाशित I- Next मे रेडियो वाणी का जिक्र है , देखें :"गाने भी ,उनकी कहानी भी"

Dr Prabhat Tandon September 2, 2008 at 3:37 PM  

"गाने भी ,उनकी कहानी भी" इसको Internet explorer मे देखियेगा , mozilla पर साफ़ नही दिख रहा है ।

Kedar September 2, 2008 at 6:23 PM  

युनुसभाई, बहोत हि उमदा पॉस्ट.
पवित्र भाद्र्प्रद और रमझान मास की उत्तम शुरुआत....

safat alam September 3, 2008 at 8:10 AM  

प्रिय भाइयो और बहनो! ज्ञात होना चाहिए कि मैं किसी धर्म पर आपत्ति नहीं करता न उसके मानने वालों को दोषी ठहराता हूं, मेरी वैसी मानसिकता नहीं है बस मैं युनूस भाई से निवेदन कर रहा था कि जब वह मुसलमान हैं तो उन्हें इस्लामी नियम का पालन करना चाहिए हमें आशा है कि आप भी मेरी बात का समर्थन करेंगी, और उनको शायद इस्लाम के सम्बन्ध में पता नहीं है इस लिए वह अन्य भगवानों का गुण गा रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं कि मैं मुसलमान अन्य पूज्यों को बुरा समझते हैं बल्कि क़ुरआन ने तो यहाँ तक रोका कि जो लोग ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा करते हैं उनको बुरा न कहो क्योंकि उनके हृदय को चोट लगेगा, इसके बावजूद इस्लाम ने सब से बड़ा पाप यह बताया कि मुर्ति पूजा न किया जाए क्योंकि जिस ईश्वर ने हमारी रचना की है, हम पर हर प्रकार का उपकार किया है तथा कर रहा है (जिसे कुछ लोग- ऊपर वाला- कहते हैं ) वही वास्तविक पूज्य है। अब यिद इस्लाम का मूल आदेश नही है जिसे न जानने वाले को बता दिया तो मैंने कौन सा पाप किया? मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं बहन जी, पर उसका क्या करें गे कि यदि मैं भी एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी सासांरिक भगवान की पूजा करने लगूं तो इस्लाम की सीमा से निकल जाऊंगा।
जहाँ तक धर्मों के अध्ययन की बात है तो मैंने अनुमानतः अपनी आयु के दस वर्ष इसी की खोज में बीताया है। जिससे इस परिणाम पर पहुंचा कि आरम्भ से मानव का धर्म एक ही रहा है, परन्तु लोगों ने अंधविश्वास मैं पड़ कर अलग अलग धर्म बना लिया फिर भी ईश्वर का अवतरित किया हुआ धर्म आज तक अपने पूर्ण रूप में बाक़ी है।वह धर्म कौन है ? आवश्यकता मात्र उसके खोज करने की है,
आपने जो यह कहा कि इस्लाम तथा अन्य धर्मों में क्या अंतर है ? तो इस सम्बन्ध में मेरी खोज यह कहती हैं कि
(1) इस्लाम केवल एक ईश्वर की ओर बोलाता है उस ईश्वर की ओर जो सारे मनुष्य का श्रृष्टिकर्ता है, उसका कोई रूप नहीं तथा वह मानव रूप में अवतरित नहीं होता
(2) इसमें सारे मानव समान हैं उन्हें जाति तथा वंश के आधार पर विभाजित नहीं किया गया है।
(3) इस्लाम के अन्तिम दूत मुहम्मद सल्लद की जीवनी का एक एक क्षण लिखित रूप में सुरक्षित है जिसके द्वारा आपके लाए हुए नियम को पूरे रूप में समझा जा सकता है।
(4) इस्लाम एक बुद्धि संघत धर्म है, उसने औरत को पर्दा करने का आदेश दिया ताकि समाज को पवित्र रखा जा सके , उसने सासांरिक कर्तव्य को भी ईश्वर की आज्ञाकारी क़रार दिया और मुक्ति के लिए परिवार त्याग की शर्त न रखी, उसने दान का नियम पेश किया जिसको आज व्यवहारिक रूप दिया जाए तो समाज में कोई निर्धन बाक़ी न रहे, उसने एक ईश्वर की पूजा की ओर बोलाया जो सारे संसार का स्वामी है। यदि मुहम्मद सल्ल0 की पूजा की जाती होती तो हम अवश्य कहते कि इस्लाम अरबों का धर्म है लेकिन इस्लाम ही मात्र वह धर्म है जिसने समानता का संदेश देने के साथ साथ मानव को उसके ईश्वर से मिलाया।
इस बयान का अर्थ कदापि नहीं कि मैं किसी पर आपत्ति कर रहा हूं बल्कि मेरा अभिप्राय यह है कि हम इस्लाम के सम्बन्ध में भ्रम में न रहें , उसके वास्तविक स्वरूप को जान लें । यदि आप की इच्छा हो तो मैं बताऊंगा कि मानव कैसे एक ही धर्म का पालन कर रहा था और किस प्रकार वह विभिन्न धर्म में विभाजित हो गए। धन्यवाद

