मेंडोलिन पर वो नॉस्टेलजिक धुन
पिछले दिनों 'रेडियोनामा' पर सागर भाई सा ने एक पोस्ट लगाई थी, जिसका शीर्षक था....'एक मित्र की मदद करें' । इस पोस्ट में उन्होंने विनोद कुमार श्रीवास्तव जी की एक मेल का जिक्र किया था । विनोद जी का कहना था.......
बहुत सालों पहले आल इण्डिया रेडियो पर दो कार्यक्रमों के बीच के खाली समय में एक कर्णप्रिय धुन बजायी जाती थी. वह धुन किसी तार वाद्य ( सितार, संतूर, बैंजो आदि ) पर बजायी गई थी. पुराने रेडियो श्रोताओं को उस धुन की याद जरुर होगी. वह धुन आजकल नही सुनाई पड़ती है. क्या कही से वह धुन पुनः सुनी जा सकती है? कृपया मार्गदर्शन करें. |
उन दिनों हम गए हुए थे मुंबई शहर से बाहर । लौटे तो विनोद जी की एक मेल इनबॉक्स में प्रकट हुई । जिसमें उन्होंने इस धुन को बजाने का प्रयास किया था अपने यामाहा की-बोर्ड पर । जिस दिन सागर भाई सा की पोस्ट देखी थी उसी दिन ये एक पुरानी सुनी ट्यून दिमाग़ में गूंज रही थी । विनोद जी के भेजे अटैचमेन्ट ने उसकी तस्दीक कर दी । ये वही ट्यून थी...जिसे देश भर के आकाशवाणी केंद्र फिलर के तौर पर बजाते रहे हैं । और लगभग सभी जगह घिस-घिसाकर इसका मलीदा बन चुका है । पर हमने ठान ली थी कि चाहे जो हो जाए, चाहे धरती आकाश एक करना पड़े, हम इस ट्यून को खोजकर ही रहेंगे । लीजिये ये रही ट्यून । रिकॉर्ड के मुताबिक़ मेंडोलिन पर इसे जसवंत सिंह ने बजाया है ।
मुझे इस ट्यून से बचपन में कई-कई बार रेडियो के अगले कार्यक्रम के इंतज़ार के पल याद आते हैं । और मन में ये सवाल कौंधता है कि आखिर कोई वाद्य-संगीत इतना बेक़रार कैसे कर सकता है हमें । विनोद जी जिस तरह इस ट्यून के लिए अधीर और परेशान थे...वैसा कई गीतों और धुनों के लिए मैं भी रह चुका हूं, रहता हूं और रहूंगा । आपमें से बहुत लोग इस अधीरता और व्यग्रता को समझ सकते हैं । कितना रहस्मय होता है संगीत का असर । शायद आध्यात्म की सीमाओं में हस्तक्षेप करता हुआ ।
जसवंत सिंह के बारे में हमें कहीं कोई जानकारी नहीं मिली । हां यूट्यूब पर जो वीडियो मिला वो ये रहा । आपमें से किसी को अगर जसवंत सिंह के बारे में पता है तो कृपया रोशनी दिखाएं भई ।
इस पोस्ट को रेडियोनामा पर पोस्ट करना था । पर आज साप्ताहिकी का दिन है । और इस ट्यून को आज की प्रस्तुत किये बिना हमसे रहा नहीं जा रहा था । ये ट्यून शीघ्र ही रेडियोनामा पर साईड-बार में सहेज दी जाएगी । ताकि जब मरज़ी हो आप आराम से इसे वहां सुन सकें । बताईये, आपको कौन-सी ट्यून परेशान कर रही है ।
अब sms के ज़रिए पाईये ताज़ा पोस्ट की जानकारी
12 टिप्पणियां:
शुक्रिया यूनुस भाई...
