Thursday, April 9, 2009

दोनों जहान तेरी मुहब्‍बत में हार के: फ़ैज़ की ग़ज़ल । उस्‍ताद बरकत अली ख़ां की आवाज़ । रेडियोवाणी की दूसरी सालगिरह पर विशेष ।

दो बरस पहले नौ अप्रैल को जब 'रेडियोवाणी' को बस यूं ही शुरू किया था,  तो मन में ये भी साफ़ नहीं था कि इस ब्‍लॉग का स्‍वरूप क्‍या होगा । लेकिन किसी एक ख़ास 'तरंग' के तहत शुरू हुए 'रेडियोवाणी' का स्‍वरूप वक्‍त के साथ-साथ तय होता चला गया । पाठकों और मित्रों की बेबाक राय के आधार पर 'रेडियोवाणी' को विशुद्ध संगीत-ब्‍लॉग का रूप दे दिया गया और बाक़ी बातों के लिए 'तरंग' की शुरूआत की गई । इस दौरान एक सामूहिक रेडियो ब्‍लॉग 'रेडियोनामा' भी शुरू हुआ । रेडियोवाणी के इस दो साल के सफ़र ने कई मित्र और शुभचिंतक दिये । परिचय का दायरा बढ़ाया और पिछले कई बरसों से संगीत पर लगातार लिखने की ललक को भी पूरा किया है ।

विविध-भारती में काम करते हुए लगातार संगीत के बीच ही रहना होता है । और लगातार बदलते संगीत से वाकफियत भी बनी रहती है । विविध-भारती पर बोलना और गाने वग़ैरह सुनवाना मेरा पेशा है । जहां मुझे अपने श्रोताओं की पसंद का ध्‍यान रखकर प्रस्‍तुतियां देनी पड़ती हैं । संस्‍थान की सीमाओं का ध्‍यान रखना पड़ता है । लेकिन संगीत का समुद्र इतना अथाह है कि इतने ही काम से अपना मन नहीं भरता । इसलिए रेडियोवाणी पर कुछ अपने मन के और कुछ दूसरों के मन के अनमोल- मोती ढूंढकर लाना बहुत ही सुखदाई और सुकूनदेह होता है । रेडियोवाणी पर मैं ज्‍यादातर अपने मन का संगीत लेकर आता हूं । ये मेरे मन का रेडियो-स्‍टेशन है । और इसीलिए मुझे इससे बहुत प्रेम है ।

लगातार व्‍यस्‍त होती इस दुनिया में, टारगेट्स के पीछे भागते लोगों के बीच संगीत को मैंने बड़ी ताक़त से अपनी जगह बनाते हुए देखा है । चाहे बंबई की लोकल-ट्रेनों, बसों और सड़कों पर मोबाइल और आई-पॉड्स पर संगीत की तरंगों पर झूमते ( परेशानहाल, थके, उदास, निराश, खुश, जोशीले ) लोग हों या फिर ऑफिस में डेस्‍कटॉप पर काम के बीच मीडिया-प्‍लेयर पर अपने पसंदीदा गाने सुनते लोग, घरों की रसोई में फ्रिज के ऊपर या कहीं और बजता रेडियो एक गृहिणी के संगीत-प्रेम का प्रतीक होता है । संगीत ने लोगों को एक दूसरे के और क़रीब ला दिया है । 'रेडियोवाणी' का मक़सद जोड़ना
है । थोड़ी देर के लिए धूल उड़ाकर तमाशा देखना नहीं है ।

आज रेडियोवाणी की दूसरी सालगिरह पर आपको एक अनमोल चीज़  Ustad Barkat Ali Khanसुनवाने का मन है । उस्‍ताद बरकत अली ख़ां बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब के भाई थे और जाने-माने गायक उस्‍ताद (छोटे) ग़ुलाम अली ख़ां साहब के गुरू । उनकी गायकी का एक अलग ही रंग है । ख़ूब सारी गरमी वाले इस मौसम में बरकत अली ख़ां साहब की आवाज़ आपके कलेजे को सुकून पहुंचाएगी । आज उनकी गाई फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक ग़ज़ल सुनिए--

दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे हार के
वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के    (दुख की रात )
वीरां है मैकदा ख़ुमो-साग़र उदास हैं     (शराब की सुराही और प्‍याला)
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
इक फुर्सते-गुनाह मिली वो भी चार दिन  (गुनाह की फुरसत)
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के
दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के
भूले से मुस्कुरा जो दिये थे वो आज फ़ैज़
मत पूछ वलवले दिले-नकर्दाकार के   (हौसले)  (अनुभवहीन-दिल)

रेडियोवाणी के दो साल पूरे होने पर हम यहां आने वाले संगीत के सारे शैदाईयों का शुक्रिया अदा करते हैं ।

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29 टिप्‍पणियां:

बोधिसत्व April 9, 2009 at 5:52 PM  

बधाई। हो सके इसे ही जिया मोइमुद्दीन की आवाज में सुनाएँ

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi April 9, 2009 at 6:13 PM  

दूसरी सालगिरह पर बहुत बहुत बधाई!
इस शानदार ग़जल को सुन कर अच्छा लगा।

परमजीत बाली April 9, 2009 at 6:35 PM  

बढिया गज़ल सुनवाने के लिए शुक्रिया।

neeshoo April 9, 2009 at 7:10 PM  

दूसरी सालगिरह पर बहुत बहुत बधाई आपको । अनमोल प्रस्तुति के धन्यवाद । होली वाली प्रस्तुति " मसाने में होली दिगंबर खेले मसाने मे होली " बहुत ही पंसद आयी थी।