mahashakti September 3, 2008 at 3:36 PM  

भाई जी अच्‍छी प्रस्‍तुति, आपको रमजान का पवित्र पर्व मुबारक

Dr Prabhat Tandon September 3, 2008 at 4:08 PM  

@ safat alam ji,
religious insanity यानि धार्मिक पागलपन का कोई इलाज नही है । आपकी सोच सिर्फ़ और सिर्फ़ कट्टरवाद को ही जन्म देती है । सिर्फ़ एक प्रशन कि तमाम मजारों पर चद्दर चढाने वाले मुस्लिम क्या मुस्लिम नही होते ।

Religious cruelty leaves it's bloody trace
Throughout the history of the human race
In the name of god we get so much misery
What kind of a saint could this god be
Collecting money for a senile pope
Corruption hidden under a holy rope
Face the religious insanity
Hypocritical humanity
Fight the religious insanity
Infatuated believers
Trying to deceive us
Infatuated believers
Trying to deceive us
Thousands of years full of mislead truth and
Delusion
Wiping out whole races for their big illusion
For dubious reasons men were burnt to death
All these crimes church would never confess
The nepotism of church and state
Always decided mankind's fate
Eternal peace is what they proclaim
Money and might is their only aim
While they're talking about salvation
The third world's dying of starvation
Face the religious insanity
Hypocritical humanity
Fight the religious insanity
Infatuated believers
Trying to deceive us
Infatuated believers
Trying to deceive us
Face the religious insanity
Hypocritical humanity
Fight the religious insanity
Infatuated believers
Trying to deceive us
Infatuated believers
Trying to deceive us

Dr Prabhat Tandon September 3, 2008 at 4:15 PM  

बस इन पक्तियों मे चर्च को हटाकर अपने-२ मजहबों के नाम डालते जायें , तस्वीर सब की एक सी है ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` September 4, 2008 at 1:14 AM  

भाई साहब,
@ safat alam ji,
मैँने भी मेरे धर्म के बारे मेँ ५० वर्ष से समझ और ज्ञान पाया है.
खैर, युनूस भाई की बात तो वही जाने -
मैँ मेरे धर्म का किस तरह पालन करना चाहीये वही सही जानती हूँ -
आपको अपने धर्म के प्रति जितनी श्रध्धा होगी उतनी ही मुझे मेरे धर्म पर है.
हमारे दोनोँ के धर्म अलग हैँ और तरीके भी अलग हैँ
मैँ तो मूर्ति पूजा ही करती हूँ और मूर्ति मेँ भी ईश्वर की छवि देखती हूँ जिससे उस तक पहुँचने का सरल रास्ता मिल जाता है
आप को आपके धर्म की,
माने ईस्लाम की सीमा मेँ से निकलने को कौन कह रहा है > वे तो मैँ समझी नहीँ -
हाँ आप आपकी सीमा मेँ रहीये और आपका धर्म निभाइये.
मैँ मेरा धर्म निभाऊँगी ठीक है ना ?
भाईसाहब,
(१) ईश्वर या सबका पिता भारत भूमि पर स्वयम आये थे और ज्ञान दिया है
अँधविश्वास मेँ कौन है उसका नतीजा और निर्णय क्या सिर्फ आप के जिम्मे है ?
किसने दिया ये हक्क आपको ?
मेरे धर्म ने मुझे दिया है जो ज्ञान मैँ उसी पर चलूँगी और आप आपके धर्म पर चलिये -
( २ ) मानव एक ऊपर से हैँ पर सभी के अँदर बहुत सी भिन्नता होती है स्वभाव से, आदत से, और काम काज की पसँदगी से !
फिर भी अमीर होँ या गरीब, काले या गोरे, स्त्री या पुरुष सभीका आदर करना चाहीये
(३ ) मेरे धर्म की बहुत बारीक बारीक बातेँ भी कई सारी पुस्तकोँ मेँ सुरक्षित हैँ जिसे १ अरब से ज्यादा लोग पूरी दुनिया मेँ पढते हैँ और उसमेँ बताये नियमोँ के आधार पर जीवन को खुशी से जीते हैँ
४) औरत पर्दा करे वह औरत की मरजी से होना चाहीये - मर्दोँ के हुकुम् से नहीँ -
परिवार और समाजको पवित्र रखना हरेक इन्सान का फर्ज़ है
मुक्ति के लिये सँसार मेँ रहते हुए भी ईन्सानियत का फर्ज पूरा करने से और ईश्वर के लिये सच्ची भक्ति और प्रेम रखने से ईश्वर अवस्य मिलते हैँ सँसार छोडनेवाले साधु होते हैँ सँसारी होके भी ईश्वर प्राप्ति हो जाती है - दान तो एक छटा अँग है ईन्सानियत के नाते जो अमीर हैँ वे गरीबोँ का दुख समझेँगेँ तब दुनिया मेँ सारे दुख दूर हो जायेँगेँ - लालच स्वार्थ ही हर बुराई की जड है और खुदगर्जी और मनमानी भी -
अँत मेँ मैँ इतना ही कहूँगी, आप को आपका धर्म प्यारा होगा ..वही मुबारक हो आपको !
हमेँ हमारा धर्म जान से भी ज्यादा प्यारा है और उसी के अनुसार हम जीयेँगेँ -
मुझे आप से और कोई बात जानने की जरुरत नहीँ है -
शुक्रिया - आपका वक्त लिया -