आनंद आ गया सुनकर। मैं भी इसे अक्सर याद करता हूं और गुनगुनाता हूं। आपने इसे उपलब्ध कराया सो एहसानमंद हुए। कमाल कर दिया। जसवंतजी के बारे में नई जानकारी मिली। आज की सुबह तो बन गई। शुक्रिया। कुछ ही देर में श्री अफलातून यहां पहुंचने वाले हैं :)
वाकई मधुर धुन हैं।
युनूस जी प्लीज़ ऐसे मत कहिए कि साप्ताहिकी के दिन एक अच्छी पोस्ट रेडियोनामा पर नहीं रखी जानी है। बल्कि इस चिट्ठे पर तो पहला अधिकार रेडियोनामा का ही है। साप्ताहिकी अपनी जगह है पर इससे दूसरी ज़रूरी पोस्ट रूके यह भी तो ठीक नहीं न…
आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट को आप रेडियोनामा पर रखिए, वहाँ इस धुन का इंतेज़ार है…
मधुर और कानों मे रस घोलती हुई धुन सुनकर वो पुराना समय याद आ गया ।
इसका गीत दिमाग मे आ रहा है पर जुबान पर नही ।
bahut khoob purane din yaad dila diye aapne
वाकई बहुत मधुर!
मेरे कम्प्यूटर की घडी रात के बारह बज कर पांच मिनिट का समय बता रही है और मैं जसवन्तसिंहजी की, मेंडोलिन पर बजाई वह धुन सुन रहा हूं जिसे सुन-सुन कर मैंने अपने मित्रों के साथ किशोरवय से समझदारी की उम्र में कदम रखा। इसका घातक और मादक नास्टेल्जिया बीते वक्त को खींच लाया है।
शंक्रिया। बहुत-बहुत शुक्रिया युनूस भाई। उपकार है आपका। मेरी रात तो आपने गुलजार कर दी।
क्या बात है...आपने तो मस्त ही कर दिया आप अक्सर व्यवधान के लिये खेद है के साथ भी हमने ज़्यादा सुना है..कभी किसी टेस्ट मैच से लिंक टूट जाता तो इस संगीत को आकाशवाणी पर खूब सुना है...ऐसी ही चीज़े आपके ब्लॉग पर रहती है कि लोग खिंचे चले आते है...क्या खूब आपने तो तर कर दिया.....
वाकई में यह कर्णप्रिय धुन, पिछले दिनों की और ले जाती है.
युनुस जी,
आपने जो लिंक http://radionamaa.blogspot.com//0.0.7.217/01/blog-post.html लगायी है ..'एक मित्र की मदद करें' पर, वह गड़बड़ है. सही लिंक http://radionamaa.blogspot.com/2009/01/blog-post.html है.
आदरणीय युनुस जी
अपने दिल के उद्गार कैसे व्यक्त करुँ समझ में नही आ रहा है. आज आपके वजह से दिल का एक कोना, जो पता नही कितने वर्षों से खाली था इस संगीत लहरी से भर गया. इस धुन को सुन पाने के लिए मैंने हद की सीमा तक कोशिश की थी लेकिन इसे आज आपके सहयोग से पा ही लिया. संगीत का लोगों से रूहानी सम्बन्ध होता है यह तो सैकडो बार सुना है, लेकिन मेरा विश्वास है कि संगीत के प्रेमियों के बीच भी रूहानी सम्बन्ध होता है. युनुस जी, संगीत की यैसे ही इबादत करते रहिये.
विनोद श्रीवास्तव
वहा भाई, मज़ा आ गया।
- आनंद
श्री युनूसजी,
रेडियोनामा पर सागर भाई की इस धून से सम्बंधित पोस्ट पर 8 जंवरी, 2009 के दिन,की टिपणी के बिल्कूल नीचे ही मैनें जो टिपणी लिख़ी थी और जो धून जैसी बन पड़ी, की बोर्ड पर बजाकर सागर भाई को भेज़ी वह यही ट्यून थी । इस टिपणी को वहाँ से इधर कोपी-पेस्ट किया है ।
पियुष महेता (सुरत)
श्री युनूस जी क्या आप मेंडोलिन पर जस्वंत सिँह की बजाई दो घूनों में से एक का जिक्र कर रहे है, जो शायद परसों ही विविध भारती पर भूले बिसरे गीत के अंतराम में बजी थी ?
जरूर बताईएगा । मैँनें यह धून थोडी सी ही जैसी बन पडी की बोर्ड पर बजा कर सागर भाई को ई मेईल से भेजी है ।
पियुष महेता ।
सुरत -395001
January 8, 2009 12:51 PM
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