हिमांशु । Himanshu April 9, 2009 at 7:31 PM  

दो वर्ष पूरे होने पर आपको बहुत बधाई ।

कंचन सिंह चौहान April 9, 2009 at 7:39 PM  

दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के

अहा.....! क्या बात है....! उम्दा गज़ल.....!
रेडियोवाणी की दूसरी सालगिरह की बधाई

ravindra vyas April 9, 2009 at 7:39 PM  

बधाई और शुभकामनाएं।

पंकज सुबीर April 9, 2009 at 8:19 PM  

वाह सालगिरह का इससे अच्‍छा तोहफा क्‍या हो सकता है । यूनुस भाई आपके पास तो ख़जाना है पूरा ।

yunus April 9, 2009 at 9:01 PM  

बोधी-भाई इसे कईयों ने गाया है । जिया मोहिउद्दीन वाला वर्जन ढूंढता हूं ।

सुशील कुमार छौक्कर April 9, 2009 at 9:27 PM  

बधाई यूनूस भाई। बेहतरीन प्रस्तुति।

Manish Kumar April 9, 2009 at 9:50 PM  

bahut bahut badhai doosri salgirah par.

vimal verma April 9, 2009 at 10:08 PM  

शानदार....हमारी बधाई स्वीकार करें।

नितिन व्यास April 9, 2009 at 11:27 PM  

बधाई और शुभकामनाएं।

मोहन वशिष्‍ठ April 10, 2009 at 12:36 AM  

युनूस जी दो वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्‍य में बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` April 10, 2009 at 2:35 AM  

रेडियोवाणी हिन्दी ब्लोग जगत मेँ युनूस भाई की विशेष प्रस्तुति तथा व्यक्तित्त्व से जुडकर
एक अनोखा सँगीतमय जाल घर बन कर सफल हुआ है ..बहुत बधाई आपको भी और
सभी के लिये यह सँगीतमय सफर जारी रहे यही शुभकामना है
स्नेह सहीत,
- लावण्या

ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey April 10, 2009 at 3:23 AM  

अद्भुत कवि हैं फैज! देश काल की सीमा से परे।

काजल कुमार Kajal Kumar April 10, 2009 at 4:19 AM  

रेडियो का साथ या तो सफ़र में बचा है या आपके ब्लॉग पर आकर. सालगिरह पर बधाई.

Abhishek Mishra April 10, 2009 at 4:47 AM  

सालगिरह की ढेरों शुभकामनाएं.

दिलीप कवठेकर April 10, 2009 at 6:19 AM  

सबसे पहले,दूसरी सालगिरह पर ढेरों बधाईयां..

आपके हर पोस्ट में हम पाते है, भारतीय संगीत के कई विधाओं में ढाले हुए गीत.क्या गीत, क्या गज़ल, क्या लोकसंगीत ,कव्वाली , ठ्मरी और क्या क्या?

आपकी बिरादरी की याद बहुत आती है.

Dr. Amar Jyoti April 10, 2009 at 2:19 PM  

फ़ैज़ की ग़ज़ल और बरकत अली ख़ां की आवाज़। सोने में सुहागा। हार्दिक आभार सुनवाने के लिये।

Arvind Mishra April 10, 2009 at 3:46 PM  

पहले तो दूसरी वर्ष गाँठ की बधाई ! यह गजल फैज की मशहूर गजलों में से है ! फिर सुनना अच्छा लगा .शुक्रिया !

Parul April 10, 2009 at 10:19 PM  

बधाई....बधाई

संजय पटेल... April 13, 2009 at 3:37 AM  

यूनुस भाई,
दो साल में आपने इस जगत को कितना सुरीला बना दिया. ऐसी कोशिशों से भी पर्यावरण समृध्द होता है. ज़िन्दगी में बढ़ रही मुश्किलों के बीच रेडियोवाणी इस सुक़ूनभरा आसरा है. इसका सुरीलापन हमें मनुष्य बने रहने की ख़ुशी देता है.
सालों साल गूँजती रहे रेडियोवाणी.

annapurna April 17, 2009 at 7:26 PM  

जब कोई काम आप यूँ ही शुरू करते है तो ये हाल है (बहुत उम्दा है ब्लाग) अगर योजना से शुरू करें तो…

ख़ैर दो साल की नन्ही-मुन्नी (पर चतुर सुजान) रेडियोवाणी आपको मुबारक !

Rector Kathuria April 19, 2009 at 1:26 AM  

बेशक दो बरस ही कहे जा सकते हैं पर महसूस ऐसे होता है जैसे पता नहीं किन जन्मों की दोस्ती है....काश आज मेरे पिता जी फिजिकली भी पास होते तो उनका आप की हर इक पोस्ट एक नया तोहफा भी लगती और आप का ब्लॉग एक अच्छा सा मंच भी.....कुल मिला कर मुबारक स्वीकार करें....! लुधियाना/पंजाब में भी कभी आईये.....पिछली बार तो आप सीधा ही जम्मू निकल गए थे......!

PIYUSH MEHTA-SURAT April 22, 2009 at 6:15 AM  

देर से ही पर बहोत बधाई । और मूझे भी इस ब्लोग की दूनिया में प्रवेश करवाने का एक निमीत आप भी बने है इस लिये धन्यवाद ।
पियुष महेता ।
सुरत

रविकांत पाण्डेय April 23, 2009 at 5:40 AM  

दूसरी सालगिरह की बधाई। उम्मीद है आगे भी इसी तरह कर्णप्रिय संगीत का सिलसिला जारी रहेगा।

ravindra vyas May 2, 2009 at 12:25 AM  

शुभकामनाएं और बधाई।

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