safat alam September 4, 2008 at 2:22 AM  

डा0 साहिब!
यदि धर्म के सम्बन्ध में कोई बात की जा रही हो तो मैं नहीं समझता कि इसे कट्टरवादी की संज्ञा दी जाए। धर्म का पालन करने वाले सदैव प्रेम, स्नेह तथा शान्ति चाहते हैं, हम भारत में शताब्दियों से रहते आ रहे हैं उसके बावजूद हमारा ज्ञान एक दूसरे के प्रति सुनी सुनाई बातों दोषपूर्ण विचार तथा काल्पनिक वृत्तान्तों पर आधारित है, मैं यही चाहता हूं कि हम एक दूसरे की सोच को जानें, ज्ञान का आदान प्रदान हो ताकि परस्पर एकता के सुत्र में बंध सकें और अनेकता में एकता का प्रदर्शन हो।
आपने हम से प्रश्न किया है कि दर्गाहों पर चादर चढ़ाने के सम्बन्ध में क्या कहते हैं तो इस सम्बन्ध में कहना चाहूंगा कि इस्लाम की एक सीमा है उस सीमा में जो सहता है वह मुस्लिम कहलाता है जो उसकी सीमा में नहीं रहता वह मुस्लिम नहीं होता-- इस सीमा के लिए सर्वप्रथम काम केवल एक ईश्वर पर विश्वास है । आप पूछेंगे कि एक ईश्वर पर विश्वास क्यो ?
यदि मैं आपसे कहूं कि एक कम्पनी है जिसका न कोई मालिक है, न कोई इन्जीनियर, न मिस्त्री । सारी पम्पनी आप से आप बन गई, सारी मशीनें स्वंय बन गईं, खूद सारे पूर्ज़े अपनी अपनी जगह लग गई और स्वयं ही अजीब अजीब चीज़े बन बन कर निकल रही हैं, सच बताईए यदि में यह बात आप से कहूं तो क्या आप हमें पागल न कहेंगे ? क्यों ? इस लिए कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि बीना बनाए कम्पनी बन जाए। अब हमें उत्तर दीजिए कि क्या यह संसार तथा धरती और आकाश का यह ज़बरदस्त कारख़ाना जो आपके सामने चल रहा है, जिसमें चाँद, सूरज और बड़े बड़े नक्षत्र घड़ी के पुर्ज़ों के समान चल रहे हैं क्या हर बिना बनाए बन गए?
स्वयं हम तुच्छ वीर्य थे, नौ महीना की अवधि में विभिन्न परिस्थितियों से गुज़र कर अत्यंत तंग स्थान से निकले,हमारे लिए माँ के स्तन में दूध उत्पन्न हो गया,कुछ समय के बाद हमें बुद्धि ज्ञान प्रदान किया गया, हमारा फिंगर प्रिंट सब से अलग अलग रखा गया, इन सब परिस्थितियों में माँ का भी हस्तक्षेप न रहा, क्योंकि हर माँ की इच्छा होती है कि होने वाला बच्चा गोरा हो लेकिन काला हो जाता है, बच्चा हो लेकिन बच्ची हो जाती है। अब सोचिए कि जब कोई चीज़ बिना बनाए नहीं बना करती जैसा कि आप भी मान रहे हैं तथा यह भी स्पष्ट हो गया कि उस में माँ का भी हस्तक्षेप नहीं होता तो अब सोचें कि क्या हम बिना बनाए बन गए ?
कभी हम संकट में फंसते हैं तो हमारा सर प्राकृतिक रूप में ऊपर की ओर उठने लगता है शायद आपको भी इसका अनुभव होगा—ऐसा क्यों होता है ? इसलिए कि ईश्वर की कल्पना मानव के हृदय में पाई जाती है, लोग उसी ईश्वर को पहचान न सके। इस्लाम ने हमारा मार्गदर्शन किया कि वह एक ही ईश्वर जिसने तुम्हारी रचना की, तुम्हारे पूर्वजों की रचना की, - जो तुम्हारे लिए पृथ्वी से विभिन्न प्रकार की खाने की साम्रियाँ निकालता है,- उसी को पूजो । इस लिए मुसलमान वह है जो एक ईश्वर की पूजा करता है। उसकी पूजा में किसी को भागीदार नहीं ठहराता, एक हिन्दू हिन्दू परिवार में पैदा हो तो वह हिन्दू रह सकता है पर एक मुस्लिम मुस्लिम परिवार में पैदा हो तो उसका मुस्लिम होना कोई ज़रूरी नहीं। जहाँ तक दर्गाह का सम्बन्ध है तो यदि वहां पर मृतक से माँगा जा रहा हो तो इस्लाम इस से बिल्कुल अलग है क्योंकि इस्लामी सिद्धांत यह है कि ईश्वर के अतिरिक्त किसी की पूजा न की जाए। हाँ यदि वह ईश्वर से मृतक के लिए प्रार्थना कर रहा है तो ऐसा करने में कोई प्रतिबंध नहीं। धन्यवाद

सागर नाहर September 11, 2008 at 3:50 AM  

मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से कुछ कहने की इजाजत चाहता हूँ। मुझे यूं लगता है हमसे कुरआन की पंक्तियों को या तो समझने में भूल हुई है या फिर हमने अपने हिसाब से अर्थ गढ़ लिये हैं। बाकी अल्लाह, पैगम्बर, भगवान या कोई और जिन्हें हम पूजते या सम्मान देते हैं वे सम्मान के लायक बने ही इस लिये हैं कि वे अहंकार से मुक्त हो गये, वे इर्ष्या से मुक्त हो गये।
अब अगर अल्लाह ये कहे कि वो अपनी पूजा में किसी को भागीदार नहीं ठहराता, उचित नहीं लगती।
और एक बात मुझे नहीं लगता कि किसी भी धर्म के आराध्य खुद अपनी पूजा करवाना चाहते होंगे।
मैने अजमेर की दरगाह शरीफ़, मुजरात की मीरा दातार की दरगाह सुरत की ख्वाजा दाना साहब की दरगाह और भी कई दरगाह देखी हैं जहां मुस्लिम की बजाय हिन्दु लोग ज्यादा दर्शन करते दिखते हैं, तो क्या अब वे हिन्दु नहीं रहे? भाई साहब ऐसा नहींहै धर्म का रिश्ता आस्था से होता है, साहित्यों,धार्मिक पुस्तकों या मान्यताओं से नहीं।
रही बात यूनुस भाई की आप बेहतर जानते होंगे कि उनकी शरीके हयात कौन है। मैने उनके घर में जाकर देखा है वे सभी धर्मों का समान आदर देने वाला युगल है,बहुत ही प्यारे इन्सान है युनुस! उन्हें बेहतर पता है कि क्या सही है और क्या गलत , तभी यह पोस्ट लिखी होगी।
मैं आपकी भावनाओं या धर्म का अनादर नहीं करना चाहता पिर भी कुछ गलत लिख दिया गया हो तो क्षमा चाहता हूँ।

Mahendra February 3, 2009 at 6:08 PM  

युनुश भाई

नमस्कार है आपको आपने यह साबित कर दिया की ज्ञानी आदमी किसी धर्म से नही जुडा होता उसका काम तो ज्ञान को लोगो में बाटना होता है. हमारी शुभकामना

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